छत्तीसगढ़ की महिलाओं का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक विशेष योगदान रहा है। आजादी की लड़ाई में समाज के सभी वर्गों ने बराबरी से भाग लिया था। लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीर पुरुषों की तुलना में महिलाओं का जिक्र बहुत कम किया जाता है।
तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको छत्तीसगढ़ की उन महिलाओं के बारे में बताते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और देश की आजादी में अपना योगदान दिया था।
छत्तीसगढ़ी महिलाएं ऐसी थी जो कि पारिवारिक के साथ-साथ देश की आजादी की भी जिम्मेदारियों को वीरता और साहस के साथ उठा रही थी। इनमें छत्तीसगढ़ से डॉ. राधा बाई, रोहिणी बाई परगनिहा, फूलकूंवर बाई, बेला बाई, केकती बाई बघेल, रूखमणी बाई और दया बाई का नाम शामिल है।
राधा बाई
डॉ राधा बाई छत्तीसगढ़ में एक जाना पहचाना नाम है। इनके नाम पर राज्य में महिलाओं का कॉलेज भी स्थित है। डॉ राधा बाई एक स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, समाज सुधारक थी। राधा बाई सभी स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेती थी। राधा बाई का जन्म नागपुर में 1875 में हुआ था। इन्होंने वेश्यावृत्ती में लगी बहनों को मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।
राधा बाई ने अस्पृश्यता के विरोध में भी बहुत महत्वपूर्ण काम किए थे। जिनके लिए इनका नाम आज भी याद किया जाता है। वे धर्म-भेद नहीं मानती थी जिससे की वे भाई-दूज पर मुस्लिम भाईयों की भी पूजा करती थी। 2 जनवरी 1950 को राधाबाई का 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
बता दें कि राधा बाई महात्मा गांधी की अनुयायी थी इनके साथ-साथ छत्तीसगढ़ की ही केकती बाई, फूलकुंवर बाई, पोची बाई, रुखमिन बाई, पार्वती बाई, रोहिणी बाई, कृष्ण बाई, सीता बाई, राजकुंवर बाई ने भी स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया था। खासकर की इन सभी ने राधा बाई के साथ मिलकर शराबबंदी मोर्चा में अहम भूमिका निभाई थी जो कि एक बेहद कठिन मोर्चा था।
फूलकुंवर बाई
फूलकुंवर बाई एक स्वतंत्रता सेनाानी थी इनके पति भिभोंरि गांव के पटवारी थे। इनके पति का नाम रघुनाय दयाल श्रीवास्तव था जिनसें इन्हें दो बेटियां वे तीन बेटे थे। लेकिन सब एक के साथ एक चल बसे। अंत में इनके साथ इनका एक ही बेटा मनोहर श्रीवास्तव बचा। महात्मा गांधी से मिलने के बाद फूलकुंवर बाई और उनके बेटे मनोहर काफी प्रभावित हुए और देश की आजादी के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो गए।
केकती बाई
केकती बाई बघेल एक सत्याग्रही महिला थी। जिन्होंने अपने बेटे को देश की आजादी लड़ने के लिए प्रेरित किया था। केकती बाई बहुत कम उम्र में ही विधवा हो गई थी लेकिन इसके बावजूद इन्होंने राधा बाई के साथ स्वंत्रता आंदोलन में भाग लिया और अस्पृश्यता के विरोध में अपने कदम उठाए।
रोहिणी बाई
रोहिणी बाई 10 साल की उम्र में ही राधा बाई की टोली में जुड़ गई थी और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने लग गई थी। जिसके कारण इन्हें मात्र 12 साल की उम्र में ही जेल जाना पड़ा था। रोहिणी बाई उम्र में बहुत छोटी थी इसलिए इन्हें सत्याग्रहियों से बहुत सारा प्यार मिलता था। ये राधा बाई की टोली में झंडा लेकर सबसे आगे चलती थी।