BDS, MDS Seat Vacant Across India: मेडिकल की शिक्षा का भारत में बहुत महत्व है, लेकिन कल के उभरते हुए कोर्स की स्थिति आज उतनी अच्छी नहीं है जितनी की सोची गई थी। कुछ कोर्स तो ऐसे हैं जिनमें सीट 10 से 55 प्रतिशत तक खाली रहती है क्योंकि कोर्स कर उम्मीदवार न उचित वेतन प्राप्त कर पा रहे हैं ना ही उनके पास अधिक मरीज है। मेडिकल में बीडीएस और एमडीएस की शिक्षा का आज यही स्थिति है।
भारत में बीडीएस और एमडीएस की शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में साल दर साल 10 से 55 प्रतिशत सीट खाली हो जाती है। बीडीएस और एमडीएस की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा इन कोर्स की सीटों में वृद्धि की गई है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शेयर किए आंकड़ों के अनुसार बात करें तो 2014 से लेकर 2023 तक बीडीएस में 14 प्रतिशत सीटों की वृद्धि हुई है, जबकि एमडीएस में 48 प्रतिशत सीटों की वृद्धि दर्ज की हुई है।
बीडीएस और एमडीएस में कितनी सीटें है खाली
एक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया - डीसीआई से इस संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार 2016-17 और 2022-23 के बीच 1,89,420 बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी यानी बीडीएस सीटों की पेशकश की गई थी, लेकिन इसमें से 36,585 सीटें खाली रही है। वहीं 2017-18 से 2022-23 के बीच मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी यानी एमडीएस में 38,489 सीटों की पेशकश की गई थी, जिसमें से 5,000 से अधिक सीटें खाली रही है।
2021-22 के दौरान कुल सीटों की संख्या
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2021-22 के दौरान भारत में बीडीएस के लिए कुल 27,868 सीटें और एमडीएस के लिए कुल 6,814 सीटें उपलब्ध थी। जिसमें कोर्स की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए सीटों में वृद्धि की गई है। सीटों के विस्तार का श्रेय डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया को दिया जाता है।
क्या है सीट खाली रहने का कारण
एक समय था जब दंत चिकित्सा भारत का उभरता हुआ पेशा था, लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ की इस विषय की शिक्षा प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों में कमी आई और संस्थानों में सीट खाली रहने लगी है।
इसी संदर्भ में बात करते हुए मैक्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली के वरिष्ठ सलाहकार डेंटल सर्जन अजय शर्मा के अनुसार सरकारी कॉलेजों में बुनियादी ढांचे और अत्याधुनिक तकनीकों की कमी और निजी डेंटल कॉलेज से संबंधित अस्पतालों में मरीजों की कमी भी इसका कारण है।
वर्तमान समय की स्थिति तो ऐसी है कि बीडीएस और एमडीएस की शिक्षा प्रदान करने वाले सरकारी संस्थानों से अधिकतर निजी संस्थान है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा हर साल जारी की जाने वाली राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) में बीडीएस के टॉप संस्थानों की लिस्ट जारी की जाती है, ताकि संबंधित कोर्स करने वाले छात्रों को टॉप के संस्थानों के बारे में जानकारी दी जा सके, लेकिन NIRF 2023 के टॉप 5 कॉलेज में केवल एक सरकारी कॉलेज है और उसका नाम है मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली बाकि 4 कॉलेज प्राइवेट है।
इन प्राइवेट कॉलेज में 5 वर्ष के बीडीएस कॉलेज की फीस 15 लाख या उससे अधिक यानी सालाना 3 लाख रुपये के आसा-पास की होती है। ऐसी स्थिति में जब उम्मीदवार वास्तविक रूप से अनुभव प्राप्त करने के लिए किसी वरिष्ठ डॉक्टर के अधीन काम करता है तो उन्हें कम से कम वेतन 1,000 रुपये प्रतिमाह का प्राप्त होता है। वहीं दूसरी तरह एमबीबीएस और आयुर्वेद ग्रेजुएट को प्रतिमाह 20,000 रुपये से अधिक कमाने का अवसर प्राप्त होता है। (दंत चिकित्सक से सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवर दिव्येश बी. मुंद्रा द्वारा प्रदान जानकारी के अनुसार)
प्रतिमाह वेतन की जानकारी देने के बाद दिव्येश बी. मुंद्रा ने आगे बताया कि देश में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के वेत में बहुत अंतर है। उन्हें उदाहरण के तौर पर बताया कि एम्स में डेंटल केयर के लिए प्रतिवर्ष वेतन 10.8 लाख से 13 लाख रुपये तक का है, लेकिन नौकरी के अवसर कम है।
बीडीएस कार्यक्रम में प्रवेश के लिए अंकों में किया संशोधन
नीट यूजी की परीक्षा का आयोजन हर साल किया जाता है। इस परीक्षा के माध्यम से उम्मीदवार देश के सरकारी और निजी संस्थानों में एमबीबीएस, बीडीएस और आयुष कोर्स में प्रवेश प्राप्त करते हैं। वर्ष 2019 में डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया ने नीट यूजी के अंकों को कम करने की सिफारिश की थी। उसके अगले वर्ष सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीडीएस कार्यक्रम में प्रवेश के लिए नीट यूजी कट-ऑफ में 10 प्रतिशत अंकों को संशोधित करने के आदेश दिए गए थे। इस आदेश के बात मेडिकल काउंसलिंग कमेटी द्वारा शेयर आंकड़ों से पता लगता है कि उस साल संशोधित नीट यूजी कट ऑफ के पर 9,09,776 उम्मीदवारों ने बीडीएस कार्यक्रम में प्रवेश प्राप्त किया।
क्या कहा डेंटल शिक्षा पर मंत्रालय ने
इस स्थिति को देखते हुए डेंटल शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए कई उपाय किए है। डेंटल शिक्षा को लेकर मंत्रालय ने कहा कि "वैश्विक समानता के लिए दंत चिकित्सा शिक्षा के लिए एक मानकीकृत गतिशील पाठ्यक्रम चल रहा है और महत्वपूर्ण विषयों पर व्याख्यान और प्रदर्शन प्रदान करने के लिए डीसीआई द्वारा ऑनलाइन कार्यक्रमों और वेबिनार का प्रावधान है।"