CA Success Story: "पापा मैं सीए बन गई" कह कर पापा के गले लग रो पड़ी सीए अमिता प्रजापति, 10 साल बाद मिली सफलता

CA Success Story in Hindi: "पापा मैं सीए बन गई" कह कर पापा के गले लगी सीए अमिता प्रजापति। पिता के गले लगते ही अमिता रो पड़ी। कहने लगी, "इसमें 10 साल लग गये। हर दिन आंखों में सपने लिए, मैं खुद से पूछती थी कि क्या यह सिर्फ एक सपना है या कभी हकीकत बनेगा। 11 जुलाई 2024, आज यह सच हो गया। हां, सपने सच होते हैं।" अमिता ने अपनी पोस्ट में उक्त बातें लिखीं। अमिता की ये पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है।

आर्थिक कठिनाइयों और सामाजिक तानों पर विजय पाकर सीए बनीं अमिता प्रजापति

ये सफलता की कहानी अनोखी तो नहीं लेकिन बेहद स्पेशल है। दिल्ली के एक चाय बेचने वाले की बेटी अमिता प्रजापति ने जब जुलाई के महीने में अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) परीक्षा पास की, तो उसके पिता की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। "पापा, मैं सीए बन गई" अमिता ने दिल छू लेने वाली एक लिंक्डइन पोस्ट में अपनी सीए बनने की यात्रा को याद करते हुए शानदार पोस्ट लिखी। इस पोस्ट के साथ उन्होंने अपने पिता को गले लगाते हुए एक भावुक वीडियो भी साझा किया।

..जब लोगों ने कहा औसत से कम है, इतना बड़ा कोर्स नहीं कर पायेगी

अपनी कहानी बताते हुए अमिता ने यह भी साझा किया कि कैसे लोगों ने उनके पिता को "इतना बड़ा कोर्स कराने" के लिए हतोत्साहित किया। यह मानते हुए कि अमिता अपने सपनों को कभी पूरा नहीं कर पायेगी और सफल नहीं होंगी। लोगों ने इसके पीछे तर्क दिया, क्योंकि वह "औसत से कम छात्रा" रहीं इसलिए उनके लिए सफलता की राह आसान नहीं होगी। अपने संघर्ष को याद करते हुए, अमिता ने कहा, "वे कहते थे कि तुम उसे चाय बेचकर इतना पढ़ा नहीं सकते, पैसे बचाओ और घर बनाओ। तुम कितने दिन सड़कों पर बड़ी हो रही बेटियों के साथ रहोगे।"

मेरा दिमाग पागल नहीं होता, तो आज मैं यहां नहीं पहुंचती

अमिता अपने परिवार के साथ झुग्गी में रहती हैं। वे कहती हैं कि अब उन्हें इस बात की शर्म नहीं है क्योंकि अब वह अपने पिता की इच्छाओं को पूरा कर सकती हैं। अपने पोस्ट में उन्होंने कहा, "कुछ लोग कहते थे, 'झुग्गीवाले, पागल दिमाग वाले' सही, बिल्कुल सही, अगर मेरा दिमाग पागल नहीं होता, तो आज मैं यहां नहीं पहुंचती। और अब, मैं अपने पिता के लिए घर बनाने के काबिल हूं। मैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी कर सकती हूं।"

उन्होंने अपनी पोस्ट का समापन अपने माता-पिता का आभार व्यक्त करते हुए किया और लिखा "आज मैं जो कुछ भी हूं, अपने पापा और मम्मी की वजह से हूं। जिन्होंने मुझ पर इतना विश्वास किया और कभी नहीं सोचा कि मैं एक दिन उन्हें छोड़ दूंगी बल्कि यह सोचा कि मैं अपनी बेटियों को शिक्षित करूंगी।"

आर्थिक कठिनाइयों और सामाजिक तानों पर विजय

अपनी यात्रा के दौरान अमिता ने कई बाधाओं का सामना किया। इसमें केवल वित्तीय कठिनाइयां ही नहीं थी बल्कि सामाजिक ताने भी शामिल थे। चाय बेचकर जीवनयापन करने वाले अमिता के पिता ने अपनी बेटी और परिवार पर पड़ने वाले नकारात्मक टिप्पणियों को नजर अंदाज किया। परिवार के रिश्तेदारों ने अमित की क्षमता पर संदेह करते हुए और परिवार के वित्तीय विकल्पों पर सवाल उठाते हुए की थीं। झुग्गी में रहने और औसत से कम छात्रा होने के बावजूद, अमिता ने अपने हालात को प्रेरणा के रूप में अपनाया और सफलता का परचम लहराया।

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