Life Story Of Kargil Hero Yogendra Singh Yadav: कारगिल विजय दिवस हर वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है। 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाने के पीछे का कारण ये है कि आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध खत्म होने और भारत की जमीन से सभी पाकिस्तानियों को खदेड़ देने की घोषणा की गई थी। तभी से 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। कारगिल विजय दिवस पर हम सभी कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए जवानों को याद करते हैं। देश के लिए उनके अभूतपूर्व योगदान को नमन करते हैं।
कारगिल युद्ध की शुरुआत तब हुई थी, जब भारत के टाइगर हिल पर पाकिस्तान के घुसपैठियों ने अपना कब्जा कर लिया था। इसकी जानकारी लगते ही ऑपरेशन विजय लांच किया गया ताकि वापस उन स्थानों पर भारत का कब्जा प्राप्त किया जा सके जहां पाकिस्तान ने अपना कब्जा जमाया था। इस ऑपरेशन की सफलता पर उस समय के तात्कालिक प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद 14 जुलाई को ऑपरेशन विजय के सफल होने की घोषणा की थी। कारगिल युद्ध के दौरान कई ऐसे योद्धा थे जिन्हें कारगिल हीरो के नाम से जाना गया और आज भी जाना जाता है। उन्हीं योद्धाओं में से एक का नाम है योगेंद्र सिंह यादव, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी।
कम उम्र में किया बड़ा कमाल
आर्मी में जाने की इच्छा रखने वाले योगेंद्र सिंह यादव ने कम उम्र में बड़ा कमाल कर दिखाया। कारगिल युद्ध में अपने अभूतपूर्व योगदान से उन्होंने सबको हैरान कर दिखाया। छोटी सी उम्र में उनके इस द्वारा देश की रक्षा में किए गए इस योगदान के लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। योगेंद्र सिंह यादव को जब इस सम्मान से नवाजा गया था तब वह मात्र 19 वर्ष के थे। सबसे कम उम्र में उन्होंने ये सम्मान प्राप्त किया। आइए जाने उनके अभूतपूर्व योगदान के बारे और उन्हें इस कारगिल विजय दिवस पर याद करें।
योगेंद्र सिंह यादव का प्रारंभिक जीवन
परमवीर चक्र से सम्मानित योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में औरंगाबाद अहीर, बुलंदशहर जिले उत्तर प्रदेश में हुआ था। यादव के पिता करण सिंह यादव भी आर्मी में कार्यरत रह चुके है। योगेंद्र सिंह यादव के पिता 1965 और 1971 में हुई भारत- पाक युद्ध में शामिल रहे हैं। पिता के भारतीय आर्मी में होने के कारण वह बचपन से ही आर्मी की गाथाएं सुनते आए हैं, जिसकी वजह से उनकी आर्मी में जाने की इच्छा और दृढ़ होने लगी थी। वह महज 15 वर्ष के थे, जब उनके भाई ने उन्हें आर्मी में जाने की सलाह दी। इस बात पर एक बार भी बिना सोचे योगेंद्र ने सिलेक्शन सर्विस बोर्ड की परीक्षा दी और पहली बार में इस कठिन परीक्षा को पास कर दिखाया। योगेंद्र ने 16 साल की उम्र में आर्मी ज्वाइन की।
जहां एक तरफ योगेंद्र और उनके भाई चाहते थे कि वह आर्मी में जाएं, वहीं दूसरी तरफ योगेंद्र की मां नहीं चाहती थी कि वह आर्मी में जाए। इस विषय पर उन्हें बताया कि - उनकी मां चाहती थी कि वह पढ़-लिख कर के कोई बढ़ी और प्रतिष्ठित नौकरी हासिल करें और सच कहूं तो मैं भी आगे पढ़ना चाहता था। लेकिन देश की हालत ऐसी है कि शिक्षितों को भी नौकरी पाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। निम्न मध्यम वर्ग के परिवार से होने की वजह से मेरे पास सेना ही एकमात्र रास्ता था।
कारगिल युद्ध में उनका योगदान
योगेंद्र ने जून 1996 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी मानेकशॉ बटालियन को ज्वाइन किया। 2.5 साल की मिलिट्री सर्विस के बाद उन्हें कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया। उसी समय के दौरान उनकी शादी भी हुई थी। उनकी शादी को केवल 15 दिन ही हुए थे। जब उन्हें कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया तो उस समय उनकी उम्र 19 वर्ष थी।
कारगिल युद्ध में उन्हें टाइगर हिल के तीन बंकरों पर कब्जा करने के अभियान पर 4 जुलाई 1999 में भेजा गया। जिन बंकरों पर यादव को भेजा गया था वह बंकर 1000 फीट की ऊंचाई पर बर्फ से पूरी तरह से ढके हुए थे। बंकरों तक पहुंचने के लिए रस्सियों से का प्रयोग किया गया और ऊंचाई पर उसे बांधा गया ताकि वह दुश्मनों के बंकर तक पहुंच सके और अपने इस अभियान को अंजाम दे सकें।
अचानक दुश्मन के बंकर से मशीन गन और रॉकेट की आग बाहर आई, जिसमें प्लाटून कमांडर और अन्य दो सैनिक शहीद हो गए। उसी दौरान कमर और कंधे पर गोली लगने के बाद भी यादव ने हार नहीं मानी और वह बची हुई 60 फीट की दूरी तय कर चोटी पर पहुंचे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद भी उन्होंने पहले बंकर में ग्रेनेड फेंक कर उसे तबाह कर दिया और साथ ही चार पाकिस्तानियों को मार गिराया। बंकर नष्ट होने के कारण गोलीबारी बेअसर हो गई और उनकी पलटन के बाकी साथियों को ऊपर चोटी पर आने में आसानी हुई। इसके बाद एक-एक करके सभी बंकरों को नष्ट कर दिया गया और प्लाटून ने टाइगर हिल पर भारत का कब्जा वापस हासिल किया।
परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित
कारगिल युद्ध में इस अभियान के दौरान सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को 12 गोलियां लगी थी। कारगिल युद्ध में उनके इस योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा। योगेंद्र सिंह यादव परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले वह सबसे कम उम्र के सैनिक है।
कारगिल के बाद करियर
कारगिल युद्ध के बाद भी योगेंद्र सिंह यादव आर्मी की सेवा में लगे रहें। 2021 के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव को कैप्टन के पद से सम्मानित किया गया।
सूबेदार मेजर और माननीय कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को बाद में उडचलो सलाहकार बोर्ड में भी शामिल हुए। ये एक कंज्यूमर स्टार्टअप है जो रिटायरमेंट के बाद मिलिट्री के लोगों को सेवा प्रदान करता है।
24वें कारगिल विजय दिवस पर भारत की रक्षा में किए गए योगेंद्र सिंह यादव के अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत उनको नमन करता है।