चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश होगा भारत, जानें कितना अहम है मिशन?

Chandrayaan 3 Mission: बीते 14 जुलाई को चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग की गई, जो आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से हुई। लेकिन कमाल की बात ये रही कि इसी बीच रूस ने भी अपना चंद्रमा मिशन लूना-25 लॉन्च किया, जो 11 अगस्त को भेजा गया था। उम्मीद थी कि लूना-25, चंद्रयान-3 से पहले चंद्रमा पर पहुंचेगा, लेकिन कल ही खबर आई कि अब ये क्रैश हो चुका है। ऐसे में अब सभी की निगाहें भारतीय चंद्रमा मिशन चंद्रयान-3 पर टिकी हुई है। आने वाले 23 अगस्त को यह मिशन चंद्रमा पर उतरेगा और एक नया इतिहास रचेगा।

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश होगा भारत, जानें कितना अहम है मिशन?

बता दें, चंद्रयान-3 के चर्चा में अधिक होने के पीछे एक और भी कारण ये भी है कि यह चंद्रमा के उस हिस्से पर उतरने की तैयारी कर रहा है, जहां आज तक कोई भी देश पहुंच नहीं सका। चंद्रमा का ये हिस्सा दक्षिणी ध्रुव है, जहां पर चंद्रयान-3 सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला है। रूस का मिशन लूना-25 अगर फेल न हुआ होता तो ये भी इसी हिस्से पर उतरने वाला था, जिसका समय आज ही का यानी 21 अगस्त का था, लेकिन इसके फेल होने के बाद अब भारत के लिए ये राह काफी आसान हो गई है। अब ऐसे में अगर चंद्रयान-3 सॉफ्ट लैंडिंग कर लेता है, तो यह भारत के लिए गर्व की बात तो होगी ही, इसके साथ ही यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पहुंचने वाला पहला देश भी बन जाएगा।

इस मिशन को चंद्रमा के उस हिस्से तक भेजने की तैयारी है, जिसे डार्क साइड ऑफ मून कहा जाता है। इसका कारण है कि यह हिस्सा पृथ्वी के सामने नहीं आता और इसीलिए यह अंधेरा होता है। इस हिस्से पर आज तक कोई भी देश सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर सका है। इसमें अमेरिका और चीन जैसे देश भी कोशिश कर चुके हैं। इसीलिए भारत के लिए यह मिशन काफी अहम बताया जा रहा है।

दक्षिणी ध्रुव को लेकर क्यों इतनी चर्चा?

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि इस हिस्से में काफी गड्ढे बने हुए हैं, जहां पानी होने की उम्मीद जताई जाती रही है। ऐसे में अगर ये बात साबित हो जाती है और इसके कुछ प्रमाण मिल जाते हैं तो भविष्य में इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वायु और रॉकेट के ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

आखिर कोई भी देश अब तक दक्षिणी ध्रुव पर क्यों नहीं उतर सका?

दरअसल, भूमध्य रेखा के पास उतरना काफी आसान और सुरक्षित है। साथ ही उपकरणों के लंबे और निरंतर संचालन के लिए यहां के इलाके और तापमान भी काफी अनुकूल हैं। यहां की जमीन की समतल और चिकनी है, इसके अलावा यहां ढलान भी ना के बराबर है। यहां तक कि यहां काफी कम गड्ढे हैं और सूर्य की किरणें भी यहां आसानी से पहुंच जाती है, जिससे यहां उतरना काफी आसान बताया जाता है। इसके अलावा, सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों को भी ऊर्जा की नियमित आपूर्ति मिलती रहती है और फिर इनका नियमित संचालन भी होता रहता है।

भूमध्य रेखा पर लैंडिंग करने में अब तक तीन देश ही हुए सफल..

चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में अब तक सिर्फ तीन देश ही सफल हो पाए हैं, इनमें अमेरिका, चीन और पूर्ववर्ती सोवियत संघ है। लेकिन ये तीनों देश चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं बल्कि अगले हिस्से भूमध्यरेखीय क्षेत्र में उतरे थे। ऐसे में अब भारत अपने मिशन के काफी करीब बताया जा रहा है और इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय लिखने को तैयार है।

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English summary
Chandrayaan 3 Mission: Another reason behind Chandrayaan-3 being more in discussion is that it is preparing to land on that part of the Moon, where no country could reach till date. This part of the Moon is the South Pole, where Chandrayaan-3 is about to make a soft landing. In such a situation, if Chandrayaan-3 makes a soft landing, then India will be the first country to reach the south pole of the Moon.
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