Munshi Premchand Stories in Hindi: साहित्यकार प्रेमचंद की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा अपने गांव लमही‚ वाराणसी में हुई थी। हाई स्कूल की पढ़ाई उन्होंने क्वींस कॉलेज‚ वाराणसी और इंटर सेंट्रल हिंदू कॉलेज से की। स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई। वह अध्यापक थे।
स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उनकी पदोन्नति डिप्टी इंस्पेक्टर के रूप में हुई। 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन से प्रेरित होकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। प्रेमचंद औपचारिक शिक्षा से गहरे संबद्ध थे। प्रेमचंद शिक्षा व्यवस्था को लेकर बहुत संवेदनशील थे। अपने लेख 'नया जमाना-पुराना जमाना' में उन्होंने देश के शिक्षित और सम्पन्न लोगों की जन विरोधी तथा स्वराज्य विरोधी नीति की भर्त्सना की है। उनकी कई कहानियों में शिक्षा‚ पठन-पाठन और चरित्र निर्माण में उसकी भूमिका का संदर्भ मिलता है। अपनी कहानियों में तत्कालीन पश्चिम आधारित शिक्षा पद्धति को भ्रष्ट मानते हैं‚ और भारतीय अर्थ को ही स्वीकार्य मानते हैं।
पशु से मनुष्य (1920‚ प्रभा पत्रिका) के प्रेमशंकर कहते हैं-'मुझे वर्तमान शिक्षा और सभ्यता पर विश्वास नहीं है। विद्या का धर्म है आत्मिक उन्नति‚ और आत्मिक उन्नति का फल उदारता‚ त्याग‚ सदिच्छा‚ सहानुभूति‚ न्यायपरता और दयाशीलता है। जो शिक्षा हमें निर्बलों को सताने पर तैयार करे‚ जो हमें धरती और धन का गुलाम बनाए‚ जो भोग-विलास में डुबाए‚ जो दूसरों का रक्त पीकर मोटा होने को इच्छुक बनाए‚ वह शिक्षा नहीं भ्रष्टता है।'
प्रेमचंद की प्रथम कहानी परीक्षा (1914 'प्रताप' पत्रिका)
हिंदी में प्रकाशित प्रेमचंद की प्रथम कहानी परीक्षा (1914 'प्रताप' पत्रिका) अंग्रेजी शिक्षा पाए नकलची युवकों के स्थान पर परदुःखकातर‚ परमार्थी‚ सेवा भावना रखने के युवक को श्रेयस्कर मानती है। देवगढ़ की रियासत के दीवान के चुनाव में अपनाई गई प्रक्रिया शिक्षा के महत्वपूर्ण उपादान की तरह है। इस कहानी में स्वाभाविक वृत्ति और समयानुकूल रूप धरने की शिक्षित लोगों की कला पर बहुत महीन व्यंग्य मिलता है।
प्रेमचंद की कहानी 'बड़े घर की बेटी' (1920‚ जमाना पत्रिका)
प्रेमचंद नाम से प्रकाशित पहली कहानी 'बड़े घर की बेटी' (1920‚ जमाना पत्रिका) के श्रीकंठ 'डिग्री के अधिपति होने पर भी अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे‚ बल्कि बहुधा बड़े जोर से उनकी निंदा और तिरस्कार किया करते थे। इसी से गांव में उनका बड़ा सम्मान था।' इस कहानी में आनंदी के बड़े घर की बेटी होने का श्रेय इस बात से मिलता है कि वह घर को‚ भाइयों के बीच संबंध टूटने से बचा लेती है।
प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर (1916‚ सरस्वती पत्रिका)
प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर (1916‚ सरस्वती पत्रिका) पारंपरिक न्याय व्यवस्था का बहुत सुघड़ निदर्शन कराती है। कहानी के प्रारम्भिक अनुच्छेद में प्रेमचंद ने परंपरागत शिक्षा प्रणाली पर टिप्पणियां की हैं। प्रेमचंद स्थापित करते हैं कि पढ़-लिख कर सहज ही आदर प्राप्त किया जा सकता है किन्तु जुम्मन के चरित्र का चित्रण करते हुए वह दर्शाते हैं कि अधिक पढ़- लिख लेने के बाद जुम्मन स्वार्थी और संकीर्णता के शिकार हो गए हैं। अपनी खाला की संपत्ति हड़प लेते हैं। अपने विपक्ष में निर्णय देने पर अलगू चौधरी के बैल को जहर दे देते हैं। यह संकीर्णता वाला भाव प्रेमचंद अपनी कहानी मंत्र में भी दिखाते हैं।
प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब (1934‚ हंस)
बड़े भाई साहब (1934‚ हंस) में बड़े भाई के मुख से पश्चिमी शिक्षा की जितनी तीखी आलोचना प्रेमचंद ने की है‚ वह उल्लेखनीय है। प्रेमचंद की एक अन्य कहानी ईदगाह (1933‚ चांद पत्रिका) बाल मनोविज्ञान पर केंद्रित है। कहानी में प्रेमचंद ने मेला देखने जा रहे बच्चों से कॉलेज की शिक्षा और व्यवस्था पर व्यंग्य वचन कहलाए हैं। वह लिखते हैं-'इतने बड़े कॉलेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे! सब लड़के नहीं हैं जी! इतने बड़े हो गए‚ अभी तक पढ़ते जाते हैंॽ न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर! हमीद के मदरसे में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं‚ बिल्कुल तीन कौड़ी के‚ रोज मार खाते हैं‚ काम से जी चुराने वाले।'
प्रेमचंद की कहानी 'गुल्ली डंडा'
उनकी एक कहानी 'गुल्ली डंडा' में सहपाठी रहे दो युवकों के बीच शिक्षा के कारण कितना अंतर आ गया है। उनकी कई कहानियों में स्त्री शिक्षा के बारे में भी प्रसंग मिलते हैं। जीवन का शाप‚ मिस पद्मा‚ क्रिकेट मैच आदि कहानियों में शिक्षित स्त्रियों का चित्रांकन है।
कमल किशोर गोयनका लिखते हैं-'प्रेमचंद की कहानियों में पश्चिमी शिक्षा-दीक्षा तथा धन प्रभुतामय जीवन के प्रति घोर आलोचनात्मक व्यवहार मिलता है। वह आरंभ से ही अंग्रेजों द्वारा स्थापित पश्चिमी शिक्षा के केंद्रों के समाज पर पड़ते प्रभाव को देख रहे थे कि किस प्रकार अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीय अपने संस्कारों और जातीय परंपराओं को हीन मानते हुए अंग्रेजी की नकल में ही गौरव एवं श्रेष्ठता का अनुभव करते हैं। प्रेमचंद इसे ही मानसिक पराधीनता मानते हैं‚ जो युवा पीढ़ी का चारित्रिक पतन कर रही है‚ जनता से दूर ले जा रही है।' (Munshi Premchand Stories in Hindi)
किसान जीवन‚ दलित समुदाय की समस्याओं‚ सामाजिक समस्याओं और स्त्रियों तथा बच्चों पर केंद्रित साहित्य प्रेमचंद के यहां बहुतायत में है। इसमें शिक्षा महत्वपूर्ण घटक है‚ जो उनके साहित्य और चिंतन के केंद्र में रहा है। वह पश्चिमी शिक्षा पद्धति के कटु आलोचक और भारतीय जीवन पद्धति तथा शिक्षण प्रक्रिया के पक्षधर थे। उनके कथा साहित्य में यह बारंबार परिलक्षित होता है।