दिवाली पर निबंध (Essay On Diwali 2023 In Hindi)

Essay On Diwali 2023: दिवाली 2023 में 12 नवंबर रविवार को मनाई जाएगी। दिवाली को दीपावली भी कहा जाता है। दिवाली पर हर घर को फूल-माला, मोमबत्तियों, दीयों, लालटेन और लाइट से सजाय जाता है। दिवाली का पर्व सभी लोग बड़े हर्षोउल्लास के साथ मानते हैं। दिवाली के अवसर पर सभी स्कूल, कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।

जो लोग दिवाली के लिए निबंध लिखना चाहते हैं, उनके लिए दिवाली पर निबंध लिखने के कुछ टिप्स दिए गए हैं। इसके साथ ही दिवाली पर निबंध का एक ड्राफ्ट भी दिया गया है, जिसकी मदद से आप आसानी से दिवाली पर निबंध लिख सकते हैं।

दिवाली पर निबंध (Essay On Diwali 2023 In Hindi)

दिवाली पर निबंध कैसे लिखें (How to write Essay On Diwali)

दिवाली निबंध के संबंध में ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण हिस्सा निबंध का विषय और सामग्री है। सबसे पहले याद रखें कि निबंध में एक परिचय, एक निकाय और एक निष्कर्ष होता है। दिवाली के लिए निबंध की शुरुआत आकर्षक और सरल होनी चाहिए। पाठक हमेशा थोड़ा और रोचक चीजें पढ़ते हैं। निबंध के लिए तैयार किए गए वाक्य सरल होने चाहिए। इसलिए निबंध के वाक्य और निष्कर्ष का अंत सोच-समझकर लिखना चाहिए।

दिवाली निबंध विषय (Diwali Essay Idea)

  • बुराई पर अच्छाई
  • दिवाली क्या है
  • दिवाली क्यों मनाई जाती है
  • दिवाली का महत्व
  • दिवाली का आपका सबसे यादगार अनुभव
  • दिवाली पर उद्धरण
  • दिवाली उत्सव
  • दिवाली का ग्रह पर प्रभाव

दीपावली पर निबंध (Essay On Diwali 2023)

कार्तिक मास की अमावस्या के दिन दीपावली मनाई जाती है। वास्तव में दीपावली पांच दिनों का त्योहार है इसलिए इसे पंच-महोत्सव पर्व भी कहते हैं। समय के साथ इसमें अनेक परंपराएं जुड़ती गयीं जिन्हें भारत के बाहर जावा, बाली सुमात्रा आदि देशों में भी महत्व दिया गया। जावा के प्रसिद्ध ग्रंथ पररतोन के अनुसार वहां आज भी यह परम्परा जीवित है। यह पर्व कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक मनाया जाता है। हमारे देश में इस पर्व के बारे में बहुत-सी मान्यताएं हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब चैदह वर्ष का वनवास पूराकर अयोध्या लौटे थे तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत की खुशी में सारे नगर को पुष्पों, मालाओं, गंध और दीपों से सजाया था। इसी दिन की स्मृति में तब से आज तक 'दीपावली पर्व' बड़े हर्षोंल्लास के साथ मनाया जाता रहा है।

दूसरी कथा वामन पुराण के अनुसार जब विष्णु ने वामन अवतार के रुप में दैत्यों के राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। दो पगों में समस्त पृथ्वी और आकाश नाप लिया और तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रख दिया और उसे पाताल भेज दिया था। वामन भगवान की कृपा से उसे स्वर्ग प्राप्त हुआ इसी के स्मरणार्थ यह पर्व आश्विन बदी द्वाद्वश के दिन प्रतिवर्ष मनाया जाता है। द्वापर युग में भी इसके बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। प्राग्ज्योतिषपुर के राजा नरकासुर ने अपनी शक्ति के अहंकार में इन्द्र का घोड़ा चुरा लिया एवं 16000 कन्याओं को बंदी बना लिया। योगीराज श्रीकृष्ण ने उसका वध करके उन 16000 कन्याओं का उद्धार किया, इस दिन चतुर्दशी थी।

श्रीमद्भागवत में भी श्रीकृष्ण द्वारा वृंदावन में बकासुर-बध इसी दिन किया गया था, जिसके कारण ब्रजवासियों ने आनंद मनाया था। दीपावली के पहले धन त्रयोदशी (धनतेरस) मनायी जाती है। इस दिन रात्रि को यमदीप जलाकर मुख्य द्वार पर रखकर यम की पूजा की जाती है। इस दिन दीप जलाने का अधिक महत्व है। इसके विषय में प्राचीन काल की एक कथा है कि राजा हेमंत का एक ही पुत्र था और उसे शाप मिला था कि विवाह होते ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। राजकुमारी से विवाह कराया गया, परंतु विवाह होते ही उसकी मृत्यु हो गई। राजकुमारी ने रो-रोकर यमराज से अपने पति के प्राण मांग लिए। जीवन दान के साथ यम ने कहा कि, जो व्यक्ति इस दिन अखण्ड दीप जलाकर यम का पूजन करेगा वह कभी अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होगा। इसलिए आज भी यम द्वितीया के दिन दीपक जलाकर मुख्य द्वार पर रखा जाता है। इससे यमराज प्रसन्न होते हैं।

वैदिक धर्म के समान जैन धर्म में भी दीपावली का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि, दीपावली के ही दिन चैबीसवें तीर्थंकर महावीरजी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। आचार्यों ने उनके प्रथम शिष्य गौतम स्वामी के निर्देशानुसार दीपों के प्रकाश में इस आध्यात्मिक दीपक का आह्वान किया। महावीर स्वामी चाहते थे कि, दीपावली के पवित्र प्रकाश से हम अपनी अन्तःआत्मा में आध्यात्मिक ज्योति जगाएं। अतः जैनियों में यह पर्व बड़े ही हर्षोंल्लास से मनाया जाता है। सरस्वती पुराण के अनुसार जयसिंह सिद्धराज एवं सिलाहट राजा लक्ष्मी के अनन्य भक्त थे। दीपावली के दिन प्रजा के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खेल-तमाशे दिखाएं जाते थे और राजा दान दिया करते थे।

कवि सोमदेव ने राष्ट्रकूट सम्राट कृष्ण तृतीय के समय मनाई जाने वाली दीवाली का बहुत सुंदर वर्णन किया है। सारा नगर सफेद रंग से रंगा जाता है और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता, रात्रि को दीप मालिकाएं सजायी जाती थीं। महर्षि वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ कामसूत्र में इसे यक्ष रात्रि कहा है। आचार्य हेमंत ने इसे ही दीपावली की रात्रि कहा है। इसके व्याख्याकार यशोधर ने भी दीपावली की रात्रि को सुख रात्रि कहा है। विजयनगर सम्राट के इटली यात्रा निकोली काउण्टी भारत आया था। उसने अपने यात्रा-वृतांत्त में यहां मनाई जाने वाली दीपावली का विस्तृत वर्णन किया था। दीपावली के अवसर पर यहां दिन-रात निरंतर दीपक जलते थे। धनी वर्ग द्रव्य दान दिया करते थे। वहां पर पर्व आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता था। समस्त राज परिवार प्रातः पवित्र जल से स्नान कर साम्राज्य लक्ष्मी की पूजा करते थे।

इतिहासकार अलबरुनी ने महमूद गजनबी जैसे लुटेरे के आक्रमण के समय मनाई जाने वाली दीपावली का वर्णन किया है। ऐसे समय भी लोग अपने पर्व-त्योहार भूले नहीं थे। 1200 ईसवी को अब्दुल रहमान ने दीपावली का वर्णन करते हुए लिखा है कि, बड़े-बड़े भवनों को दीपों के द्वारा चंद्रकिरणों से सजाया जाता था जिन्हें देखने के लिए सुंदर स्त्रियां अपने घरों से बाहर आती थीं। संत ज्ञानेश्वर ने इसे ऐसा आध्यात्मिक पर्व बताया जो मन के अज्ञान को दूर करता है, क्योंकि दीपक ज्ञान की ज्योति के प्रतीक हैं।

मुगल सम्राट अकबर ने दीपावली को राष्ट्रीय पर्व कहा है। 'आइने अकबरी' में अबुल फजल ने इसे वैश्यों का त्योहार बताया है। महाराष्ट्र और गुजरात में भी दीपावली मनाई जाने के वर्णन प्राप्त होते हैं। गुजरात के व्यापारी अपने भवनों को सुरुचि पूर्ण सजाया करते थे। गुर्जर स्त्रियां अपनी संुदरता और कला प्रियता के लिए प्रसिद्ध थीं। सन् 1119 में चालुक्य वंश के कन्नड़ शिला लेखों में भी दीवाली मनाने के प्रमाण मिलते हैं। मराठा शासनकाल में दीपावली चार दिन तक मनाई जाती थीं। इस अवसर पर आतिशबाजी के द्वारा रावण की लंका का दृश्य निर्मित किया जाता था, फिर हनुमान जी के द्वारा उसमें आग लगा दी जाती थी। दीवाली के समय चणकेश्वर मंदिर को अरनीपुर और कुमार जोवन्न और बल्लान ने दान दिया था।

इस प्रकार इतिहास पर विहंगम दृष्टि डालने पर हम पाते हैं कि दीपावली का पर्व हमारे देश का पावन पर्व है जिसकी परम्परा ऐतिहासिक दृष्टि से लगभग 3000 वर्ष से अधिक है। इसका वर्णन हमारे ग्रंथों में ही नहीं वरना विदेशी ग्रंथों में भी मिलता है। यह पर्व केवल श्रृंगार-विलास एवं रमणीयता का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक सामाजिक पर्व हैं। देश में कैसी भी स्थिति रही हो प्राचीन काल से वर्तमान काल तक भारतीय अपने इस अस्मिता के प्रतीक पर्व को हर्षोंल्लास और उत्साह से मनाते आ रहे हैं, क्योंकि यह अंधकार पर प्रकाश के विजय का पर्व है, अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है, बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है।

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English summary
Essay On Diwali For Students - Diwali 2023 will be celebrated on Sunday, 12 November 2023. Diwali is also known as Deepawali. On Diwali, every house is decorated with flowers, garlands, candles, diyas, lanterns and lights. Everyone celebrates the festival of Diwali with great enthusiasm. Essay writing competition is organized in all schools, colleges and other educational institutions on the occasion of Diwali. For those who want to write an essay for Diwali, here are some tips on how to write an essay on Diwali. Along with this, a draft of essay on Diwali has also been given, with the help of which you can easily write an essay on Diwali.
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