Supreme Court on AMU Minority Status: शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय फ्रटर्नटी के पक्ष में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। दरअसल, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में एक अहम फैसला सुनाया।
साल 1967 में अजीज बाशा बनाम भरत गणराज्य मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले को पलट दिया। संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय फ्रटर्नटी ने स्वागत किया है। संस्थान में दोपहर से ही जश्न मनाया जा रहा है और स्टॉफ एवं छात्र जश्न में डूबे हुए हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय फ्रटर्नटी ने अपने एक बयान में कहा कि यह उन मूल सिद्धांतों पर विजय है, जिनके आधार पर संस्थान की स्थापना की गई थी। गौरतलब हो कि संवैधानिक कानून विशेषज्ञ और एएमयू के पूर्व रजिस्ट्रार प्रोफेसर फैजान मुस्तफा ने अपने पदेन पद पर सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दायर किया था। उन्होंने पीटीआई से कहा, "यह सामान्य रूप से अल्पसंख्यक अधिकारों और विशेष रूप से एएमयू के लिए एक व्यापक जीत है।"
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के सवाल को एक नई पीठ के पास भेज दिया। इस पीठ ने 1967 के फैसले को सीधे तौर पर खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किये गये फैसले में यह कहा गया था कि विश्वविद्यालय की स्थापना केंद्रीय कानून के आधार पर की गई थी, इसलिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अल्पसंख्यक संस्थान होने का दर्जा वापस ले लेना चाहिये। फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट की नई संवैधानिक पीठ में कुल 7 जज शामिल थें। इनमें से 4 जजों ने मामले के पक्ष में और 3 जजों ने अपना फैसला विपक्ष में सुनाया।
एएमयू के उर्दू अकादमी के पूर्व निदेशक और इतिहासकार डॉ राहत अबरार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने एएमयू समुदाय के दावों को मान्य साबित किया है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय फ्रटर्नटी का हमेशा यह माना है कि इस मामले का फैसला ऐतिहासिक साक्ष्यों और तत्थों के आधार पर किया जाना चाहिये। इसके तहत फैसला सुनाने से पूर्व, उन संगठनों और व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिये, जिन्होंने इस संस्थान के पीछे के विचार की कल्पना की थी और जिन्होंने संस्थान की स्थापना के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। बता दें कि डॉ राहत अबरार ने इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध कराने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, एएमयू शिक्षक संघ के सचिव मोहम्मद ओबैद सिद्दीकी ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह फैसला ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि जिन सिंद्धातों के आधार पर एएमयू संस्थान की स्थापना की गई थी, इस फैसले के माध्यम से उन सिद्धांतों को सही ठहराया गया है।