Lucknow University News: काल संस्कृत की कल धातु से बना है। काल बड़ा है, किन्तु काल से भी बड़े महाकाल है। उक्त बातें संदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान के पूर्व सचिव प्रो० ओम प्रकाश पांडेय ने कहीं। लखनऊ विश्वविद्यालय में "भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता के संदर्भ" में संगोष्ठी का आयोजन मंगलवार को किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता संदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान के पूर्व सचिव प्रो० ओम प्रकाश पांडेय ने काल की महत्ता का बखान करते हुए कहा कि महाभारत में राजा के सुशासन का कारण काल है। प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि काल की पहली अवधारणा वैदिक काल में मिलती है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के चाणक्य सभागार, व्यापार प्रशासन विभाग, एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (सेमिनार) का आयोजन 21 मार्च 2023, मंगलवार को किया गया। संगम बाजपेयी तथा निखिल शुक्ल ने दीप प्रज्वलन एवं मंगलाचरण के साथ इस कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ अभिमन्यु सिंह एवं डॉ सत्यकेतु ने संगोष्ठी में शामिल हुए एवं सभागार में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत उन्हें गीता ग्रंथ व भारतीय कैलेंडर प्रदान कर किया। विषय प्रवर्तन रखते हुए डॉ सत्यकेतु ने कहा कि ग्रैगरियन कलेण्डर को लगभग सभी मानते हैं, किंतु हिंदू धर्म के सारे त्योहार तिथि से ही मनाये जाते है।
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए, हृदय नारायण दीक्षित ने काल के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि काल पर जो चिंतन व गणना भारतीय परंपरा में हुआ है, वह अन्य परंपराओं में नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में काल के बारे में थोड़ा किंतु अथर्ववेद में व्यापक चिंतन किया गया है। कार्यक्रम में उन्होंने आगे कहा, काल के कारण ऋतुएँ, काल के कारण व्रत-त्यौहार होते हैं, काल के कारण पेड़ों में फल आते हैं, काल के कारण ही सब कुछ होता है। दीक्षित ने कहा कि ज्योतिष में ग्रहों की गणना यूँ ही नहीं की गई बल्कि इसका मूल आधार वेदों में मिलता है, ज्योतिष में विज्ञान है, धर्म है, दर्शन है, ज्ञान है, पर्यावरण आदि बहुत कुछ है।
काल ही नियंता व निर्णायक है, काल के रथ पर ज्ञानी ही बैठ सकते है। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में भारत के नायक श्रीराम ने नियतिवाद व कर्मवाद दोनों को महत्ता दी है। दीक्षित ने गीता के श्लोक 'परिप्रश्नेय सेवया:' का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान कोष में प्रश्नों की महत्ता है। उन्होंने कहा कि काल के तीन खंड है भूत, वर्तमान और भविष्य। भूत हमारी स्मृतियाँ है, वर्तमान हमारा चिंतन है और भविष्य हमारी योजनायें है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति आलोक राय ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, भारत एक उत्सव धर्मी देश है। भारत की उत्सव धर्मिता काल के अनादि प्रवाह में सतत गतिमान है।
धन्यवाद ज्ञापन प्रो० अरविंद अवस्थी, अधिष्ठाता कला संकाय, ल०वि०वि० दिया। उन्होंने काल के विषय में अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि भारतीय काल गणना में सबसे अधिक शुद्ध और प्रामाणिक है। हिंदू कलेण्डर में अधिकमास का उल्लेख आता है, किंतु अन्य सभ्यताओं में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है। उन्होंने पुरोषात्तम मास की प्रशंसा करते हुए तुलसीदास जी की चौपाई का उल्लेख किया ' नवमी तिथि मधुमास नवनीता'। मंच का संचालन डॉ अशोक शतपथी ने किया। इस अवसर अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहें। एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार चार सत्रों में संपन्न हुआ, जिसमें प्रो० सर्व नारायण झा, डॉ. प्रवेश व्यास, डॉ अनिल पोरवाल, डॉ बिपिन पांडेय, डॉ विष्णु कांत शुक्ल, प्रो० प्रयाग नारायण मिश्र, प्रो० भारत भूषण त्रिपाठी, डॉ संत प्रकाश तिवारी, डॉ गौरव सिंह, डॉ ब्रजेश सोनकर, तृतीय सत्र के मुख्य अतिथि - डॉ ब्रजेश सोनकर, प्रो० लोकमान्य मिश्र, प्रो० अनीता सोनकर, डॉ कुलदीपक शुक्ल, डॉ भुवनेश्वरी भारद्वाज, डॉ अनुज शुक्ला, प्रो० रामसुमेर यादव, आदि विभिन्न देश विदेश में विख्यात गणमान्य विद्वान उपस्थित रहें। लगभग 125 शोध छात्रों तथा 40 से अधिक शिक्षकों ने अपने विशिष्ट शोधपत्रों को प्रस्तुत किया।