भारत को 75 साल पूरे हो चुके है जिसकी खुशी में वह आजदी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस साल 15 अगस्त को भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने वाला है। भारत के लिए आजादी की लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने आपको देश के लिए समर्पित किया था, लेकिन आज कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी है जिनका नाम इतिहास के पन्नों में खो गया है। ये वहिं स्वतंत्रता सेनानी है जिनका मुख्य उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता में योगदान देना था और उसे आजाद होते हुए देखना था। भारत के सभी राज्यों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी एक अलग और अहम भूमिका निभाई थी। 1803 से 1805 में दूसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के बाद ब्रिटिश ने इन भारत के कई क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था। 1845 में अंग्रजो ने पंजाब मे उत्तरी संपत्ति को सुरक्षित करने के लिए पंजाब के सतलुज सीमा पर 32,000 करीब सैनिकों को भेजा और 1845 के अंत तक फिरोजपुर में प्रथम एंग्लों-सिख युद्ध की शुरूआत हुई।
भारत में जब से ब्रिटिश सरकार का राज हुआ तभी से कहीं न कहीं से विरोध की एक आवाज उठती ही रही। सभी लोग लगातार ब्रिटिशों द्वारा हो रहे अत्यातारों से परेशान थे। फिर 1919 में पंजाब में जलियांवाला बाग कांड हुआ जिसका असर पूरे भारत पर हुआ और इस के जवाब में गांधी जी ने असहयोद आंदोलन की शुरूआत की। जिसमें पूरे देश ने भाग लिया। इस तरह हुए स्वतंत्रता आंदोलन में भारत के अन्य राज्यों की तरह पंजाब ने भी अपना योगदान दिया। आइए जानते है पंजाब के उन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में अपना योगदान दिया।
पृथ्वी सिंह आजाद
पृथ्वी सिंह आजाद का जन्म 15 सितंबर 1892 में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ एक क्रांतिकारी भी थें। इसी के साथ उन्होंने गदर पार्टी की स्थापना में भी योगदान दिया था। पृथ्वी सिंह आजाद बचपन से ही आजादी के लिए हो रहे आंदोलन से प्रभावित थे और कई क्रांतिकारी कार्य में शामिल भी थे। 1914 में ब्रिटिश सेना ने गिरफ्तार कर लिया था जिसके लिए उन्हें 10 साल की सजा दि गई थी। चंग्र शेखर आजाद की सलाह पर वह रूस गए थे ताकि आगे की ट्रेनिंग ले सके। 1947 में आजादी की लड़ाई के दौरान भी उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। इन्हें मुख्य तौर पर लाहौर षड्यंत्र के लिए जाना जाता है। इसके लिए उन्हें मौत की सजा दी गई थी जिसे बाद में कैद में बदल दिया गया था। उन्हें उनके योगदान के लिए 1977 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
भाई बालमुकुंद
भाई बालमुकुंद का जन्म 1889 में हुआ था। वह भारत के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे।नगदर पार्टी के संस्थापक थें। वह इन्हें मुख्य तौर पर दिल्ली षड्यंत्र केस के लिए ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुनाई थी। 23 दिसंबर 1912 में लॉर्ड हार्डिंग दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में घुम रहे थे उसी दौरन उन पर किसी ने बम फेका था। लॉर्ड हार्डिंग की जान तो नहीं गई लेकिन इससे वह गंभीर रूप से घायल जरूर हुए। इस तरह जांच के बाद बालमुकुंद को जोधपुर से गिरफ्तार किया गया और फांसी की सजा दि गई।
सोहन सिंह भकन
बाबा सोहन सिंह भकन के सिख क्रांतिकारी थे। इनका जन्म 22 जनवरी 1870 में हुआ था। ये गदर पार्टी के संस्थापक सदस्य थें। ये पार्टी गदर षड्यंत्र में शामिल थी। सोहन सिंह लाहौर षड्यंत्र में भी शामिल थे और इसके लिए उन्हें 6 साल कि सजा भी मिली थी। इसके बाद उन्होंने भारतीय श्रम आंदोलन में हिस्सा लिया और किसान सभा में अपना ज्यादातर समय दिया।
मदन लाल ढींगरा
मदन लाल ढींगरा 18 फरवरी 1883 में हुआ था। मदन लाल ढींगरा एक क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। इन्हें मुख्य तौर पर विलियम हट कर्जन वायली के हत्या के लिए जाना जाता है। जिसके लिए उन्हें मृत्यु की सजा दी गई।
किशन सिंह गर्गाजो
किशन सिंह गर्गाजो का जन्म 1886 में हुआ था। वह एक क्रांतिकारी थे और बाबर अकाली आंदोलन की शुरूआत की थी। जोर-शोर से चल रहे बाबर अकाली आंदोलन के बाद किशन सिंह गर्गाजो ने शिरोमणि अकाली दल को ज्वाइन किया। इस तरह से इन्होंने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई की।