How 2 Days Week Off Boosts Productivity in hindi: आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में सुकून के पलों की चाहत हर किसी को है। सरकारी और प्राइवेट दोनों ही क्षेत्रों के कर्मचारी कार्यक्षेत्रों में वर्क प्रेशर से जूझ रहे हैं। ऐसे में कार्यक्षेत्र में प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के उपाय अब लोग इंटरनेट पर ढूंढने लगे हैं। हालांकि आगे निकलने और बेस्ट प्रदर्शन करने के चक्कर में लोग ये भूल जाते हैं कि शरीर के साथ-साथ दिमाग को भी आराम देना कितना महत्वपूर्ण होता है।
कामकाज के बीच यदि आम शेड्यूल में एक ओर दिन छुट्टी जोड़ दी जाए तो क्या बात है। बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली समेत अन्य कई बड़े शहरों में निजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा दो वीक ऑफ या वीकेंड पर अवकाश दिया जाता है। कंपनियों का मानना है कि इससे व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार से थोड़ा आराम मिलता है और कार्य में प्रोडक्टिविटी भी बढ़ सकती है। चाहे बात सरकारी नौकरी की हो या निजी क्षेत्र में नौकरी की प्रोडक्टिविटी को बनाए रखने के लिए काम और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना ज़रूरी हो गया है।
भारत में ज्यादातर कर्मचारियों को परंपरागत तौर पर केवल एक दिन का वीकेंड ऑफ दिया जाता है। इसके बजाय हर हफ़्ते दो दिन की छुट्टी देना व्यवसायों और कर्मचारियों दोनों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। दो दिन का वीकेंड कर्मचारियों को ना केवल रिफ्रेश महसूस करने में मदद कर सकता है, बल्कि इससे उनकी कार्यकुशलता में सुधार हो सकता है। कई अध्ययनों में यह पाया गया है कि वीकेंड में छुट्टी से कार्यस्थल की समग्र उत्पादकता भी बढ़ सकती है।
आइए जानें कि यह तरीका कर्मचारियों और संगठनों दोनों को कैसे फ़ायदा पहुंचा सकता है। कार्यक्षेत्र में हफ्ते में दो दिन की छुट्टी क्यों ज़रूरी है और एक कर्मचारी को अपने काम के लिए कितने घंटे समर्पित करने चाहिये।
दो दिन की छुट्टी क्यों ज़रूरी है?
पर्याप्त आराम के बिना लगातार काम करने से बर्नआउट, तनाव और थकान होती है। यह एक कर्मचारी की प्रोडक्टिविटी को बाधित करती है। दो दिन का वीकेंड आराम करने, तरोताज़ा होने और कार्य सप्ताह के दौरान जमा हुई मानसिक और शारीरिक थकावट से उबरने के लिए पर्याप्त समय होता है। दो दिन के वीकेंड पर मिलने वाली छुट्टी से व्यक्ति तरोताज़ा महसूस करते हैं और इससे सोमवार को काम पर लौटने पर बेहतर फ़ोकस और एनर्जी मिलती है। इससे कर्मचारी बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं।
कर्मचारी के टर्नओवर की संभावना होती है कम
आज के समय में पूरी दुनिया इंटरकनेक्टेड है। इस जुड़ी हुई दुनिया में काम और निजी समय के बीच की रेखाएं धुंधली पड़ रही हैं। दो दिन का सप्ताहांत कर्मचारियों को काम से जुड़ी ज़िम्मेदारियों से दूर रहने, परिवार और दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने, अपने अधूरे शौक पूरा करने या निजी रुचियों में शामिल होने में मदद करता है। यह व्यक्ति के कार्य और जीवन के बीच संतुलन बर्नआउट को रोकता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इससे नौकरी में संतुष्टि बनी रहती है और इससे कर्मचारी के टर्नओवर की संभावना कम हो जाती है।
काम से दूर रहने से दिमाग को संपूर्ण रूप से आराम मिलता है। इससे क्रिएटिव और प्रॉब्लम सॉल्युशन करने की स्किल बढ़ जाती है। पर्याप्त आराम और छुट्टी से नए विचारों को समझने और उन्हें कार्यों में प्रदर्शित करने का प्रोत्साहन मिलता है। छुट्टी या वीकेंड हॉलीडे के दौरान कर्मचारी नए दृष्टिकोण और नई कल्पना के साथ सोमवार को कार्यक्षेत्र पर लौटते हैं। पर्याप्त आराम करने से व्यक्ति आउट ऑफ द बॉक्स सोचने और कार्यस्थल में क्रिएटिव रूप से योगदान देने की अधिक संभावना रखता है।
वीकेंड की छुट्टी से बढ़ती है प्रोडक्टिविटी
जब कर्मचारियों को पता होता है कि उनके पास सोचने, समझने और बेस्ट करने के लिए दो दिन की छुट्टी है, तो वे अपने वर्किंग आवर्स का अधिकतम लाभ उठाते हैं। पर्याप्त छुट्टी से सप्ताह के दौरान कार्य में अधिक फोकस होकर काम कर पाते हैं और डिले या अकुशलता अर्थात इनेफिशिएंसी में कमी आती है। सप्ताहांत से पहले कार्यों को पूरा करने की तत्परता की भावना बेहतर समय प्रबंधन और प्राथमिकता निर्धारण को प्रोत्साहित करती है। जिन कर्मचारियों को वीक में दो दिन छुट्टी मिलती है वे अपने कार्य और पारिवारिक जीवन में संतुलन बनाए रखने में सफल होते हैं। उनके सीक लीव या अन्य छुट्टियों पर जाने की संभावना कम होती है। सप्ताहांत पर पर्याप्त आराम के कारण बर्नआउट में कमी आती है।
पर्याप्त छुट्टी पाने वाले कर्मचारी अपने काम को लेकर प्रेरित रहते हैं और सहयोगी की मदद करने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। फ्रेश माइंड और कम तनाव व्यक्तियों को अपनी टीम के सदस्यों के साथ बेहतर काम करने में मदद करता है, जिससे समग्र उत्पादकता और टीम की गतिशीलता बढ़ती है।
बेस्ट प्रदर्शन करने के लिए कितने घंटे काम करना चाहिये?
एक सप्ताह में मानक 40 घंटे का काम करना श्रेष्ठ माना जाता है। इस हिसाब से देखें तो पांच दिनों में प्रतिदिन 8 घंटे काम करने को श्रेष्ठ माना जाता है। यह मानक कई दशकों से आदर्श बना रहा है। अध्ययनों से पता चलता है कि इस सीमा से परे काम करने से प्रोडक्टिविटी के मामले में कम रिटर्न मिल सकता है। हालांकि नौकरी या उद्योग की प्रकृति के आधार पर अपवाद हो सकते हैं, लेकिन 40 घंटे का कार्य सप्ताह आम तौर पर उत्पादकता और बर्नआउट से बचने के बीच संतुलन बनाए रखता है।
कई कंपनियां अब फ्लेक्सिबल वर्क आवर अपना रही हैं। इससे कर्मचारी मानक घंटों को बनाए रखते हुए अपना शेड्यूल सेट कर सकते हैं। यह फ्लेक्सिबिलिटी व्यक्तियों को उनके सबसे अधिक प्रोडक्टिव घंटों के दौरान काम करने में मदद करता है, चाहे सुबह हो या दिन के बाद। कई कंपनियों में अब चार-चार घंटे की शिफ्ट में लोगों को कार्य करने की फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है।
आखिरकार किसी व्यक्ति को अपने काम के लिए कितने घंटे समर्पित करने चाहिये, यह काम की प्रकृति, व्यक्तिगत उत्पादकता पैटर्न और कंपनी की अपेक्षाओं जैसे कारकों पर निर्भर करता है। हालांकि व्यक्ति को नियमित ब्रेक सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसमें साल में कम से कम एक बार पूरा सप्ताह की छुट्टी शामिल है।
पोमोडोरो तकनीक और ब्रेक
शोध से पता चलता है कि वर्किंग डे के दौरान नियमित ब्रेक, जैसे कि पोमोडोरो तकनीक (25 मिनट काम के बाद 5 मिनट का ब्रेक), फोकस और उत्पादकता को बढ़ा सकता है। लगातार ब्रेक के साथ एक संरचित कार्य शेड्यूल निरंतर ध्यान सुनिश्चित करता है और मानसिक थकान को रोकता है। खुश, पर्याप्त आराम करने वाले कर्मचारियों के अपने संगठन के साथ लंबे समय तक बने रहने की अधिक संभावना होती है। हर हफ़्ते दो दिन की छुट्टी देना यह दर्शाता है कि कंपनी अपने कर्मचारियों की भलाई को महत्व देती है।
वीक ऑफ लेना लॉन्गटाइम प्रोडक्टिविटी, मानसिक स्वास्थ्य और जॉब सैटिस्फेक्शन के लिए आवश्यक है। यह बर्नआउट को रोकता है, स्वस्थ कार्य एवं जीवन संतुलन को बढ़ावा देता है और अंततः कर्मचारियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए अधिक व्यस्त, केंद्रित और प्रेरित बनाता है। नियमित अवकाश को न केवल काम में विराम के रूप में, बल्कि भविष्य की उत्पादकता में निवेश के रूप में देखा जाना चाहिये।