स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश काल के अंतिम चरण में तेजपुर, सूतिया, गोहपुर, ढेकियाजुली और जमुगुरी जैसे स्थानों में "करो या मरो" के नारे के साथ भारत छोड़ो आंदोलन को गति मिली। जिसमें की असमिया महिलाओं ने बढ़-चढ़कर कर भाग लिया। 1942 के अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में अधिकतर असमिया महिलाओं की गोली लगने के कारण मृत्यु हुई।
चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको उन असमिया महिलाओं के बारे में बताते हैं जो कि देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थी और जिन्होंने 1942 में चल रहे विद्रोह में अपने प्राणों की आहुति दी थी।
असमिया महिला स्वतंत्रता सेनानियों की सूची
• कनकलता बरुआ
कनकलता स्वतंत्रता आंदोलन में एक सक्रिय आयोजक और मृत्यु वाहिनी की सदस्य थी। 20 सितंबर, 1942 को जब वह भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय ध्वज को पकड़े हुए एक जुलूस का नेतृत्व कर रही थी उसी दौरान ब्रिटिश पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस समय वे सिर्फ 18 साल की थी।
• मुंगरी उर्फ मालती मेम
मालती मेम चाय बागानों में अफीम विरोधी अभियान की प्रमुख सदस्यों में से एक थी। 1921 में, शराबबंदी अभियान में कांग्रेस के स्वयंसेवकों का समर्थन करने के लिए दारांग जिले के लालमती में सरकारी समर्थकों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी।
• दारिकी दासी बरुआ
दारिकी सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थी और अफीम विरोधी अभियान के प्रमुख सदस्यों में से एक थी। 1 फरवरी, 1932 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अफीम विरोधी पिकेटिंग के लिए उन्हें छह महीने की जेल हुई। कारावास के समय वह गर्भवती थी और फिर बीमार होने के कारण 26 अप्रैल, 1932 को जेल में उनकी मृत्यु हो गई।
• भोगेश्वरी फुकानानी
भोगेश्वरी नगांव में स्वतंत्रता आंदोलन की एक सक्रिय आयोजक थी। 18 सितंबर, 1942 को बरहामपुर उन्हें उस अंग्रेज ने गोली मारी जिसे उन्होंने ध्वज के अपमान करने पर ध्वज पोल से पीटा था। मार खाने के बाद अंग्रेज से अपना अपमान सहन नहीं हुआ और उसने उन्हें गोली मार दी जिसके तीन दिन बाद उनकी मौत हो गई।
• तिलेश्वरी बरुआ
तिलेश्वरी बरुआ ढेकियाजुली से भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदार थीं। 20 सितंबर, 1942 को ढेकियाजुली में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोशिश के दौरान पुलिस फायरिंग में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसी दिन कनकलता बरुआ की भी मृत्यु हुई थी।
• रेबती लाहोन
रेबती भारत छोड़ो आंदोलन की एक सक्रिय भागीदार और आयोजक थी। 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया था। कारावास के दौरान, जेल में रहने की खराब स्थिति के कारण उन्हें निमोनिया हो गया था। और कैद से बाहर आने के तुरंत बाद उसकी मृत्यु हो गई।
• खाहुली देवी
20 सितंबर 1942 को देहेकियाजुली पुलिस फायरिंग में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय खाहुली देवी गर्भवती थी।
• कुमाली देवी
कुमाली देवी एक बहादुर महिला थी, जिन्हें 20 सितंबर, 1942 को तिलेश्वरी बरुआ और खाहुली देवी के साथ ढेकियाजुली पुलिस फायरिंग में गोली मार दी गई थी।
• पदुमी गोगोई
पदुमी गोगोई ढेकियाजुली से भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदार थी। 20 सितंबर, 1942 को ढेकियाजुली पुलिस थाने के पास हुए लाठी हमले में वह घायल हो गई थी। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और छह महीने की जेल हुई। उन्हें खराब स्वास्थ्य के साथ रिहा कर दिया गया और फिर कुछ दिनों में ही मृत्यु हो गई।
• गोलापी चुटियानी
गोलापी ढेकियाजुली में 1942 के आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थी। पुलिस ने विद्रोहियों को रोकने के लिए फायरिंग और लाठीचार्ज किया। लाठी के हमले में वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी और बाद में उन्होंने अपना दम तोड़ दिया।
• लीला नियोगोनी
लीला 1942 के विद्रोह में सक्रिय रूप से शामिल थी। 1942 में लखीमपुर में उनके खिलाफ एक जुलूस में भाग लेने के दौरान उन्हें पुलिस ने बुरी तरह पीटा था। जिसके दो महीने बाद उन्होंने अपना दम तोड़ दिया।
• थुनुकी दास
थुनुकी भी ढेकियाजुली में 1942 के विद्रोह में सक्रिय भागीदार थी। 20 सितंबर 1942 को ढेकियाजुली पुलिस स्टेशन के पास हुए लाठीचार्ज में वह घायल हो गईं और कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई।
• जालुकी कचरियानी
वह 1942 के विद्रोह की एक और सक्रिय भागीदार थी। 20 सितंबर, 1942 को ढेकियाजुली पुलिस फायरिंग में उन्हें गोली लगी और इसके तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई।
• कोन चुटियानी
20 सितंबर, 1942 को ढेकियाजुली पुलिस थाने के पास हुए लाठी हमले में वह भी घायल हो गई थी और कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई थी।