ईरान का चाबहार बंदरगाह कुछ समय से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। ऐसा इसलिए है कि भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के लिए एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये हैं। इस एमओयू पर हस्ताक्षर कर दोनों देशों ने रणनीतिक रूप से चाबहार बंदरगाह के बुनियदी ढांचे को बढावा देने के लिए ये कदम उठाया है। इसमें पश्चिम एशियाई देशों के साथ समुद्री साझेदारी का विस्तार करते हुए और समुद्री यात्रियों की असीमित यात्राओं के लिए अचार संहिता की मान्यता पर भारत और ईरान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस एमओयू पर हस्ताक्षर बंदरगाहों, नौवहन और जलमार्गों और आयुष मंत्री सरबनादा सोनोवाल की ईरान यात्रा के दौरान हुआ। इसके परिणाणस्वरूप ईरानी नाविकों का प्रशिक्षण अभ्यास भारत में होगा। इससे पहले भी कई बार चाबहार बंदरगाह चर्चा का केंद्र बना रहा है।
चाबहार बंदरगाह ईरान में स्थित है। इस बंदरगाह को इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड द्वारा चलाया जाता है इस बंदरगाह पर मालिकाना हक पोर्ट्स एंड मैरीटाइम का है। चाबहार बंदरगाह का आकार 1200 एकड़ है और भूमि 1100 एकड़ की है। आइए जाने चाबहार बंदरगाह के बारे में विस्तार से।
चाबहार बंदरगाह का इतिहास
चाबहार बंदरगाह ईरान का एकमात्र बंदरगाह है। इस बंदरगाह सीधी पहुंच समुद्र तक है। ये बंदरगाह दक्षिणपूर्वी ईरान में ओमान की खाड़ी में स्थित है। चाबहार बंदरगाह में शाहिद कलंतरी और शाहिद बेहेश्ती नामक दो अलग-अलग बंदरगाह स्थित हैं जिसमें प्रत्येक बंदरगाह में पांच बर्थ है। आइए इस बंदरगाह के इतिहास के बारे में जाने।
ईरान के विद्वान थे, जिनका नाम अलबरुनी था। उन्होंने अपने कई लेखों में इस जगहा का उल्लेख कर बताया था कि भारत का समुद्री तट टिस से शुरू होता है। सासैनियन समय के दौरान ये बंदरगाह चाबहार के पड़ोस में स्थित था, लेकिन 17वीं शताब्दी के दौरान अंग्रेजों और पुर्तगालियों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया और इस पर अपना नियंत्रण हासिल किया। मोहम्मद रजा पहलवी ईरान के शाह थे, उनके द्वारा साल 1970 में आधुनिक चाबहार को विकसित किया गया। उन्होने चाबहार में एक नौसैनिक के अड्डे को विकसित करने की योजना बनाई थी। 1977 के दौरान ओपेक और पश्चिमी तेल कंपनियों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके कारण वर्ष चाबहार बेस के निर्माण में बहुत अधिक देरी हुई और कुछ समय के बाद फिर इसके कार्य को स्थगित कर दिया गया। 1980-88 के दौरान ईरान-इराक युद्ध हुआ था और इस युद्ध में ही चाबहार बंदरगाह के सैन्य और रणनीतिक महत्व को महसूस किया गया। इसके बाद 2003 में उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर ढांचे के तहत नई दिल्ली में हुई घोषणा में भारत और ईरान के बीच परिवहन कॉरिजोर और डिपनिंग ऊर्जा निगम के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की बात की गई थी। 2015 में P5+1 वार्ता के बाद जाकर चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट को गति मिली। इसी के एक साल बाद 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक हुई और इस बैठक में चाबहार बंदरगाह को लेकर एक समझौता हुआ। इस समझौते को चाबहार बंदरगाह समझौते के रूप में जाना जाता है। इस समझौते मे यह तय किया गया कि भारत चाबहार बंदरगाह का विकास और संचालन करेगा। इस समझौते का पालन करते हुए इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड इस पोर्ट के विकास पर काम करता है। इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड पोर्ट की 640 मीटर की लंबाई और तीन मल्टी-कार्गो बर्थ के साथ दो कंटेनर बर्थ को विकसित करने के लिए 85 मिलियन अमरीकी डालर की राशि का निवेश करेगा।
भारत और चाबहार बंदरगाह
- चाबहार बंदरगाह समझौते के अनुसार भारत इस बंदरगाह के विकास के लिए कार्य करता है। इसके साथ कई निम्न कारणों से ये बंदरगाह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जो इस प्रकार है-
- चाबहार बंदरगाह का उपयोग करके भारत पाकिस्तान से गुजरे बिना अफगानिस्तान के साथ व्यापार कर सकता है। इससे दोनों देशों के बीच बेहतर वाणिज्यिक संबंध स्थित होंगे।
- पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के विकास की वजह से चीन की अरब सागर में उपस्थिति और गतिविधियों का मुकाबला करने में भारत को काफी मदद मिलेगी।
- पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह जमीन से करीब 400 किलोमीटर है और चाबहार बंदरगाह से ये बंदरगाह समुद्र के रास्ते से करीब 100 किलोमीटर दूर है।
- चाबहार बंदरगाह ईरान से भारत की कनेक्टिविटी में सुधार करेगा, क्योंकि ये अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSIC) का मुख्य प्रवेश बिंदु है। जो भारत को रूस, ईरान, यूरोप और मध्य एशिया के देशों के साथ भूमि, रेल और सड़क के माध्यम से जोड़ता है।
- भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन के परिणामस्वरूप ईरान भारत का सैन्य सहयोगी भी बनेगा।
- चाबहार बंदरगाह से व्यापार में वृद्धि होगी। कुछ आकलनों की माने तो चाबहार मार्ग आईएनएसटीसी के साथ मिलकर भारत से यूरेशिया के व्यापार को कुल 170 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा सकता है।
- चाबहार बंदरगाह रोजगार के अवसर देगा। जैसे ही बंदरगाह से जहाजों की लोडिंग और अनलोडिंग की क्षमता में वृद्धि होगी वैसे ही एस क्षेत्र में रोजगार की बढ़ौतरी होगी।
- राजनयिक नजरिए से चाबहार बंदरगाह मानवीय प्रयासों के लिए एक आयोजन के तौर पर केंद्र के रूप में कार्य कर सकता है।
चाबहार बंदरगाह से संबंधित सूचना
अक्टूबर 2020 - ईरान के चाबहार बंदरगाह और समुद्री संगठन ने भारत से क्रेन, ट्रैक, स्विच और सिग्नलिंग उपकरण के साथ लोकोमोटिव की खरीद के लिए और अधिक मदद मांग कर 150 मिलियन अमरीकी डालर के क्रेडिट लाइन को सक्रिय करने का अनुरोध किया था।
2018 में भारत ने लाइन ऑफ क्रेडिट का वादा किया जिसके संदर्भ मे दिसंबर 2021 में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने संसद में जवाब देते हुए कहा कि ईरान पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं होगा।
हाल ही में भारत ने ईरान के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया जिसमें रणनीतिक रूप से चाबहार बंदरगाह के बुनियदी ढांचे को बढावा दिया जाएगा। इससे पश्चिम एशियाई देशों के साथ समुद्री साझेदारी का विस्तार होगा।