20 Most Pointless Rules in Indian Schools: क्या आपके स्कूल में भी हैं ऐसे बेबुनियादी नियम

20 Most Pointless Rules in Indian Schools in Hindi: शिक्षा के साथ अनुशासन का होना आवश्यक है, क्योंकि ये शिक्षा को पूरा करती है। स्कूल में सिखाये गये अनुशासन छात्रों के भविष्य को आकार देने में सहायक होते हैं।

जानिए स्कूल के ऐसे रूल्स के बारे में जो होते हैं बेबुनियादी

बड़े गुणी लोगों का कहना है कि यदि बच्चे अनुशासन में रहेंगे और अनुशासन सीखेंगे तो उन्हें जीवन की कठिनाईयों का सामना करने में मदद मिलेगी। हालांकि अनुशासन के नाम पर स्कूल द्वारा बनाये गये कुछ नियमों को छोड़कर ज्यादातर नियम बेबुनियादी और निरर्थक होते हैं।

भारतीय स्कूल लंबे समय से अकादमिक उत्कृष्टता, अनुशासन पर ध्यान केंद्रित करने और कठोर शिक्षा प्रणाली का पालन करने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, ज्ञान की खोज के बीच, कुछ नियम ऐसे हैं जो अक्सर फायदेमंद होने के बजाये अधिक मनमाने लगते हैं। ये निरर्थक नियम शिक्षा में कोई योगदान तो नहीं देतें बल्कि शैक्षिक परिदृश्य में उनके वास्तविक उद्देश्य पर भी सवाल उठाते हैं।

दुनिया भर के लोगों की सोच और मानसिकता है कि हाई फीस, बेहतर शिक्षक, अधिक चुनौतीपूर्ण पाठ्यक्रम और अधिक कठोर मूल्यांकन छात्रों के सीखने को बेहतर बनाने के श्रेष्ठ तरीके हैं। माता-पिता अपने बच्चों को इस उम्मीद से अच्छे एवं प्रसिद्ध स्कूलों में भेजते हैं ताकि बच्चे बड़े होकर अनुशासन के साथ जीवन के मूल्यों को सीखेंगे और एक सफल व्यक्ति बनेंगे। लेकिन यदि स्कूलों में बेबुनियादी और निरर्थक नियम लागू होंगे तो क्या ऐसे में बच्चे का संपूर्ण विकास संभव होगा?

स्कूलों में अनुसाशन का महत्व

स्कूल में अनुशासन महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे स्कूलों को बुनियादी नियमों और प्रक्रियाओं के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सुरक्षा आवश्यकताओं के साथ ही विद्यालय के उद्देश्यों और जिम्मेदारियों को स्थापित करने में सहायता करते हैं। इनके अभाव में, स्कूलों के पास बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक रूपरेखा और संचालन का तरीका नहीं होगा। विद्यालयों में उच्च सामाजिक वातावरण प्रस्तुत करना आवश्यक होता है और इसके लिए विद्यालय में आचरण-संहिता एवं नियमावली तैयार करना भी आवश्यक होता है। स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों से यह आशा की जाती है कि वे विद्यालय के नियमों का पालन करेंगे और विद्यालय की व्यवस्था के अनुसार ही कार्य करेंगे। इसे ही अनुशासन कह सकते हैं।

विद्यालयों में अनुशासन और नियमों का होना आवश्यक है, क्योंकि हर नियम किसी नकिसी कारण से बनाया जाता है। हालांकि, सच तो यह भी है कि विद्यालय में बने हर नियम की आवश्यकता भी नहीं होती है। स्कूलों में पालन किये जाने वाल कुछ नियम अस्पष्ट और हास्यास्पद भी होते हैं, ऐसे नियम सतही तौर पर अनुचित होते हैं। एक नियम जो संभवतः अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ है, उसका कोई उद्देश्य नहीं होता। ऐसा नियम जिसके सकारात्मक परिणामों की तुलना में अधिक नकारात्मक परिणाम हों, वह अनुचित और अन्यायपूर्ण है।

यहां करियर इंडिया द्वारा भारतीय स्कूलों के सबसे निरर्थक और अजीबोगरीब नियमों के बारे बताया जा रहा है। अधिकांश भारतीय स्कूलों द्वारा अपनाए जाने वाले इन नियमों की बुनियाद ज्यादा महत्व नहीं रखती, लेकिन फिर भी अधिकांश स्कूलों में ये निरर्थक नियमों को सख्ती से लागू किया गया है। आइए जानें क्या हैं स्कूलों के बेबुनियादी नियम-

1. लड़कियों और लड़कों को एक साथ बैठने की अनुमति नहीं

बड़े-बड़े शहरों के ज्यादातर विद्यालयों में यह नियम लागू है, जहां एक लड़की और लड़के को एक साथ बैठने की इजाजत नहीं होती। इस नियम का जमीनी तौर पर कोई खास लाभ नहीं है। अगर बात अनुशासन सीखने की करें तो इससे अनुशासन की कोई ठोस सीख नहीं मिलती। इस नियम का होना या ना होना बच्चे के शिक्षा पर कोई असर ना डालता हो। लेकिन विद्यालय द्वारा बनाए गये इस नियम को ना मानने वाले को सजा मिलती है, जिसमें पहली बार नियम तोड़ने पर स्कूल ने मैदान में दौड़ लगानी पड़ती है। यदि यह दोबारा ऐसा किया तो इसे अपराध करार देते हुए या तो बच्चे को प्रिंसिपल के कार्यालय में भेज दिया जाता या फिर इस आचरण के लिए बच्चे के माता-पिता से संपर्क किया जाता है।

2. मातृभाषा में बोलने पर जुर्माना देना

बच्चे स्कूल में अंग्रेजी सीखते हैं, लेकिन स्कूल टीचर और मैनेजमेंट उनसे उम्मीद करते हैं कि वे अंग्रेजी बोलने और संचार कौशल में पारंगत हों। यह एक कारण है कि छात्र गलत अंग्रेजी बोलने के प्रति सचेत हो जाते हैं और अक्सर मौन प्रवृत्ति को अपनी स्वाभाविक अवस्था के रूप में अपना लेते हैं। वे न केवल अन्य छात्रों से बल्कि शिक्षकों से भी बात करना बंद कर देते हैं, जिससे उनका सीखना गंभीर रूप से सीमित हो जाता है। भारत के कई स्कूलों में बच्चों को मातृभाषा में बात करने पर जुर्माना भरना पड़ता है।

3. सज़ा के तौर पर घुटने टेकना

स्कूलों में छोटी छोटी गलतियों के लिए दंडित किया जाता है। अनुशासन के नाम पर अक्सर बच्चों को क्लास के बाहर घुटने टेक कर (Kneel Down) बैठने की सजा मिलती है। बच्चों को रीसेस के बाद कक्षा में देर से लौटने पर प्रिंसिपल के कार्यालय के बाहर/सीढ़ी पर घुटनों के बल बैठने के लिए कहा जाता है। ये नियम स्कूल द्वारा बनाये गये कुछ कठोर नियमों में से एक है। कई बार मासूम बच्चों को भी इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ता है।

4. एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के लिए एक्स्ट्रा मनी

भारतीय स्कूल वार्षिक स्कूल फीस के अलावा कई पाठ्येतर गतिविधियों और प्रदर्शनियों के लिए अतिरिक्त धनराशि की मांग कर बैठते हैं। विदेशों में ऐसा नहीं होता है। यहां देश में एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी के नाम पर फीस से अतिरिक्त पैसे चार्ज किये जाते हैं। विदेशों में लागू नियमों के अनुसार यदि आप विशेष राशि ले रहे हैं तो सब कुछ टर्म फीस में ही शामिल किया जाना चाहिये। वे छात्रों से विश्व पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस आदि पर परियोजनाओं के लिए पेपर प्रिंट भी मांगते हैं जो एक अतिरिक्त लागत के रूप में अंततः अभिभावकों के कंधों पर आ गिरती है।

5. अलग-अलग नोटबुक

अपने बच्चे के भारी भरकम स्कूल बैग को देख कर क्या आपके मन में कभी कोई सवाल नहीं आया? सवाल यह कि इतने सारे कॉपी-किताब को रोज ले जाना आवश्यक है क्या? आपको बता दें कि अधिकांश स्कूलों में अलग अलग नोटबुक रखने का कांसेप्ट है। टेस्ट बुक वो होता है जो मासिक और साप्ताहिक परीक्षाओं के लिए उपयोग किया जाता है तो वहीं नोटबुक का प्रयोग नोट्स लिखने और सहेजने के लिए किया जाता है। यदि किसी बच्चे ने इस अलग-अलग नोटबुक रखने के नियम को नहीं माना तो फलस्वरूप उस बच्चे को परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाती है। स्कूलों में ये निमय कुछ बेबुनियादीद नियमों में से है।

6. लड़कियों के लिए पोनी नॉट बांधना आवश्यक

भारतीय स्कूलों में, परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार लड़कियों के बालों को ट्विन पोनीज़ या ट्विन ब्रैड्स में बांधने के नियम भी लागू है। भारत के कई हिस्सों में लड़कियों के लिए इस तरह से बाल बांधने को सम्मान और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। कुछ स्कूल यह मान सकते हैं कि इस तरह से बाल बांधना अन्य की तुलना में अधिक स्वच्छतापूर्ण दिखाई देता है, क्योंकि यह बालों को चेहरे से और शरीर से दूर रखता है। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह कोई सरकारी नियम नहीं है और इसकी कोई खास आवश्यकता भी नहीं है। विभिन्न स्कूलों के अलग-अलग नियम हो सकते हैं। यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि हर किसी को खुद को अभिव्यक्त करने का अधिकार है, और व्यक्तिगत निर्णयों का सम्मान किया जाना चाहिये।

7. जैकेट पहनने की अनुमति नहीं

देश भर के कई विद्यालयों में शीतकालीन परिधान (जैकेट, टोपी और दस्ताने) पहनने की अनुमति नहीं होती, क्योंकि यह किसी गिरोह का प्रतीक चिन्ह जैसा प्रतीत होता है। इस बेबुनियादी नियम का स्कूल में सिखाये जाने वाले अनुशासन से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। हालांकि स्कूल में इस नियम को तोड़ने पर दंड अनिवार्य रूप से लागू होते हैं।

जानिए स्कूल के ऐसे रूल्स के बारे में जो होते हैं बेबुनियादी

8. बैकपैक की अनुमति नहीं है

देश भर के कई स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों को कक्षा में बैकपैक ले जाने की अनुमति नहीं होती। यदि सही मायनों में देखा जाये तो स्कूलों में लागू ये नियम अनुशासन की दृष्टिकोण से बिल्कुल बेबुनियाद है और निरर्थक है।

9. बाल काटने पर प्रतिबंध

बाल काटने पर प्रतिबंध विशेषकर लड़कों के लिए लागू होता है, जो कि बेहद भेदभावपूर्ण और कठोर हो सकते हैं। कुछ लड़कों के बाल स्वाभाविक रूप से दूसरों की तुलना में लंबे होते हैं, जबकि अन्य अपना सिर मुंडवाना नहीं चाहते क्योंकि उनके घुंघराले बालों के लिए यही एकमात्र समाधान है। कुछ लोगों के लिए बाल कटवाने पर अधिक पैसा खर्च करना बेहद अन्यायपूर्ण है, जबकि अन्य लोग अपने इच्छा के अनुसार बाल पाने में असमर्थ होंगे या बस अपने प्राकृतिक बालों से संतुष्ट होंगे।

10. कंप्यूटर लैब के अंदर जूते पहननने की अनुमति नहीं

अतीत में कंप्यूटर फ्लेक्सिबल नहीं होते थे। गंदगी, धूल और गर्मी के कारण स्कूलों के कंप्यूटर लैब में एयर कंडीशनर होने के कारण स्कूलों में यह नियम बनाया गया ताकि बच्चों के जूते के मैल से लैब का फर्श गंदा ना हो। हालांकि आज के समय में मॉर्डन कंप्यूटरों या लैपटॉप के लिए एसी की आवश्यकता नहीं होती लेकिन फिर भी स्कूलों में ये नियम आज भी लागू है।

11. शौचालय जाने के लिए अनुमति

भारतीय स्कूलों में, आपको शौचालय जाने के लिए शिक्षक से पूछना पड़ता है, और जवाब में वे कई बार नहीं कह देते हैं कि क्लास खत्म होने के बाद चले जाना। इसके पीछे एक आम सोच होती है कि क्लास में पढ़ने की इच्छा ना रखने वाले बच्चे अक्सर पढ़ाई से भागने और बाहर जाने का कोई न कोई बहाना ढूंढते हैं। हालांकि कई बार ऐसा होता है कि बच्चों को यूरीन रोकने की वजह से इंफेक्शन हो जाता है। इस नियम का भी सख्ती से पालन ना करने पर बच्चे को दंडित किया जा सकता है। इस नियम का बच्चे को अनुशासन सीखाने से कोई ताल्लुक नहीं है।

अन्य कुछ बेबुनियादी रूल्स इस प्रकार हैं - (Most Pointless Rules in Indian Schools in hindi)

12. निश्चित दिन पर व्हाइट शू ही पहनना
13. पानी की बोतलों में ही पानी पीना
14. घड़ी ना पहनना
15. विद्यालय के हरेक गतिविधि में हिस्सा लेना
16. अपनी सीट चुनने की अनुमति ना होना
17. 5 से अधिक मित्रों का कोई ग्रूप ना बनाना
18. काले जूते ही पहनना
19. लंबे बाल ना रखना
20. शिक्षकों को लाल पेन का उपयोग करने की अनुमति नहीं

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English summary
It is necessary to have discipline in school, but many times one hears about some baseless rules in schools, such as taking teacher's permission to drink water, not talking in mother tongue, only tying pony knot for girls. In this article, such baseless rules applicable in Indian schools are being explained in detail. What are some pointless rules in Indian schools, Most Pointless Rules in India
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