स्वच्छ भारत अभियान के चलते संपूर्ण देश में अपशिष्ट प्रदार्थों के प्रबंधन के क्षेत्र में करियर के चमकीले अवसर उत्पन्न हो गए हैं। उल्लेखनीय है कि पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए अपशिष्ट पदार्थों को रीसाइकल करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है, ताकि इसे पुन: किसी अन्य रूप में प्रयोग में लाया जा सके। इन अपशिष्ट पदार्थों को फिर से एक नया रूप देने की प्रक्रिया को ही 'अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन' यानी वेस्ट मैनेजमेंट के नाम से जाना जाता है। गौरतलब है कि अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन पर्यावरण प्रबंधन एवं संरक्षण का एक आधार स्तंभ है। इसके तहत पर्यावरण विज्ञान अथवा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कुछ प्रमुख क्षेत्रों में काम किया जा सकता है। अब तो अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन का चलन जोरों पर है। इसमें ज्यादातर अपशिष्ट पदार्थ इलेक्ट्रॉनिक तथा प्लास्टिक का होता है। देश में तेजी से खुल रही वेस्ट ट्रीटमेंट एजेंसियों ने इस क्षेत्र में रोजगार के ढेरों अवसर सृजित कर दिए हैं।
एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट
अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन न सिर्फ अपशिष्ट पदार्थों के दोबारा प्रयोग में लाने के बारे में जानकारी प्रदान करता है, अपितु प्रोफेशनल्स को उस फील्ड में स्थापित करने के लिए कई अन्य तरह की स्किल्स भी सिखाता है। इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रकृति के प्रति लगाव होना नितांत आवश्यक है। शुरू-शुरू में विद्यार्थियों को ये सारी चीजें अटपटी लगेंगी, लेकिन जैसे-जैसे उनका मन इसमें रमता जाएगा, वो इस प्रोफेशनल्स का भरपूर मजा उठा सकेंगे। अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन का पूरा कार्यक्षेत्र एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट तथा उसके ईदगिर्द घूमता है। पर्यावरण सुरक्षा संबंधी कार्य साइंस एवं इंजीनियरिंग के विभिन्न सिद्धांतों के प्रयोग से आगे बढ़ते हैं। वातावरण में व्याप्त प्रदूषण को दूर करने के लिए साइंटिस्ट कई प्रकार की रिसर्च, थ्योरी तथा विधियों को अपनाते हैं अर्थात अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन प्रक्रिया में एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट का कार्य रिसर्च ओरिएंटेड ही होता है, जिसमें एडमिनिस्ट्रेटिव, एडवाइजरी तथा प्रोटेक्टिव तीनों स्तर पर करना होता है।
स्वच्छता अभियान कार्यक्रम
हमारे देश में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट पदार्थों (ई-वेस्ट) की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। उसी अनुपात में उसे दोबारा प्रयोग में लाए जाने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट पदार्थों के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरे जैसे कम्प्यूटर, टीवी, डिस्प्ले डिवाइस, सेलुलर फोन, प्रिंटर, फैक्स मशीन, एलसीडी, सीडी, डीवीडी, मिलिट्री इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट आदि शामिल होते हैं। गौरतलब है कि घरों, शहरों तथा फैक्टरियों से निकलने वाले कूड़े का सही तरीके से निस्तारण न हो पाना एक प्रमुख समस्या है। हर देश इस समस्या से ग्रसित है। अथक प्रयासों के बाद भी इस क्षेत्र में उतना काम नहीं हो पाया है, जितनी कि जरूरत है। केन्द्र सरकार के स्वच्छता अभियान कार्यक्रम सहित कई एनजीओ इस समस्या को हल करने में लगे हुए हैं। इसके लिए वे घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर रहे हैं। इस कूड़े में जो कुछ ज्वलनशील पदार्थ हैं उससे एनर्जी तथा जो सडऩे वाले हैं, उससे वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। आज भी हमारे देश में लाखों लोग जागरूकता के अभाव में अपशिष्ट पदार्थ जहाँ-तहाँ फेंक देते हैं। इससे उनका प्रबंधन नहीं हो पाता है।
पर्यावरण विज्ञान के कोर्स
गौरतलब है कि हमारे देश में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। सरकारी और निजी स्तर पर भी इस क्षेत्र में काफी कार्य हो रहे हैं। यहाँ तक कि विद्यालयीन और विश्वविद्यालयीन स्तर पर भी पर्यावरण को एक विषय के रूप में शामिल कर छात्रों को इसके महत्व और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए जाने से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन को ज्यादातर पर्यावरण विज्ञान के कोर्स में एक विषय के रूप में शामिल किया गया है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन कोर्स बैचलर अथवा मास्टर डिग्री स्तर के ही होते हैं। इसमें तीन साल के बैचलर कोर्स बीएससी/बीई (पर्यावरण विज्ञान) तथा दो साल के मास्टर कोर्स एमएससी/एमटेक (पर्यावरण विज्ञान) कोर्स हमारे देश में उपलब्ध हैं।
नई तकनीक विकसित
बीएससी तथा बीई में प्रवेश साइंस विषयों सहित 12वीं के बाद मिलता है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है, जबकि एमएससी व एमटेक में प्रवेश पर्यावरण विज्ञान में बीएससी अथवा बीटेक करने के उपरांत मिलता है। कुछ संस्थान में एमफिल तथा पीएचडी कोर्स भी उपलब्ध हैं, जिसमें मास्टर डिग्री के कोर्स के बाद रजिस्ट्रेशन कराया जाता है। कई संस्थान अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन में एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा कोर्स भी करा रहे हैं। अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन कोर्स के तहत छात्रों को यह बताया जाता है कि अपशिष्ट पदार्थ क्या है, ये कितने प्रकार के होते हैं एवं इसका किस प्रकार से प्रबंधन किया जा सकता है। साथ ही अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के कोर्स में उन्हें यह भी बताया जाता है कि किस तरह से नई तकनीक विकसित कर कम पैसे में अपशिष्ट पदार्थ का प्रबंधन किया जा सकता है।
पर्यावरण की सुरक्षा
अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन का कोर्स करने के उपरांत रोजगार के कई अवसर प्रदेश एवं देश में उपलब्ध हो जाते हैं। एक नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार विश्व के तकरीबन 132 देश प्रदूषण की समस्या से बुरी तरह से त्रस्त हैं। भारत भी उनमें से एक है। भारत के करीब 19-20 शहर भीषण प्रदूषण की जद में हैं। ऐसे में अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के जानकारों की माँग और बढ़ जाती है। इस क्रम में विभिन्न सरकारी विभागों तथा एजेंसियों जैसे फॉरेस्ट एंड एन्वायर्नमेंटल, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, अर्बन प्लानिंग, इंडस्ट्री, वॉटर रिसोर्सेज एवं एग्रीकल्चर आदि में रोजगार उपलब्ध हैं। अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के जानकार को पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित एनजीओ में काम करने के चमकीले अवसर मिल रहे हैं।
इन क्षेत्रों में मिलेगा काम
प्राइवेट कंपनियाँ भी बड़े रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आ रही हैं। अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन इंडस्ट्री, रिफाइनरी, डिस्टिलरी, माइन्स, फर्टिलाइजर प्लांट्स, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री एवं टेक्सटाइल मिल्स में अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के जानकारों के लिए रोजगार के कई अवसर उपलब्ध हैं। कई सरकारी तथा प्राइवेट कंपनियाँ रिसर्च क्षेत्र में भी काम करती हैं। बतौर एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट उसमें भी अपना करियर बना सकते हैं। अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के क्षेत्र में शिक्षण के क्षेत्र में भी आकर्षक सेलरी मिलती है।
अवशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन/पर्यावरण विज्ञान का कोर्स कराने वाले प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वॉयर्नमेंटल मैनेजमेंट, मुंबई
छत्तीसगढ़ यूनिवर्सिटी, रायपुर
गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार
यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, जयपुर
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद
गुरु गोविन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली