प्रोबेशनरी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर को लेकर चल रहे विवाद के बीच पूर्व एलबीएसएनएए प्रमुख संजीव चोपड़ा ने बुधवार को कहा कि सिविल सेवा में शामिल होने के लिए फर्जी जाति और दिव्यांगता प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने वालों को न केवल बर्खास्त किया जाना चाहिये, बल्कि उन्हें दिए जाने वाले प्रशिक्षण खर्च और वेतन की वसूली भी की जानी चाहिये।
खेडकर द्वारा सत्ता और विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने का मामला सामने आने के बाद, सोशल मीडिया पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों द्वारा फर्जी प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने के दावों और प्रतिवादों की बाढ़ आ गई है। सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने कुछ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के नाम, तस्वीरें और अन्य विवरण साझा किए हैं। इसमें दावा किया गया है कि उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग (गैर-क्रीमी लेयर) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) से संबंधित लोगों के लिए उपलब्ध लाभों का दावा करने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया।
चोपड़ा ने पीटीआई से कहा, "यह व्यवस्था में एक गंभीर गड़बड़ी है। ऐसा करते हुए पाया गया कोई भी व्यक्ति न केवल एक योग्य उम्मीदवार को उसके अधिकार और योग्यता से वंचित करता है, बल्कि जानबूझकर आपराधिक साजिश में शामिल होता है। वे किशोर अपराधी नहीं हैं, जिन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए।" उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी और प्रशिक्षण लागत और अब तक दिए गए वेतन की वापसी के अलावा, "उन्हें बालिग अपराधी के तौर पर सजा पूरी करनी चाहिये" ताकि सभी संबंधित लोगों को एक स्पष्ट संकेत दिया जा सके।
कौन हैं पूर्व एलबीएसएनएए प्रमुख संजीव चोपड़ा?
पश्चिम बंगाल कैडर के 1985 बैच के आईएएस (सेवानिवृत्त)अधिकारी संजीव चोपड़ा एलबीएसएनएए के प्रमुख रह चुके हैं। उन्होंने कहा, "इस प्रक्रिया में उनकी मदद करने वाले लोगों की गहन जांच की जानी चाहिये और इस छल में शामिल सभी लोगों को कानून के प्रावधानों के अनुसार दंडित किया जाना चाहिये।" उन्होंने 1 जनवरी, 2019 और 31 मार्च, 2021 तक मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) के निदेशक के रूप में कार्य किया।
यह दावा करते हुए कि कुछ ईडब्ल्यूएस और ओबीसी श्रेणी के उम्मीदवार के सिविल सेवा परीक्षा में अच्छे रैंक आने के बावजूद उनका चयन नहीं हो सका। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने आरक्षण और विकलांगता कोटा की प्रामाणिकता की जांच के लिए अपनाई जा रही सत्यापन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं।
बता दें कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) आईएएस, भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और आईपीएस के अधिकारियों का चयन करने के लिए तीन चरणों- प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार- में प्रतिवर्ष सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करता है। चोपड़ा ने ओबीसी और विकलांगता कोटा प्रमाण पत्र जारी करते समय कड़ी जांच के अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल का भी सुझाव दिया।
चोपड़ा ने कहा, "इस पूरे मामले के तीन पहलू हैं। पुणे में प्रशिक्षण-सह-संलग्नक के दौरान उनके द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के मुद्दे को संबंधित राज्य सरकार द्वारा निपटाया जा रहा है। उन्हें वहां से स्थानांतरित कर दिया गया है। हालांकि स्थानांतरण कोई सजा नहीं है, लेकिन उनके कथित आचरण की जांच की जा रही है।" उन्होंने कहा कि एक अन्य पहलू फर्जी विकलांगता और ओबीसी (गैर-क्रीमी लेयर) प्रमाण पत्रों के इस्तेमाल से संबंधित है, जिसके लिए केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा जांच पैनल का गठन किया गया है और समिति इसकी जांच करेगी।
चोपड़ा ने कहा, "तीसरा और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि क्या सिस्टम में कोई लीकेज है या परीक्षण और भर्ती संगठन में काम करने वाले सरकारी अधिकारियों, मुख्य रूप से निचले स्तर के लोगों की इसमें संलिप्तता है। यह एक बड़ा मुद्दा है जिसकी सिस्टम की पवित्रता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए गहन जांच की जानी चाहिये।"
एलबीएसएनएए के बारे में
सिविल सेवकों के लिए एलबीएसएनएए देश की प्रमुख प्रशिक्षण अकादमी है। यहां सिविल सेवकों के चयन के बाद उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है। एलबीएसएनएए ने मंगलवार को इस मामले में कहा, "आगे की आवश्यक कार्रवाई" के लिए खेडकर के जिला प्रशिक्षण कार्यक्रम को रोककर उन्हें महाराष्ट्र से वापस बुला लिया। खेडकर महाराष्ट्र कैडर की 2023 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। उनका मामला तब सामने आया जब उन्होंने कथित तौर पर पुणे में अपनी पोस्टिंग के दौरान कुछ भत्ते और लाभ की मांग शुरू कर दी, जिसकी वह हकदार नहीं हैं।
उन पर सभी को धमकाने और अपने द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक निजी ऑडी (एक लग्जरी सेडान) कार के ऊपर लाल-नीली बत्ती (उच्च पदस्थ अधिकारी को इंगित करने वाली) लगाने का आरोप लगाया गया था, जिस पर 'महाराष्ट्र सरकार' भी लिखा था। पुणे के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा उनके खिलाफ शिकायत के बाद खेडकर को विदर्भ क्षेत्र के वाशिम जिला कलेक्ट्रेट में स्थानांतरित कर दिया गया था।
यूपीएससी रिकॉर्ड के अनुसार, उन्हें बहु विकलांग व्यक्ति के रूप में ओबीसी श्रेणी के तहत सिविल सेवा परीक्षा 2022 में 821वीं रैंक मिली। उन्हें उनकी रैंकिंग, जाति और विकलांगता श्रेणी के आधार पर आईएएस आवंटित किया गया था। इस बीच 11 जुलाई को गठित कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के अतिरिक्त सचिव मनोज कुमार द्विवेदी की एकल सदस्यीय जांच समिति को सेवा में अपनी उम्मीदवारी सुरक्षित करने के लिए खेडकर द्वारा विकलांगता और ओबीसी कोटा के दुरुपयोग पर दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 में सरकारी भर्ती/विभाग में कुल सीटों में से कम से कम चार प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। ओबीसी (गैर-क्रीमी लेयर) के अलावा बेंचमार्क विकलांगता (एकाधिक विकलांगता सहित) वाले उम्मीदवारों को आयु में छूट और यूपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में केवल उनके द्वारा भरी जाने वाली रिक्तियों को चिह्नित करने जैसे लाभ मिलते हैं। ओबीसी उम्मीदवार, जिनकी वार्षिक घरेलू आय आठ लाख रुपये से कम है, कुछ सरकारी नौकरियों की भर्ती में गैर-क्रीमी लेयर आरक्षण का लाभ लेने के पात्र हैं।