APJ Abdul Kalam bear criticisms while being the President of India: डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 में रामेश्वरम के एक मछुआरे परिवार में हुआ था। उनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए उन्होंने अखबार भी बचे थें। वह केवल 10 वर्ष के थे जब उन्होंने अखबार बेचना का काम किया था। उस दौरान कौन जानता था कि अखबार बेचने वाला ये बच्चा आने वाले समय में देश का सबसे बड़ा नाम बनेगा। अब्दुल कलाम के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण थी। न केवल अपने लिए उन्होंने शिक्षा को महत्व दिया बल्कि पूरे देश को शिक्षा के महत्व को समझाया।
उन्होंने कभी भी किसी भी प्रकार की दिक्कत अपनी शिक्षा के आड़े नहीं आने दी। कलाम का मानना था कि एक बेहतर समाज और नागरिकों की रचना करने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। वह एक वैज्ञानिक तो थे ही, लेकिन उसके साथ वह भारत के सबसे महान शिक्षकों में से भी एक थें। उन्होंने प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में वर्ष 1999 से 2001 तक कार्य किया था और उसके बाद 2002 वह 11वें राष्ट्रपति के पद के लिए चुने गए। एक राष्ट्रपति और भारत के महान वैज्ञानिक के तौर पर काम करने वाले एपीजे अब्दुल जिन्हें भले ही नफरत का सामना ना करना पड़ा हो लेकिन आलोचनाओं से वे भी नहीं बच सकें। आइए आपको बताएं कि किन आलोचनाओं का सामना किया था हम सबके प्रिय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम...
कलाम की शिक्षा, उपलब्धि और योगदान
कलाम ने अपनी स्कूली शिक्षा (Kalam Education) प्राप्त कर सेंट जोसेफ कॉलेज से भौतिक विज्ञान की पढ़ाई पूरी कर मद्रास इंस्टीट्यूट से एयरोस्पेस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन में कार्य कर कई आविष्कारों को अंजाम दिया। उन्होंने इस दौरान कई प्रोजेक्टों में अपनी अहम भूमिका निभाई और उनके इस योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न के साथ कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। बैलिस्टिक मिसाइल के दौरान अपनी भूमिका के लिए उन्हें 'मिसाइल मैन' की उपाधि दी गई। कलाम एक विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे जो बच्चों से बहुत प्रेम किया करते थे। वह भारत को विश्व स्तर पर पहचान दिलाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। शुरू से अंत तक, अपने सभी भाषाणों में उन्होंने देश की युवा पीढ़ी के संबोधित किया और उन्हें साइंस के क्षेत्र में और समाज के विकास के लिए कार्य करने को प्रोत्साहित किया है। वह छात्रों और आने वाली हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। उन्हें एक वैज्ञानिक होने के साथ भारत के राष्ट्रपति की तौर पर भी एक अहम भूमिका निभाई थी।
एपीजे अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति
वर्ष 2002 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान कलाम ने 922,884 वोट के साथ लक्ष्मी सहगल को हरा कर जीत हासिल की थी। उनकी इस जीत में बीजेपी के साथ-साथ विरोधी पार्टी कांग्रेस ने भी उन्हें समर्थन दिया था। इतने अधिक वोटों और समर्थन से जीतने के कारण ही उन्हें पीपुल्स प्रेसिडेंट कहा गया।
गुजरात में पीपुल्स प्रेसिडेंट की मार्च के दौरान उन्होंने पीड़ितों की बात सुनी और उन सभी से बातचीत की। उनकी इस विनम्रता से उनकी छवि एक राष्ट्रपति से मित्र के रूप में बनी जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ी। यही कारण है की आज भी वे लोगों के दिलों में बसते हैं।
कलाम को आलोचना का करना पड़ा सामना
एक राष्ट्रपति के तौर पर सबसे कठिन कार्य उनके लिए 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट बिल' पर हस्ताक्षर करना था। उन्हें तब आलोचना का सामना करना पड़ा जब उन्हें 21 दया याचिका पर फैसला लेना था। 20 लोगों की दया याचिका पर उनकी निष्क्रियता को लेकर उनकी आलोचना की गई। भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार भारत के राष्ट्रपति के पास क्षमादान देने का अधिकार होता है। वह किसी भी मृत्युदंड प्राप्त करने वाले दोषी की मौत की सजा को कम कर सकते है या तो उसे निलंबित कर सकते है। राष्ट्रपति के कार्यकाल में कलाम ने एक दया याचिका पर कार्य किया और उसे खारिज किया। वो याचिका थी बलात्कारी धनंजय चटर्जी की थी, जिसे बाद में फांसी की सजी दी गई।
इसके बाद उन्होंने 2005 में बिहार में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जो की उनके द्वारा लिया गया विवादास्पद निर्णय था। इसके लिए भी उन्हें कुछ लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
समान नागरिक संहिता
2003 में पीजीआई चंडीगढ़ के एक संवाद सत्र में उन्होंने देश की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए नागरिक संहिता की आवश्यकता को भारत के लिए जरूरी माना।
राष्ट्रपति के कार्यकाल का अंत
एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के समाप्त होने से पहले ही दूसरे कार्यकाल के बारे में विचार व्यक्त कर इच्छा जाहिर की लेकिन इसके कुछ दिन के बाद उन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में लड़ने से इंकार भी कर दिया। अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल को पूरा करने के बाद वह शिक्षा और समाज सेवा के लिए वापस आए और उन्होंने शिक्षा में अपना योगदान दिया। 2012 में जब कलाम से दोबारा राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए कहा गया तो उन्होंने इसके लिए साफ इंकार किया।
छात्र कलाम को एक आदर्श के रूप में देखते थे और आज भी देखते हैं। आईआईएम शिलांग में 27 जुलाई 2015 में लेक्चर के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिससे उनका निधन हो गया। शिक्षा और विज्ञान में उनके योगदान को भारत हमेशा याद रखेगा। इस साल भारत कलाम की 8वीं पुण्यतिथि मना रहा है।