Independence Day Shayari In Hindi 2021: 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर शायरी, कोट्स, मैसेज, कविता और नारे आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।इस वर्ष भारत 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और कोरोनावायरस (Covid-19) के कारण स्वतंत्रता दिवस की थीम 2021 में 'फर्स्ट नेशन ऑलवेज फर्स्ट' रखी गई है। 15 अगस्त 1949 को भारत आजाद हुआ, तब से हर वर्ष भारत 15 अगस्त पर स्वतंत्रता दिवस मनाता है। प्रधानमंत्री लाल किले पर झंडा फहराते हैं। बच्चे स्कूल-कॉलेज में स्वतंत्रता दिवस पर निबंध (Independence Day Essay In Hindi) और स्वतंत्रता दिवस पर भाषण (Independence Day Speechi In Hindi) देते हैं। लोग एक दूसरे को स्वतंत्रता दिवस पर शायरी, कोट्स, मैसेज, कविता और देशभक्ति नारे भेजते हैं, इसलिए हम आपके लिए स्वतंत्रता दिवस पर शायरी, स्वतंत्रता दिवस के कोट्स, स्वतंत्रता दिवस के मैसेज, स्वतंत्रता दिवस की कविता और स्वतंत्रता दिवस पर देशभक्ति नारे लाये हैं। जिन्हें आप फसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया टूल के माध्यम से अपनों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सन्देश दे सकते हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर शायरी: Happy Independence Day Shayari In Hindi 2020
हर इक से पूछते फिरते हैं तेरे ख़ाना-ब-दोश
अज़ाब-ए-दर-ब-दरी किस के घर में रक्खा जाए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दिल की तमन्ना थी मस्ती में मंज़िल से भी दूर निकलते
अपना भी कोई साथी होता हम भी बहकते चलते चलते
मजरूह सुल्तानपुरी
मुझे अपनी बीवी पे फ़ख़्र है मुझे अपने साले पे नाज़ है
नहीं दोश दोनों का इस में कुछ मुझे डाँटता कोई और है
ज़ियाउल हक़ क़ासमी
कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
हाथ में तस्बीह हो या दोश पर ज़ुन्नार हो
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
दस्त-ए-शिकस्ता अपना न पहुँचा कभी दरेग़
वाँ तर्फ़-ए-दोश बर-सर-ए-दस्तार ही रहा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
है दिल में घर को शहर से सहरा में ले चलें
उठवा के आँसुओं से दर-ओ-बाम दोश पर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
तीरगी की क्या अजब तरकीब है ये
अब हवा के दोश पर दीवा रखा है
ताहिर अज़ीम
फूल अफ़्सुर्दा बुलबुलें ख़ामोश
फ़स्ल गुल आई है ख़िज़ाँ-बर-दोश
हफ़ीज़ बनारसी
हो कर शहीद इश्क़ में पाए हज़ार जिस्म
हर मौज-ए-गर्द-ए-राह मिरे सर को दोश है
मिर्ज़ा ग़ालिब
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
कितने हैं जो मय-कदा बर-दोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
कभी दीवार को तरसे कभी दर को तरसे
हम हुए ख़ाना-ब-दोश ऐसे कि घर को तरसे
जवाज़ जाफ़री
राह-ए-हयात में न मिली एक पल ख़ुशी
ग़म का ये बोझ दोश पे सामान सा रहा
अख़लाक़ अहमद आहन
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
हम ख़ाना-ब-दोशों को कहीं घर नहीं मिलता
रिन्द लखनवी
हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें
जो दोश पर लिए हो उस के बर-ख़िलाफ़ क्या करें
हुमैरा रहमान
तमाम ख़ाना-ब-दोशों में मुश्तरक है ये बात
सब अपने अपने घरों को पलट के देखते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ज़रा रहने दो अपने दर पे हम ख़ाना-ब-दोशों को
मुसाफ़िर जिस जगह आराम पाते हैं ठहरते हैं
लाला माधव राम जौहर
लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर
सुबू-ब-दोश है साक़ी जो आबला दिल का
शाह नसीर
यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला
इतने सादा हैं कि घर-बार उठा लाएँगे
अता तुराब