महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में एपी सेन सभागार में ''वैदिक संस्कारों की उपयोगिता'' विषयक त्रिदिवसीय (15 अक्टूबर-17 अक्टूबर 2024) राष्ट्रिय संगोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन किया गया, जिसका उद्घाटन सत्र दिनांक 15 अक्टूबर को प्रारम्भ हुआ।
कार्यक्रम का प्रारम्भ वैदिक मङ्गलाचरण से हुआ। उदघाटन सत्र में महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन के प्रतिनिधि आकाश मिश्र और कुंजबिहारी पांडेय जी भी उपस्थित रहें।
कार्यक्रम के आरम्भ में आये हुये अतिथियों का वाचिक स्वागत संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ, के अध्यक्ष, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिमन्यु सिंह जी ने किया। डॉ. अशोक शतपथी जी ने सभी विद्वज्जनों को शाल, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिका देकर सम्मानित किया।
इस सत्र की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति प्रेा0 आलोक राय ने कहा- कि वेदों में हर चीज का वर्णन है और विश्वविद्यालय में वैदिक शोध होना चाहिए। कुलपति ने कहा नवीनीकृत टैगोर लाइब्रेरी में संस्कृत विभाग के सहयोग से एक वैदिक सेक्शन विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा भारत का गौरवशाली इतिहास रहा है और आगे भी रहेगा।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय, पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय तथा पूर्व सचिव महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन, ने अपने वक्तव्य में बताया कि संस्कार की प्रासङ्गिकता पूर्वकाल में भी थी, मध्यकाल में भी रही और आज भी उतनी ही है। कल्प वेदांग में संस्कारों का वर्णन विस्तार से किया गया है। लोक के कल्याण की भावना से वैदिक ऋषियों ने संस्कारों का प्रचलन कराया और उनके कर्मों को विधिवत् अनुष्ठानों द्वारा मनुष्य को मनुष्य बनाने के लिए और मनुष्यत्व से देवत्व तक ले जाने के लिए संस्कारों को स्थापित किया।
प्रो. पाण्डेय ने संस्कारों में विवाह संस्कार का सर्वाधिक महत्व बताया। पारस्कर गृह्यसूत्रों में सबसे पहले विवाह संस्कार का ही वर्णन किया गया है। क्योंकि सभी संस्कारों में सबसे प्रधान संस्कार यही है। इसी संस्कार पर आश्रित होकर के अन्य संस्कारों के अनुष्ठान की स्थिति होती है।
कार्यक्रम के मुख्यातिथि, जगद्गुरूरामान्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति प्रो0 राम सेवक दुबे जी ने कहा- जिसने वेद और वेदांगों का अध्ययन किया हो। वही व्यक्ति 16 संस्कारों को ग्रहण कर सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने पूर्वजन्म के संस्कारों को लेकर आता है। मनुष्य के सर्वांगीण विकास में संस्कारों की महती भूमिका है।
उन्हेंनि कहा कि संस्कारों की उपयोगिता कालत्रयी है। यानि तीनों कालों में संस्कारों की उपयोगिता प्रासंगिक है !
यह समस्त जगत पुनरावर्तित है- गीता के एक श्लोक का उच्चारण करते हुए बताया कि पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति के लिए संस्कार अति आवश्यक है।
संस्कार के द्वारा मानवीय आचरण सुसंस्कृत होता है। उन्होने यह साथ ही सभा को यह भी बताया कि पूर्वजन्म के संस्कार भी फलित होते हैं। संस्कारों का प्रमुख लक्ष्य मोक्षप्राप्ति है। इन्होंने षोडश संस्कारों में गर्भाधान संस्कार का पर विशेष बल दिया। क्योंकि वहीं से सबकुछ निर्धारित होता है। उन्होंने बताया कि प्राचीन समय में गर्भाधान सरकार कैसे होता था। राष्ट्र की रक्षा ,वंश की रक्षा, कुल का निर्धारण, माता- पिता ,परिजन वंश की वृद्धि के लिए संस्कार को वैदिक विधि से करते थे। गर्भाधान के तीसरे महीने पश्चात पुंसवन संस्कार कोक्ष यज्ञ के माध्यम से कर उत्तम सन्तान के प्राप्ति की कामना करते हैं।
सारस्वत अतिथि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो0 सर्वनारायण झा जी ने कहा-
कि भारतीय संस्कृति वेदों में निहित है। संस्कृत का संरक्षण होना बहुत आवश्यक है। उन्होनें कहा कि ज्योतिष का विषय सभी विद्यालयों में होना चाहिए। संस्कारों की आज बहुत उपयोगिता है ,क्योकि पुरातन विचारों का लोप होता चला गया। आधुनिक समय में बहुत लोगो के सभी सरकारी के नाम तक ज्ञात नहीं। यह बहुत चिन्ता का विषय है, इस विषय पर चर्चा की। जो झा जी ने बताया की आज की युवा पीढ़ी आगे जाकर इन संस्कारों को जीवित रखेगी।
विशिष्ट अतिथि बेंसबाडा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रायबरेली के प्रचार्य चरः डॉ अमलधारी सिंह गौतम जी ने कहा-
वेद कल्पवृक्ष पुस्तक का विमोचन भी किया गया जिसके लेखक अमलधारी जी है! चारों वेदों को अपनी लेखनी से जन-जान तक पहुँचाने वाले मनीषी आचार्य अमलधारी जी ने कहा- वेदों रक्षित रक्षित:! सारा ज्ञान वेदों में भरा पड़ा है! प्राचीन काल में ऋग्वेद की 25 शाखाएँ थी किंतु अब सभी प्राप्य नहीं है!
वेद बहुत सरल भी उन्हें हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए तभी हमारा व्यक्तित्व संस्कारों से ओत-प्रोत होगा! लखनऊ विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो० अरविंद मोहन जी आए हुए विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि वेद में ज्ञान है, संस्कार है और जीवनशैली है!
वेद के ज्ञान को आम जनतक कैसे पहुंचाए यह हम सभी की ज़िम्मेदारी है! ऋषियों का आश्रम सिर्फ़ अध्यात्म का केंद्र न होकर ज्ञान के सृजन का केंद्र था ! कार्यक्रम का संचालन ज्योतिर्विज्ञान के संयोजक ऐसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉ सत्यकेतु जी ने किया। संस्कृति तथा प्राकृत भाषा विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डाॅ गौरव सिंह, डॉ० भुवनेश्वरी भारद्वाज, डॉ० बृजेश कुमार सोनकर, डॉ० ऋचा पाण्डेय तथा ज्योतिर्विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ० विपिन कुमार पांडेय, डॉ० अनिल कुमार पोरवाल, डॉ० विष्णुकांत शुक्ल,, डॉ० अनुज कुमार शुक्ल, डाॅ प्रवीण कुमार बाजपेयी, कोमल, नीरज, योगेश आदि लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम में लगभग दो सौ छात्र एवं छात्राएं उपस्थिति रहें।