kargil Vijay Diwas 2023; Life Story of Manoj Pandey: कारगिल युद्ध के दौरान जब भारत के कई वीर जवान पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब देने में लगे थे। उसी दौरान कारगिल युद्ध के एक और नायक का नाम देश में गूंज रहा था और वह नाम था मनोज कुमार पांडेय का। 1/11 गोरखा राइफल्स के मनोज कुमार पांडेय रुधा गांव कमालपुर तहसील सीतापुर के रहने वाले थे। मनोज पांडेय पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी बहुत अच्छे थे। मनोज पांडेय बच्चपन से ही सेना में भर्ती होने का सपना देखते आए थे। और उन्होंने इस सपने को पूरा कर देश की सेवा करते हुए 3 जुलाई 1999 में वीरगति को प्राप्त हुए।
कारगिल युद्ध की शुरुआत मई 1999 में हुई थी, जिसके विजय की घोषणा 26 जुलाई 1999 में की गई। युद्ध की जानकारी प्राप्त होते ही भारतीय सेना ने अपनी कई रेजिमेंट को युद्ध के लिए तैनात किया और भारत की जिन चौकियों पर पाकिस्तानियों ने कब्जा किया था, उन पर विजय प्राप्त करने के लिए ऑपरेशन चलाएं। एक के बाद एक भारतीय सेना चौकियों पर अपना कब्जा वापस प्राप्त कर रही थी। कारगिल युद्ध के 4 नायकों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उनमें से एक थे मनोज पांडेय। आर्मी में जाने के अपने सपने के साथ उन्होंने अपना एक और सपना पूरा किया था। जिसके बारे में उन्होंने इंटरव्यू में बताया था।
आर्मी में सिलेक्शन के दौरान सर्विस सिलेक्शन बोर्ड (एसएसबी) के इंटरव्यू के में बोर्ड द्वारा किए गए सवाल में उन्होंने परम वीर चक्र को जीतने की बात कहीं थी। कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब तो दिया लेकिन इसी के साथ हमने भारत के कई वीरों को खोया भी है। जिनकी याद और अभूतपूर्व योगदान को ध्यान में रखते हुए हम हर साल कारगिल विजय दिवस मनाते हैं। आइए इस साल कारगिल विजय दिवस पर कारगिल युद्ध के एक और नायक के बारे में जाने और उनके द्वारा भारत के लिए किए उनके बलिदान को नमन करें। आइए कारगिल युद्ध के नायक मनोज कुमार पांडेय के जीवन के बारे में जाने।
मनोज कुमार पांडेय प्रारंभिक जीवन
कारगिल युद्ध के नायक मनोज कुमार पांडेय या यू कहें की हीरो ऑफ बालिका का जन्म 25 जून 1975 में हुआ था। उनका जन्म रुधा गांव सीतापुर जिले, उत्तर प्रदेश में हुआ था। मनोज कुमार पांडेय के पिता गोपी चंद पांडेय जो की एक छोटा सा व्यवसाय चलाते थे और उनकी मां नाम मोहिनी था। वह अपने घर में सबसे बड़े बेटे थें।
मनोज कुमार पांडेय की प्रारंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई थी। सैनिक स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही मनोज कुमार पांडेय ने ये तय कर लिया था कि वह सेना में जाएंगे और अपने देश की सेवा करेंगे। अपनी आगे की पढ़ाई उन्होंने सानी लक्ष्मी बाई मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल से की थी।
कैप्टन मनोज पांडेय पढ़ाई के साथ-साथ स्पोर्ट्स में भी अच्छे थे। मुख्य रूप से उनकी बॉक्सिंग और बॉडी बिल्डिंग में ज्यादा अधिक रूचि थी। 1990 में उन्हें जूनियर एनसीसी (NCC)उत्तर प्रदेश डायरेक्टर के बेस्ट कैडेट घोषित किया गया था।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद आर्मी में उनके सिलेक्शन के समय सर्विस सिलेक्शन बोर्ड के इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पुछा गया की 'वह आर्मी क्यों ज्वाइन करना चाहते हैं?" तो मनोज कुमार पांडेय ने इस सवाल के जवाब में कहा कि "मैं परम वीर चक्र जीतना चाहता हूं।"
नेशनल डिफेंस एकेडमी से ग्रेजुएट होने के बाद मनोज कुमार को लेफ्टिनेंट के तौर पर कमीशन किया गया। मनोज कुमार पांडेय की पहली पोस्टिंग 1/11 गोरखा राइफल्स में हुई।
मिलिट्री करियर
नेशनल डिफेंस एकेडमी से पास होने के बाद उन्हें लेफ्टिनेंट के पद पर 7 जून 1997 में 1/11 गोरखा राइफल्स में कमीशन किया गया। कारगिल युद्ध से पहले 1/11 गोरखा राइफल्स सियाचिन ग्लेशियर में अपना डेढ़ साल पूरा करने के बाद पूने में शांति समय की तरफ जा रहें थे। कारगिल में लगातार बढ़ रहीं पाकिस्तानी गतिविधियों को देख कर इस बटालियन को बटालिक सेक्टर, कारगिल की ओर जाने के आदेश दिए गए।
गोरख युनिट को कमांड कर्नल ललित राय कर रहे थे। जिन पर जुबेर, कुकर थाम और खालुबरों हिस्से को वापस कब्जे में लाने का जिम्मा था। कर्नल ललीत राय द्वारा कमांड वाली इसी यूनिट का हिस्सा मनोज कुमार पांडेय भी थे।
कारगिल युद्ध में मनोज कुमार पांडेय का योगदान
2 और 3 जुलाई 1999 में मनोज कुमार पांडेय के नेतृत्व वाली टीम को खालूबरों हिस्से पर वापस भारत का कब्जा हासिल करने के अभियान का जिम्मा दिया गया।
1999 में 2 और 3 जुलाई की रात को मनोज कुमार पांडेय के नेतृत्व वाली टीम खालुबार की ओर बढ़ने लगी। अपने उद्देश्य के करीब आते- आते पाकिस्तानी सेना की ओर से भारी गोलीबारी शुरू होने पर वह और उनकी टीम उस गोलीबारी की चपेट में आई। दिन के उजाले की वजह से उनकी टीम एक कमजोर स्थिति में थी लेकिन उनकी बहादुरी और तेजी से निर्णय लेने की क्षमता के कारण उन्होंने अपनी पलटन को जल्दी से लाभकारी स्थिति में पहुंचा दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पलटन के एक हिस्से को दाईं ओर से हमले के लिए भेजा और बाईं ओर से वह खुद हमला करने के लिए गए।
अपनी ओर से आगे बढ़ते हुए मनोज कुमार पांडेय ने दो दुश्मनों को मार गिराया और आगे दूसरे बंकर की ओर बढ़ते हुए दो और दुश्मनों को मार गिराया। जब वह तीसरे स्थान पर दुश्मनों के खात्मा करने के दौरान उनके पैर और कंधे पर गहरी चोट आई लेकिन गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी पलटन के साथ चौथे स्थान पर हमला करना जारी रखा और ग्रेनेड के इस्तेमाल से उसे नष्ट कर दिया गया। इस विस्फोट से उनके माथे पर भी काफी घातक चोट आई लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय से खालूबर पर भारत का कब्जा वापस हासिल किया। लेकिन इस अभियान में वह वीरगति को प्राप्त हो गए। 3 जुलाई 1999 में मनोज कुमार पांडेय वीरगति को प्राप्त हुए।
सर्विस सिलेक्शन बोर्ड के इंटरव्यू के दौरान परम वीर चक्र जीतने की बात कहने वाले मनोज कुमार पांडेय ने अपनी कही बात सच कर दिखाई और उन्हें मरणोपरांत कारगिल युद्ध में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से 2004 में सम्मानित किया गया।
24 साल की उम्र में उन्होंने अपने देश की सेवा करते हुए अपनी जान देश के नाम न्योछावर की। उनके इस अभूतपूर्व योगदान को भारत कभी नहीं भुला पाएगा। भारत के लिए उनका बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा। मनोज कुमार पांडेय के लिए इस गौरवशाली योगदान के लिए उन्हें हमारा नमन।