Gandhi Jayanti 2022: स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले गांधी जी और सरदार पटेल के संबंधों के बारे में

भारत की स्वतंत्रता की जब भी बात होती है। उसमें योगदान देने वाले और स्वतंत्रता कुछ लोगों का नाम लिए बिना बात ही नहीं की जा सकती है। उन महापुरुषों में सबसे पहला नाम है महात्मा गांधी का और फिर आते हैं वो दो लोग जिन्होंने आजादी के बाद भी भारत की सेवा की और देशा का कार्यभार संभाला, वह थें सरदार पटेल और नेहरू। गांधी जी की भावनाए दोनों ही व्यक्तियों के साथ जुड़ी थी। भारत की आजादी के बाद हुए विभाजन के बाद जब प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव आई तब भी इन्ही दो नेताओं का नाम आया। बर इसमें अंतर ये था कि नेहरू गांधी जी की पसंद थी और सरदार पटेल जिन्हें देश के लोह पुरुष कहा जाता है वह भारत के लोगों की पसंद थी। लेकिन क्योंकि गांधी जी चाहते की नेहरू प्रधानमंत्री बने तो उन्हें ही प्रधानमंत्री का पद दिया गया और सरदार पटेल को उप प्रधानमंत्री का पद दिया गया। भारत की सभी रियासतों को एकजुट करने वाले पटेल और गांधी के संबंधों की बात करें तो उनके संबंध हमेशा से ही बहुत अच्छे रहे हैं। गांधी जी के विचारों से पटेल बहुत प्रभावित थे। पटेल की पहली मुलाकात गांधी जी से गुजरात क्लब में हुई थी। कुछ लोगों ने पटेल को पहले भी गांधी जी से मिलने की सलाह दी थी लेकिन उन्होंने इस बात को अनसुना किया था लेकिन फिर गांधी जी गुजरात क्लब पहुंचे जहां दोनों की मुलाकात हुई। लेकिन फिर भी शुरुआत में पटेल ने गांधी जी की किसी बात पर कोई रूचि नहीं दिखाई लेकिन जब उन दोनों ने आमने सामने बात की तो गांधी जी की बातों से पटेल प्रभावित हुए। वह अहिंसा और हिंसा के मत से नहीं लेकिन गांधी जी भारत को आजाद करने की निष्ठा से अधिक प्रभावित हुए इस प्राकर दो महान हस्तियों की मुलाकत हुई और देखते ही देखते दोनों में घनिष्ठ संबंध स्थापित हुए। आइए जानते हैं दोनों के संबंधों के बारे में।

Gandhi Jayanti 2022: स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले गांधी जी और सरदार पटेल के संबंधों के बारे में

गांधी और पटेल

गांधी और पटेल के संबंध शुरुआत से ही अच्छे थे। पटेल को गांधी के समर्पित शिष्य के रूप में देखा जाता था। ऐसा नहीं था कि ये संबंध केवल राजनीति थे, नहीं इन दोंनों के बीच की घनिष्ठा इन सबसे ऊपर थी। कई स्थितीयों में आंदोलनों के दौरान और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी उनके बीच मतभेद हुए है लेकिन इससे उनके संबंधों में किसी भी प्रकारी की खटास नहीं आई है। गांधी और पटेल के बीच मूल्यों और मानदंडों में एकता थी और उनके बीच स्नेह और एक दूसरे के प्रति निष्ठा की भावना इतनी अधिक थी कि इसे अंत तक देखा जब विभाजन के बाद गाधी जी ने प्राथना सभा से पहले पटेल के वादा लिया की नेहरू की नीतियों की वजह से वह अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे उस दिन गांधी की मृत्यू नथूराम गोडसे द्वारा 3 गोलीया मर के की गई थी। पटेल ने गांधी से किए अपने वादे को अंत तक निभाया। ये तो एक कारण है उनके रिशते का जबकि इसी प्रकार के कई अन्य उदाहरण देश ने दखे हैं।

1932 यरवदा जेल में

गांधी जी सहित कई अन्य नेता थे जो उसी दौरान उस जेल में थे जिनमें पटेल और महादेव देसाई भी शामिल थे। 1932 में गांधी जी ने सांप्रदायिक पुरस्कार के सवाल पर अमरण अनशन किया था और गांधी जानते थे कि उनके इस फैसले का प्रभाव सीधा पटेल पर पड़ेगा। वहीं गांधी के इस अनशन की खबर से बहुत चिंता में थे और मानसिक तनाव से गुजर रहे थे। पटेल की येही खबर जेल में मौजुग महादेव देसाई ने गांधी जी को दी। इस जानकारी पर गांधी जी ने कहा की मुझे पात है वल्लभभाई जैसे आसाधारण व्यक्ति का साथ देने में मुझ पर भगवान की कितनी बड़ कृप्या है।

एक तरफ गांधी के अनशन से पटेल चिंता में थे तो दूसरी तरफ गांधी जी भी पटेल के गिरते स्वास्थ को लेकर बहुत परेशान थे। इस स्थिती में गांधी जी ने पटेल को कई पत्र लिख जिसमें शुरू से अंत तक उनके स्वास्थ की चर्चा होती थी।

1934 में हुए गांधी जी पर हमले पर पटेल की चिंता

1934 में गांधी जी पर हुए शारीरिक हमले से पटेल बहुत चिंतित थे। इस समय की बात उल्लेख करते 1934 को बॉम्बे क्रॉनिकल की रिपोर्ट में छापा गया था। पटेल द्वारा दिए इस बयान में उन्होंने बताया की "उन्होंने गांधीजी को लगभग दो महीने पहले चेतावनी दी थी कि पूना उनके लिए परेशानी साबित हो सकती है, क्योंकि उन्हें पता था कि इस तरह का पूना में फैलाया जा रहा था जहर का।"

पटेल के नाम गांधी जी का पत्र

1937 में गांधी जी द्वारा एक पत्र लिखा गया जिसमें उन्होंने लिखा "मुझे पता था कि तुम बीमार पड़ने वाले हो। आप दूसरों के लिए सरदा हो सकते हो लेकिन अपने स्वंय के दास से बेहतर नही लगते। यदि आप हर चीज में समय के पाबंद हैं और अपने दैनिक जीवन को नियंत्रित करते हैं, तो आप लंबे समय तक जीवित रहेंगे। इसे केवल केतली को काला कहने वाले बर्तन के रूप में खारिज न करें।"

कई मामलों में अंतर के बाद भी संबंध थे मजबूत

पटेल और गांधी के अच्छे संबंध का मतलब ये नहीं था कि पटेल अपनी बात नहीं रख सकते हैं, बल्कि वह अपनी राय बिना किसी हिचकिचाहट के रखा करते थे और इस पर चर्चा किया करते थे। गांधीजी पटेल के स्पष्टवादी स्वभाव को जानते थे। वह हमेशा उनकों लेकर सुरक्षात्मक थे। गांधी जानते थे कि पटेल अपने कई भाषणों में कठोर और 'गर्म-सिर वाले' दिखाई दे सकते हैं तो ऐसी स्थिती में कई लोग उनके अन्यथा नेक इरादों, राष्ट्र और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति समर्पण को गलत मान सकते हैं। कई बार पटेल द्वारा दिए कठोर शब्दों में दिए भाषण पर गांधी जी ने आपत्ति जाताई है। 25 अप्रैल 1935 में उत्तर प्रदेश में हुए किसान सम्मेलन में सरदार पटेल के अध्यक्षीय भाषण पर गांधी जी ने टिप्पणी जताते हुए कहा की लखनऊ में पटेल के भाषण का स्वर सही नहीं था।

कुछ ऐसे क्षण जहां दोनों के बीच मतभेद उत्पन्न हुआ

दोनों के लक्ष्य हमेशा से भारत की आजादी था। लेकिन ऐसी कई स्थितियां उत्पन्न हुई हैं जहां दोनों के बीच कई मतभेद हुए हैं लेकिन इन मतभेदों का इनके रिश्ते पर कोई प्रभाव नहीं पड़ है। जिन मुद्दों पर दोनों के बीच मचभेद हुआ वो इस प्रकार है- राज्य कला में अहिंसा की प्रासंगिकता, 1935 के भारत सरकार अधिनियम की स्वीकृति, 1936-1938 के दौरान परिषद में प्रवेश और मंत्रालयों का गठन, कैबिनेट मिशन, मुस्लिम लीग और जिन्ना, समाजवादियों, आरएसएस, हिंदू महासभा, सांप्रदायिकता, और अंत में विशेष रूप से 1940 के दशक के दौरान पटेल के तीखे और मजबूत भाषणों के साथ संबंध।

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English summary
Talking about the relations between Patel and Gandhi, who united all the princely states of India, their relations have always been very good. Patel was greatly influenced by Gandhiji's ideas. Patel's first meeting with Gandhiji was at the Gujarat Club. Patel did not show any interest in anything of Gandhiji, but when both of them spoke face to face, Patel was impressed by Gandhiji's words. He was not influenced by the doctrine of non-violence and violence, but by Gandhiji's commitment to free India.
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