स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे बहुत वीर सेनानी थे जिनके किस्से कहानी इतिहास के पन्नों में कहीं दबे हुए है। 15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 साल गुलामी करने के बाद देश को आज़ाद किया था। जिसके बाद से भारत प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में बड़े ही गर्व के साथ मनाता है।
भारत इस साल आज़ादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस आज़ादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। जो कि आज़ादी के 75वां स्वतंत्रता दिवस से 75 हफ्ते पहले यानि कि 12 मार्च 2021 के देश में मनाया जा रहा है। आज़ादी का अमृत महोत्सव के चलते देश में जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जा रहा है। बता दें कि ये आज़ादी का अमृत महोत्सव 15 अगस्त 2023 तक मनाया जाएगा।
चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको देश के एक ऐसे ही वीर स्वतंत्रता सेनानी केशवराव मारुतराव जेधे के बारे में बताते हैं। जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। केशवराव मारुतराव जेधे (देशमुख) भारतीय स्वतंत्रता के समय पुणे के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के नेता थे। पुणे के प्रसिद्ध स्वारगेट चौक का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
केशवराव मारुतराव जेधे का जन्म 25 अप्रैल 1896 को देशमुख वंश के एक संपन्न मराठा परिवार पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। अपने पिता मारुतराव जेधे के ये सबसे छोटे पुत्र थे। केशवराव अपने परिवार सदस्य ज्योतिराव फुले द्वारा स्थापित सत्यशोधक समाज से निकटता से जुड़े थे और उन्होंने विशेष रूप से 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में समाज की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मारुतराव जेधे न केवल एक उल्लेखनीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि वे कांग्रेसी नेता भी थे जिन्होंने अस्पृश्यता को दूर करने और किसानों की स्थिति में सुधार के लिए भी काम किया। वह बॉम्बे विधान सभा के सदस्य थे, श्रम का प्रतिनिधित्व करते थे और विधायक (1941), संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के एक नेता और महाराष्ट्र प्रांतीय कांग्रेस समिति के पूर्व अध्यक्ष थे।
1935 में कांग्रेस की स्वर्ण जयंती मनाने के अवसर पर, केशवराव ने 31 दिसंबर 1935 को स्वदेशी प्रदर्शनी की शुरुआत की।
भाषण देते हुए उन्होंने अपने गैर-ब्राह्मण भाइयों को कांग्रेस आंदोलन में पूरे दिल से भाग लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि "गैर-ब्राह्मणों ने अब तक सामाजिक और धार्मिक आंदोलनों में भाग लिया है, लेकिन अब यह उचित समय है कि उन्हें राजनीतिक आंदोलनों में उतनी ही गंभीरता से भाग लेना चाहिए जितना उन्होंने अन्य आंदोलनों में किया है। केवल कुछ मंत्री पद या सेवाएं बाद में बड़े पैमाने पर गैर-ब्राह्मणों को संतुष्ट नहीं करेंगी।"
जेधे ने 2 दिसंबर 1940 को पूना और सासवद में सत्याग्रह की भी पेशकश की। उन्हें उसी दिन भारत की रक्षा नियमों के तहत उनके आवास पर गिरफ्तार किया गया और यरवदा ले जाया गया। जिसके बाद उन्हें सेंट्रल जेल में अठारह महीने के कठोर कारावास की सजा दी गई और बी श्रेणी में रखा गया। केशवराव मारुतराव जेधे का निधन 12 नवंबर 1959 को पुणे में हुआ।