आज का समय डिजिटल का दौर है जहां सभी लोग ऑनलाइन कई तरह की सेवाएं प्राप्त करते हैं या अन्य कई तरह की वस्तुओं को ऑर्डर करते हैं। इन सभी के साथ हम कई सारी अन्य एप का प्रयोग अपने कई कार्य को आसान बनाने के लिए करते हैं जिसे डाउनलोड करने के बाद प्रयोद करने के लिए कुछ व्यक्तिगत जानकारी तक साझा करनी पड़ती है। इसके साथ आपने जरूर नोटि्स किया होगा की कितनी बार किसी एप को डाउनलोड करने के बाद आप से कुछ ऐसी चीजों की अनुमति ली जाती है जो आपके कार्य से संबंधित नहीं है जैसे संपर्क नवंबर, फोटो गैलरी, नेविगेशन आदि। यदि आप इन्हें अनुमति नहीं देते हैं तो आप उस एप का प्रयोग नहीं कर सकते हैं, तो न चाह कर भी आप उन्हें अनुमति देते हैं और इस तरह से आपका व्यक्तिगत डाटा उन सर्विस प्रोवाइडरों के पास जाता है जिसका प्रयोग वह बाद में भी कर सकेत हैं। जो कि नुकसानदायक साबित हो सकता है।
2018 से भारत मे डाटा संरक्षण कानून की बात की जा रही है। सेवानिवृत न्यायमूर्ति के.एस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के एक एतिहासिक निर्णय के दौरान सर्वोच्चय न्यायालय द्वारा डाटा संरक्षण की आवश्यकता महसूस की गई और न्यायमूरर्ति श्रीकृष्ण के अध्यक्ष वाली समिति द्वारा डाटा संरक्षण कानून की सलाह दी गई। इसके लिए ड्राफ्ट भी तैयार किया गया। जो लोकसभा में 2019 में पेश किया गया था। कोरोना के कारण इसे लाने में देरी हुई और सयुक्त संसदीय समित द्वारा आवश्यक बदलाव के साथ इस विधेयक पर एक रिपोर्ट पेश की, बाद में इसकी हवाला देते हुए सरकार ने इस कानून को वापस लिया और अब 2022 में डाटा व्यक्तिगय डाटा संरक्षण विधेयक 2022 का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। भारत के अलावा कई देशों ने पहले से ही व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण को लेकर कानून बनाया हुआ है। आइए आपको इस विधेयक के बारे में विस्तार से जानकारी दें।
डाटा संरक्षण कानून 2019
डाटा संरक्षण कानून (डेटा प्रोटेक्शन लॉ) का सबसे पहला विधेयक व्यक्तिगत डाटा संरक्षण 2018 में गठिक किया गया था। इस विधेयक को न्यायमूरर्ति श्रीकृष्ण की अध्यक्ष वाली समिति द्वारा भारत के लिए एक डेटा संरक्षण कानून के जनादेश के साथ प्रस्तावित किया गया था। डाटा संरक्षण कानून की आवश्यकता पर सर्वोच्चय न्यायालय ने सबसे अधिक बल दिया था, जब उन्होंने एक ऐतिहासिल सेवानिवृत न्यायमूर्ति के.एस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ का निर्णय लिया था। उसी दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने डाटा संरक्षण कानून की आवश्यकता महसूस की। ताकि लोगों के व्यक्तिगत डाटा का गलत इस्तेमाल न किया जा सके और इस पर रोक लगाई जा सके।
हम सभी आज डिजिटल के दौर में हैं जहां व्यक्तिगत डाटा चोरी होना या गतल तरह से प्रयोग में आने जैसी गंभीर समस्याओं का सामना लोगों को करना पड़ता है। इन सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को देखते हुए डाटा संरक्षण विधेयक की बात सामने आई। भारत सरकार द्वारा डेटा संरक्षण कानून विधेयक के ड्राफ्ट को संशोधन के साथ 2019 में लोकसभा में व्यक्तिगत डाटा संरक्षण बिल-2019 के नाम से पेश किया गया। उसी दिन लोकसभा द्वारा संयुक्त संसदीय समिति को व्यक्तिगत डाटा संरक्षण बिल-2019 को भेजने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
2020 में कोविड महामारी के कारण इस प्रस्ताव में कुछ देरी हुई जिसके कारण से संयुक्त संसदीय समिति ने इस विधेयक पर अपनी रिपोर्ट दिसंबर 2021 में सबमिट की। आपको बता दें की संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी इस रिपोर्ट के साथ एक नया ड्राफ्ट भी सबमिट किया था। संयुक्त संसदीय समिति द्वारा दी गई सलाह और सिफारिशों को इस विधेयक में शामिल किया गया और ये डाटा संरक्षण विधेयक 2021 बना।
इसके बाद 2022 में इस विधेयक को वापस ले लिया गया। इस विधेयक को वापस लेने के लिए सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति द्वारा 2019 के विधेयक में किए गए परिवर्तन और सबमटि की हुई रिपोर्ट का हवाला दिया।
डाटा संरक्षण विधेयक में हुए संशोधन
सूचनात्मक गोपनीयता हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इस अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा गया है। ऐसे में सूचना प्रौद्योगिकि नियम-2011 के अंतर्गत शामिल गोपनीयता के लिए वर्तमान कानूनी ढांचा
डाटा प्रिंसिपल के नुकसान से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है। और इसके अपर्याप्त होने के चार स्तर हैं, जिसे आपको समझने कि आवश्यकता है। जो कुछ इस प्रकार है।
अपर्याप्त होने के चार स्तर -
1. वर्तमान का कानूनी ढ़ाचा वैधानिक अधिकार वर अधारित है न कि निजता के मौलिक अधिकार पर।
2. ये अनुबंध द्वारा ओरराइड किया जाता है और डेटा फिड्यूशरीज पर कम दायित्व डालता है।
3. इसमें एक प्रकार के डेटा को संरक्षित करने की समझ है।
4. अपने दायित्वों के उल्लंघन के लिए डेटा फिड्यूशरीज पर कम से कम परिणाम हैं।
इनमें किन सुधारों की अवश्यकता है-
1. डाटा प्रिंसिपल के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है। इस कानून के माध्यम से यह सुनिश्चिक करना अनिवार्य है कि डाटा फिड्यूशरीज का अनुपालन कठिन न हो और वह वैध प्रसंस्करण को अव्यवहारिक बना दे।
2. उचित अपवादों और निजता के अधिकार के बीच पर्याप्त संतुलन खोजना आवश्यक है। खासकर तब जब व्यक्तिग डाटा सरकारी प्रोसेस से संबंध होता है।
3. दिन पर दिन लोग डिजिटलाइजेशन की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं, ये और भी आवश्यक हो जाता है कि डाटा संरक्षण कानून को बनाया जाए। भारत से बाहर के कई देशों में इस कानून को बनाया गाया है। 194 में से करीब 134 देश हैं जो व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण में कानून बना चुके हैं। इसी के साथ आपको ये भी बता दें की विश्व में जो सबसे कम विकसित देश हैं उनमें से केवल 48 प्रतिशत के पास डेटा सुरक्षा और गोपनीयता कानून है।
4. हमारे कानून को अधिकारों और उपचारों के अनुसार डिजाइन करने की आवश्यकता है, जिसके माध्यम से डेटा प्रिंसिपल का प्रयोग आसन बनया जा सके।
व्यरक्तिगत डाटा संरक्षण 2019 की मुख्य विशेषताएं
व्यरक्तिगत डाटा संरक्षण 2019 की 3 मुख्य विशेषता हैं जो इस प्रकार है-
1. डाटा वर्गीकरण
डाटा का वर्गीकरण कुछ श्रेणियों के माध्य से किया जाता है। जिसमें सबसे पहले संवेदनशील डाटा शामिल है-
ये वो डाटा होता है जिसमें आपक वित्तीय, यौन, स्वास्थ्य, अभिविन्यास, आनुवंशिक, ट्रांसजेंडर स्थिति, जाति, धार्मिक विश्वास, बायोमेट्रीक जानकारी और सरकार के प्रधिकरण एवं संबंधित अन्य जानकारी।
व्यक्तिगत डाटा - इसमें ऐसा डाटा होता है जिसके माध्यम से आपकी पहचान करना आसान हो जाता है, जैसे आपका नाम, फोटो और पता आदि।
महत्वपूर्ण व्यक्तिगत डाटा - ये वो डाटा होता है जो सैन्य और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित होता है और हमारी सरकार के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
इन सभी श्रेणियों के अनुसार बात करें को डाटा संरक्षण कानून भारत के लिए महत्वपूर्ण है और डिजिटल के इस दौर को देखते हुए इसकी आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है।
2. गोपनीयती की शर्तें
गोपनीयती का शर्तों की बात करें तो नीचे दिए बिंदुओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
डाटा फिड्यूशरीज- कोई सवर्विस प्रोवाइडर जो किसी सेवा और वस्तु को प्रदान करने के दौरान आपका डेटा एकत्रित करता है और बाद में उसका उपयोग करता है।
डाटा प्रिंसिपल - ऐसा व्यक्ति जिसाक व्यक्तिगत डाटा संबंधित हो और वह एक बच्चा हो और उस डाटा में उसेक माता-पिता और अभिभावक शामिल हों।
डाटा ट्रांसफर- ऐसा डाटा जिसे देश की सीमाओं के बाहत समुद्री तार के माध्य से ले जाया जाता हो।
डाटा स्थानीयकरण- इसमें देश के अंदर भौतिक रूप से उपकरणों में डाटा एकत्रित करने होता है।
3. स्वतंत्र रेगुलेटर प्रावधान
इस विधेयक के माध्यम से डाटा संरक्षण का प्रावधान होता है। इसके अनुसार डाटा संरक्षण एवं सूचना प्रौद्योगिकि में एक अध्यक्ष के साथ कम से कम 10 विशेषज्ञता सदस्यों की एक समिति होगी, जिनका मुख्य कार्य लोगों के व्यक्तिगत डाटा का दुरुपयोग रोकना, उनके हितों की रक्षा करना और विधेयक का पालन हो रहा है कि नहीं ये सुनिश्चित करना है।
डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण
डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक 2022 में उल्लेखिनिय है कि कानून नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है और दूसरी ओर डाटा फिड्यूशरी को कानूनी रूप से एकत्रित डाटा के उपयोग करने का दायित्व है। डाटा फिड्यूशरी व्यक्ति के व्यक्तिगत डाटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधन का निर्धारण करती है। डाटा व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक से हर व्यक्ति को अपना डाटा संसाधित करने से पहले उसकी सहमति प्रदान करने की आवश्यकता होती है। इस डाटा का अर्थव्यवस्था के सिद्धांतो के आधारों के अनुसार बनाया गया है। इसके साथ इसका उद्देश्य है कि व्यक्तिगत जानकारी का प्रयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए है जिसके लिए उसे एकत्रित किया गया है। इस समय भारत में 76 करोड़ से अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता है जो आगे चल कर 120 करोड़ के तक होने का संभावना है। जिसके कारण इस विधेयक की आवश्यकता पता लगती है। इस विधेयक के माध्यम क डाटा उल्लंघनों के लिए निगमों को दंडित करता है। इसी के साथ फर्जी सूचना के देने, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ फर्जी शिकायत करने वाले व्यक्तियों पर 10,000 रुपये तक का जुर्मान होगा।
आपको बता दें की इस विधेयक के माध्यम से बनाए जाने वाले डाटा संरक्षण बोर्ड को स्वतंत्र रखा जाएगा ताकि वह डाटा उल्लघंनों के मुद्दों पर निर्णय ले सके। ये सिवल कोर्ट के बराबर की रैंक प्राप्त करता है और इसके द्वारा लिए गए निर्णयों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।