हिंदी दिवस पर हर साल साहित्यकार कई प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं ताकि इस दिन के महत्व को लोगों को समझाया जा सके और हिंदी भाषा को आगे बढ़ाया जा सके है। भारत में प्रमुख 122 भाषाएं है और अन्य 1599 भाषाएं हैं। इन सभी भाषाओं में से 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला है। हिंदी को लेकर अक्सर ही चर्चा तेज रहती है की इस भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया गया। हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए 1953 में पहला हिंदी दिवस मनाया गया था। हिंदी दिवस का महत्व लोगों को समझाने के लिए हर साल हिंदी दिवस को और धूम- धाम से मनाया जाता है। आइए हिंदी दिवस पर पढ़े कुछ चुनिंदा कविताएं।
हिंदी दिवस कविताएं
1. पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा।
हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।
बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती।
कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती।
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही।
इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा है वही।
2. बनने चली विश्व भाषा जो,
अपने घर में दासी,
सिंहासन पर अंग्रेजी है,
लखकर दुनिया हांसी,
लखकर दुनिया हांसी,
हिन्दी दां बनते चपरासी,
अफसर सारे अंग्रेजी मय,
अवधी या मद्रासी,
कह कैदी कविराय,
विश्व की चिंता छोड़ो,
पहले घर में,
अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो।
3. राष्ट्रभाषा की व्यथा।
दु:खभरी इसकी गाथा।।
क्षेत्रीयता से ग्रस्त है।
राजनीति से त्रस्त है।।
हिन्दी का होता अपमान।
घटता है भारत का मान।।
हिन्दी दिवस पर्व है।
इस पर हमें गर्व है।।
सम्मानित हो राष्ट्रभाषा।
सबकी यही अभिलाषा।।
सदा मने हिन्दी दिवस।
शपथ लें मने पूरे बरस।।
स्वार्थ को छोड़ना होगा।
हिन्दी से नाता जोड़ना होगा।।
हिन्दी का करे कोई अपमान।
कड़ी सजा का हो प्रावधान।।
हम सबकी यह पुकार।
सजग हो हिन्दी के लिए सरकार।।
4. गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार,
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला,
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला,
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी,
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी।
5. गर्व है वर्णमाला पर इसकी,
कठिन है मगर आसान समझता हूं।
होता हूं आनंद विभोर मैं,
जब हर शब्द इसका पढ़ता हूं।
लगे आसान वेद पुराण उपनिषद,
जब हिंदी भाषा में सुनता हूं।
कोई ना संशय रहता मन में,
हर शब्द को भावार्थ में समझता हूं।
हर भाषा का एक स्वरूप होता है,
मैं हिंदी को निजी स्वरूप समझता हूं।
आसान होते संवाद मेरे,
जब कत्ल हिंदी में कहता हूं।
6. संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी,
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी,
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी,
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी,
पढ़ने व पढ़ाने में सहज़ है सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी,
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी,
वागेश्वरी के माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी,
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपने पन से लुभाती है ये हिन्दी,
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।
7. हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दुस्तान की जाई हूँ......
सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी,
ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी,
सूर, जायसी, तुलसी कवियों की,
सरित-लेखनी से बही हिन्दी,
हिन्दी से पहचान हमारी,
बढ़ती इससे शान हमारी,
माँ की कोख से जाना जिसको,
माँ,बहना, सखी-सहेली हिन्दी,
निज भाषा पर गर्व जो करते,
छू लेते आसमान न डरते,
शत-शत प्रणाम सब उनको करते,
स्वाभिमान..अभिमान है हिन्दी...
हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दुस्तान की जाई हूँ।
8. मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे,
राष्ट्रभाषा हूँ मैं अभिलाषा हूँ मैं,
एक विद्या का घर पाठशाला हूँ मैं |
मेरा घर एक मंदिर बचा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
देख इस भीड़ में कहां खो गई,
ऐसा लगता है अब नींद से सो गई |
प्यार की एक थपक से जगा लो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं हीं गद्य भी बनी और पद्य भी बनी,
दोहे, किससे बनी और छंद भी बनी |
तुमने क्या-क्या ना सीखा बता दो मुझे,
मैं हूँ हिंदी वतन की बचा लो मुझे |
मैं हूँ भूखी तेरे प्यार की ऐ तू सुन,
दूँगी तुझको मैं हर चीज तू मुझको चुन।
9. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।।
सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।।
10. मुगल आए या आए गोरे
सबको मार भगाया था।
सारा भारत जब आपस में
हिंदी से जुड़ पाया था।
तभी तो हिंदी भाषा में
गाया जाता राष्ट्रगान है,
संस्कृत से संस्कृति हमारी
हिंदी से हिंदुस्तान है।
हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई
आपस में ये सब भ्राता हैं
है हिंदी जिसके कारण ही
आपस में इनका नाता है,
मिल जुलकर जो ये रहते तो
भारत का होता निर्माण है
संस्कृत से संस्कृति हमारी
हिंदी से हिंदुस्तान है।
हिंदी में सीखें पढ़ना हम
गाने हिंदी में गाते हैं
फिर क्यों हिंदी अपनाने में
व्यर्थ ही हम घबराते हैं,
सारे देश के संचार साधनों
की यही तो एक जान है
संस्कृत से संस्कृति हमारी
हिंदी से हिंदुस्तान है।