Career In Medical Coding Course Jobs Salary हर साल मेडिकल फिल्ड के लिए लाखों स्टूडेंट्स डॉक्टर/नर्स/मेडिकल प्रोफेशनल बनने के इरादे से साइंस में ग्रेजुएशन करते हैं। इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि हैल्थकेयर सेक्टर में हमेशा वृद्धि बनी रहती है। मौजूदा समय में यह इंडस्ट्री 18% की सालाना दर से बढ़ रही है जिसकी वजह से यह आईटी और आईटीईएस क्षेत्र की सबसे तेजी से बढ़ती इंडस्ट्री बन गई है। एक अनुमान के मुताबिक 2022 तक हैल्थकेयर इंडस्ट्री 8.6 ट्रिलियन रुपए की हो जाएगी। तेज ग्रोथ के चलते ही इस सेक्टर में नौकरी के कई अवसर पैदा हो रहे हैं जिनमें से एक है मेडिकल कोडिंग।
मेडिकल कोडिंग क्या है? आसान शब्दों में यह इंश्योरेंस कंपनियों और डॉक्टर्स के बीच एक ब्रिज है। एक मेडिकल कोडर पेशेंट के मेडिकल रिकॉर्ड्स से जानकारी एकत्र करके उन्हें इंडस्ट्री के स्टैंडर्ड्स के हिसाब से मेडिकल कोड में परिवर्तित करता है जो वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य होते हैं। डायग्नोसिस, प्रोसीजर और दवाओं से जुड़े इन कोड्स को मेडिकल बिलिंग और इंश्योरेंस के लिए उपयोग किया जाता है। नैसकॉम के अनुसार काम की बेहतर क्वालिटी, सर्विसेज की 24/7 उपलब्धता और टैक्स फ्रेंडली स्ट्रक्चर ने देश की बीपीओ इंडस्ट्री को लोकप्रिय बनाया है जिससे यह मेडिकल कोडिंग जैसी हैल्थकेयर आउटसोर्सिंग सर्विसेज का हब बन गया है।
ये हैं जरूरी स्किल्स
डीटेल्स पर गौर करने की क्षमता: मेडिकल डॉक्यूमेंट की प्रोसेसिंग और कोडिंग के दौरान कोडर को हर डीटेल पर ध्यान देना होता है। अगर किसी सर्जिकल प्रोसीजर के लिए गलत एल्फान्यूमेरिक कोड दे दिया जाए तो पेशेंट व डॉक्टर दोनों के लिए मुश्किल हो सकती है।
टेक्निकल स्किल्स : मेडिकल कोडर्स को माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल से लेकर मास्टर पेशेंट इंडेक्स जैसे प्रोग्राम्स सीखने के लिए टेक्निकल स्किल्स में दक्ष होना होगा।
एनालिटिकल स्किल्स : मेडिकल कोडिंग के जटिल रूल्स को देखते हुए पेशेंट के रिकॉर्ड से डीटेल्स को समझकर सही कोड अप्लाय करने के लिए मजबूत एनालिटिकल स्किल्स जरूरी होंगी।
ऑनलाइन असाइनमेंट
मेडिकल कोडिंग और मेडिकल बिलिंग की आउटसोर्सिंग के लिए भारत सबसे पसंदीदा देश है। यहां तक कि यूएस की 80% कंपनियां भारत को आउटसोर्स करती हैं। आईटी और हैल्थकेयर दोनों ही सेक्टर्स से जुड़े होने से कोडर्स को ग्रोथ का अच्छा अवसर मिलता है।
जॉब्स
मेडिकल कोडिंग में डायग्नोसिस, लक्षणों, प्रक्रियाओं और दवाओं को कोड्स में बदलने का काम किया जाता है। इनका काम पेमेंट, डेटा कलेक्शन, रिसर्च, बिलिंग से जुड़ा होता है जिसे क्वालिटी इम्प्रूवमेंट के लिए इंश्योरेंस कंपनीज को सबमिट किया जाता है।
प्रोफेशनल कोडर
हैल्थकेयर एजेंसीज के लिए काम करते हुए सर्टिफाइड कोडर्स यह सुनिश्चित करते हैं कि कोडिंग का इस्तेमाल नियमों के अनुसार किया गया हो। सर्टिफाइड कोडर्स को कई बार पेशेंट्स और डॉक्टर्स, नर्सेज व ऑफिस स्टाफ के साथ इंटरेक्ट करना होता है इसलिए मजबूत कम्युनिकेश और इंटरपर्सनल स्किल्स की जरूरत होती है।
रिव्यूअर
डॉक्टर्स जिन मेडिकल टर्म्स का इस्तेमाल करते हैं उन्हें समझकर उनकी मांग को सत्यापित करना इंश्योरेंस कंपनियों के कर्मचारियों के लिए मुश्किल है। ऐसे में प्रोटोकॉल के अनुसार पेमेंट के लिए तकनीकी जानकारी रखने वाले मेडिकल कोडर्स की आवश्यकता होती है।
रीप्रेजेंटेटिव
ये हॉस्पिटल पेशेंट्स के बिलिंग व पेमेंट इश्यूज से जुड़े प्रशासनिक काम देखते हैं। ये पेशेंट्स के बिल की सही गणना करते हैं और फिर उसे सबमिट करते हैं, क्लेम्स के अलावा पेमेंट्स और ओवरड्यू नोटिसेज को सेंड व रिकॉर्ड करते हैं।
हैल्थकेयर
एसोचैम और ईवाय (इंडिया) के मुताबिक हैल्थकेयर आउटसोर्सिंग में भारत अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। बीपीओ कंपनीज को भी ऑस्ट्रेलिया, चाइना, फिलिपींस और आयरलैंड की तुलना में भारत ज्यादा पसंद है। कम लेबर कॉस्ट और स्किल्ड व इंग्लिश बोलने वाले प्रोफेशनल्स की उपलब्धता इसका एक बड़ा कारण है।
किसी भी डिग्री के साथ मेडिकल कोडर बन सकते हैं हालांकि लाइफ साइंसेज की डिग्री आपको दूसरों की तुलना में एक कदम आगे रखती है। एनॉटमी, फिजियोलॉजी और मेडिकल टर्मिनोलॉजी की जानकारी मेडिकल कोडिंग स्पेशलिस्ट बनने में आपकी मदद करेगी। लाइफ साइंसेज से अलग बैकग्राउंड वाले स्टूडेंट्स भी सर्टिफाइड एकेडमीज के कोर्सेज के माध्यम से कॅरिअर शुरू कर सकते हैं। हालांकि मेडिकल कोडर बनने के लिए सर्टिफिकेशन की अनिवार्यता नहीं है लेकिन इसके होने पर आपके पास जॉब के अधिक अवसर होंगे। ये कोर्सेज 3-4 महीनों के होते हैं जिन्हें पार्ट टाइम किया जा सकता है।