महात्मा गांधी और ज्वाहरलाल नेहरू दोनों ही कांग्रेसे पार्टी के बड़े नेता थे और दोनों ही पढ़े-लिखे थे। इन दोनों नेताओं ने भारत को स्वतंत्र करने के लिए बहुत संघर्ष किया है। नेहरू गांधी को अपने गुरु मानते थे। लेकिन इसका ये मतलब नहीं था की वह गांधी के सामने अपने विचार नहीं रखते थे। वह कई बार गांधी के कुछ मतों से असमर्थ भी रहे हैं और कई बार उनके फैसले के समर्थन में भी रहे है। गांधी जी शुरू से ही नेहरू को आजाद भारत का नेतृत्व करने वाले नेता के तौर पर देखते थे और वह नेहरू का समर्थन भी करते थे। भले ही इन दोनों का उद्देश्य एक रहा हो लेकिन वे अपनी विचारधाराओं और जीवन शैली में एक दूसरे से बहुत भिन्न थें। आइए जाने कैसे एक दूसरे अलग थे।
गांधी जी का संक्षित परिचय
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था। भारत के इतिहास में गांधी जी उन व्यक्तियों में से एक थें जिन्होंने कई मोर्चों जैसे राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, समाजिक और आर्थिक पर एक साथ लड़ाई की। वह दक्षिण अफ्रिका में एक लंबे समय तक रहे जहां उन्होंने भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव और अत्याचार को होते देखा और सहा भी। दक्षिण अफ्रिका में उन्होंने अपना समय एक वकिल के तौर पर बिताया जहां वह भारतीय मुस्लिम व्यक्तियों के एक केस के सिलसिले में गए थे। अहिंसा के खिलाफ अपनी रणनीती को उन्होंने वहीं रह कर विकसीत किया। भारत आने पर उन्होंने अपनी इस रणनीति को ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रोयग किया और अहिंसा के मार्ग पर देश की स्वतंत्रता का सपना देखा। जिसके लिए उन्होंने कई आंदोलनों की शुरूआत की। इन आंदोलनों में भारत के प्रत्येक व्यक्ति ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें भारत के राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया जाता है।
नेहरू का संक्षिप परिचय
ज्वाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री जिन्हें चाचा नेहरू के नाम से भी जाना जाता है। नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 में उत्तर प्रदेश में हुआ था। प्रधानमंत्री पदे कि लिए वह गांधी जी की पहली पसंद थे। नहेरू ने भारत की स्वंतत्रता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था। वह आधुनिक भारत के विचार में विश्वास रखते थे। उनके जन्मदिन को भारत में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। नेहरू जी ने भारत में आधुनिक कृषि विकास की नीव रखी थी।
गांधी और नेहरू में अंतर
गांधी और नेहरू का दृष्टिकोण- दोनों के दृष्टिकोण की बात करें तो देख को मिलता है कि गांधी जी का दृष्टिकोण प्राच्य था वहीं दूसरी तरफ नेहरू का दृष्टिकोण पश्चिमीकृत था। गांधी भारत की सांस्कृतिक विरासत से अत्यधिक प्रेरित थे और नेहरू पर वेस्टर्न शिक्षा का अधिक प्रभाव था जो उनके वाद- व्यवहार में भी झलकता था। देखा जाए तो कुछ हद तक गांधी जी उनके इसी व्यवहार को पसंद करते थे।
लोकतंत्र पर दोनों के विचार - लोकतंत्र के बारे बात करें तो दोनों के विचारों में यहां भी काफी अंतर था। गांधी के विचार आध्यात्मिक थें और नेहरू संसदीय लोकतंत्र में विश्वास करते थें। गांधी ने पाखंड और भ्रष्टाचार के बिना एक समाज की परिकल्पना की और एक ऐसे समाज का निर्माण करने कि परिकल्पना की जहां संपत्ति और पद महत्वपूर्ण न हो। उन्होंने शारीरिक श्रम को इस समाज का आधार माना था।
वहीं नेहरू संस्थाओं में आस्था रखते थे। उनके लिए लोकतंत्र का आधार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार था। उन्होंने अपनी विचारधारा के रूप में लोकतांत्रिक समाजवाद का हमेशा पालन किया।
अर्थव्यवस्था - गांधी जी भारत की आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के विचार में विश्वास रखते थे। वह कुटीर उद्योग (हाथ कताई, हाथ की बुनाई, खादी) को आगे बढ़ा कर अर्थव्यवस्था स्थापित करना चाहते थे। नेहरू ने अपनी विचारधारा के अनुसार वह एक मजबूत अर्थव्यवस्था चाहते थे। जिसमें बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण, वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति आदि में शामिल हो।
अन्य देशों के साथ संबंध - गांधी जी का मानना था कि भारत को अन्य किसी भी देशों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए वहिं नेहरू थे जिनका मानना था की अन्य देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने आवश्यक है। वह दुनिया की यथासंभव मदद करने में विश्वास रखते थें। उनका मानना था कि विश्व में भारत के उत्थान और विकास के लिए अन्य देशों के साथ संबंध स्थापित करना अतिआवश्यक है।
आध्यात्मिक विचार - गांधी के बहुत अधिक आध्यात्मिक व्यक्ति थें। उन्होंने सत्य, अहिंसा और पवित्रता के सिद्धांत से कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। वह अपने इन आदर्शों के माध्यम से स्वतंत्रता की प्राप्ति चाहते थे और उन्होंने प्राप्त भी की। कई बार कुछ क्षेत्रों में शांतिपूर्ण आंदोलनों ने भले ही हिंसा का रूप लिया हो लेकिन उन्होंने लोगों को सत्य, अहिंसा और पवित्रता का सिद्धांत समझा कर स्थिति को सुधारने का प्रयत्न भी किया। वहीं दूसरी ओर नेहरू अधिक आध्यात्मिक नहीं थे, वह हमेशा से ही अधिक व्यावहारिक थें। यदि उनके सामने कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जिसको केवल समझौते के माध्यम से ही सुलझाया जा सके, तो वह इस स्थिति में समझौता करने के लिए तैयार थें।
पारंपरिक और आधुनिक विचार - गांधी जी को उनके योगदान के लिए राष्ट्रपिता का नाम दिया गया क्योंकि वह एक दयालु, और मेहनती व्यक्ति थे। वह हर नागरिक को अपने परिवार की तरह मानते थे। साथ ही वह पारंपरिक भारत के समर्थक थे। जहां गांधी को पारंपरिक भारत के समर्थक रूप में देखा गया वहीं नेहरू को आधुनिक भारत के वास्तुकार के रूप में जाना गया, क्योंकि वे व्यावहारिक विचार के व्यक्ति थे और भारत के आधुनिकीकरण में विश्वास रखते थे।