Explainer: रॉयल भारतीय नौसेना विद्रोह; स्वतंत्रता संग्राम की शौर्य पूर्ण घटनाओं में से एक

Royal Indian Navy Mutiny UPSC Notes: अस्थिर राजनीतिक परिवेश में आजादी के करीब एक वर्ष बाद ही पाकिस्तान को अलग देश बनाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी। थल सेना और वायु सेना के सैनिकों के हड़ताल के बीच रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह प्रारंभ हुआ। आज के लेख में हम इस पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे।

Explainer: रॉयल भारतीय नौसेना विद्रोह; स्वतंत्रता संग्राम की शौर्य पूर्ण घटनाओं में से एक

यदि आप भी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने की योजना बना रहे हैं तो आधुनिक इतिहास के विषय पर अच्छी तैयारी के लिए इस लेख को अवश्य पढ़ें। इस पर विस्तार से चर्चा करने से पहले आइए बीते दिनों प्रतियोगी परीक्षा में पूछे गए प्रश्न पर एक नजर डालते हैं।

2015 - "रॉयल भारतीय नौसेना के विद्रोह की घटना को अंततः भारतीय स्वतन्त्रता दिवस की तरह ही ब्रिटिश शासन की समाप्ति के रूप में चिन्हित किया गया।" व्याख्या कीजिए।

1946 में भारत की राजनीतिक स्थिति अशांत थी। पृथक पाकिस्तान की मांग ज़ोरों पर थी। देश में जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। विभिन्न मिलों में श्रमिकों के आन्दोलन और हड़ताल हो रहे थे। अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुज़र रही थी। आजाद हिन्द फ़ौज के अधिकारियों पर मुक़दमे चलने से सेना में अशांति थी। जबलपुर में सैनिकों ने और बंबई में वायु सेना के सैनिकों ने हड़ताल की थी। दिल्ली और बिहार में पुलिस ने भी हड़ताल की थी। इन सबसे अधिक प्रभावशाली विद्रोह हुआ रॉयल इन्डियन नेवी में। यह हमारे स्वाधीनता संग्राम की शौर्य पूर्ण घटनाओं में से एक है।

नौ-सैनिकों का विद्रोह

शाही नौसेना में देश के सभी भागों क जवानों की भर्ती की गई थी। हालांकि यहाँ पर नस्लीय भेदभाव बरते जा रहे थे। विदेशों में सेवा करने के कारण नौसैनिकों का विश्व के घटना चक्र से संपर्क हुआ। आज़ाद हिन्द फ़ौज के मुक़दमों से भारत में जन आक्रोश बढ़ता जा रहा था। 18 से 23 फरवरी, 1946 तक बंबई में नौसेना विद्रोह हुआ। 18 फरवरी को सिगनल्स प्रशिक्षण प्रतिष्ठान 'एच.एम.आइ.एस. तलवार' में ख़राब खाना और नस्लीय अपमानों और अंग्रेजों के भेदभावपूर्ण नीति के विरुद्ध 1100 नाविकों ने भूख हड़ताल कर दी। इस हड़ताल को एक "स्लो डाउन' हड़ताल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ था कि नाविक अपने काम धीमी गति से करेंगे।

भारतीय सैनिकों से साथ भेदभाव

भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों की अपेक्षा कम सुविधा मिलती थी। उनके भोजन और वस्त्रों का स्तर बहुत घटिया होता था। उन्हें बात-बेबात अपमानित किया जाता था। इससे उनमें व्यापक असंतोष था। आजाद हिंद फ़ौज के अधिकारियों पर चलाए जाने वाले मुक़दमें से भी वे नाराज थे। 'एच.एम.आइ.एस. तलवार' के कमांडर, एफ.एम. किंग ने नौसैनिक नाविकों को गाली देते हुए संबोधित किया, जिसने इस स्थिति को और भी आक्रामक रूप दे दिया। 'तलवार' से शुरू हुई बगावत अगले दिन 22 और जहाजों में फैल गई। विद्रोही बेड़े के मस्तूलों पर तिरंगे, चाँद और हंसिया-हथौड़े के निशान वाले झंडे लहराने लगे। एक केन्द्रीय हड़ताल समिति का गठन किया गया जिसका नेतृत्व एम.एस. ख़ान कर रहे थे। उनकी मांग थी बेहतर खाना और गोरे और भारतीय नाविकों के लिए समान वेतन। साथ ही आज़ाद हिंद फ़ौज और अन्य राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई।

अंग्रेज शासन से उठी स्वतंत्रता की व्यापक मांग

इस आंदोलन को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की व्यापक मांग में परिवर्तित होने में ज़्यादा वक्त नहीं लगा और देखते ही देखते इसने व्यापक रूप धारण कर लिया। जल्द ही प्रदर्शनकारी नाविक भारतीय राष्ट्रीय सेना के सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई, कमांडर किंग द्वारा दुर्व्यवहार और अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई, रॉयल इन्डियन नेवी के कर्मचारियों के वेतन एवं भत्ते को उनके समकक्ष अंग्रेज़ कर्मचारियों के बराबर रखने, इंडोनेशिया में तैनात भारतीय बलों की रिहाई, और अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों के साथ बेहतर व्यवहार करने जैसे मुद्दों की मांग करने लगे। इस हड़ताल को उस समय झटका लगा जब एक नाविक बी.सी. दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने एच.एम.आई.एस. तलवार पर 'भारत छोड़ो' का नारा दिया था। विद्रोहियों की मांगों में यह मांग भी शामिल हो गयी कि नाविक बी.सी. दत्त को, जिन्हें जहाज की दीवारों पर 'भारत छोडो' लिखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था, रिहा किया जाए।

नौसेना विद्रोह और राष्ट्रवाद

रॉयल इन्डियन नेवी में हड़ताल ऐसे समय में हुई जब देश भर में भारतीय राष्ट्रवादी भावना अपने चरम पर थी। नवंबर 1945 में कलकत्ता में आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारियों के मामले की सुनवाई शुरू हो गयी थी। इससे लोगों में असंतोष था। फरवरी 1946 में कलकत्ता में ही आईएनए अधिकारी राशिद अली को सज़ा दी गयी इससे भी जनाक्रोश अपने चरम पर पहुंचा। ठीक इसी समय बंबई में नौसैनिक विद्रोह हुआ। 19 फरवरी को कैसेल और फोर्ट बैरक भी इस हड़ताल में शामिल हो गए। 20 फरवरी को इन्हें जहाजों पर लौट आने का आदेश मिला। इन्होंने आदेश का पालन किया। वहां सेना के गार्डों ने उन्हें घेर लिया। घेरा तोड़ने के प्रयासों में लड़ाई छिड़ गई। लड़ाई के लिए गोला-बारूद जहाज से मिल रहा था।

नौसेना को नष्ठ करने की धमकी

एडमिरल गौड़फ्रे ने विमान भेजकर नौसेना को नष्ट कर देने की धमकी दी। उसी दिन गेट वे ऑफ इंडिया के पास लोगों की भीड़ नाविकों के लिए खाना लेकर आई थी। अंग्रेज़ों द्वारा विद्रोहियों से भाईचारा दर्शानेवाली भीड़ को गोलियों से भून दिया गया। 22 फरवरी तक हड़ताल देश-भर के नौसैनिक केन्द्रों में फैल गई। 78 जहाज, 20 तटीय प्रतिष्ठान और 20,000 नाविक इसमें शामिल हो गए। कराची, मद्रास, कलकत्ता, मंडपम, विशाखापत्तनम और अंडमान द्वीप समूह में स्थापित बंदरगाहों का एक बड़ा वर्ग इस हड़ताल के प्रभाव में आ गया। हड़ताल शुरू होने के अगले दिन से ही नाविकों ने बंबई के आसपास के क्षेत्रों में गाड़ियों में बैठकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, उन्होंने कांग्रेस का झंडा लहराते हुए प्रदर्शन किया। जल्द ही आम जन भी इन नाविकों के साथ शामिल हो गए।

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अनगिनत बैठकें, जुलूस और हड़ताल

बंबई और कलकत्ता दोनों शहरों में सारा कामकाज ठप्प पड़ गया। इन शहरों में अनगिनत बैठकें, जुलूस और हड़ताल हुई। बंबई में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और बॉम्बे स्टूडेंट्स यूनियन के आवाहन पर मज़दूरों ने आम हड़ताल में भाग लिया। इस हड़ताल का अरुणा आसफ अली और अच्यूत पटवर्धन जैसे कांग्रेस समाजवादियों ने समर्थन किया। इसके विपरीत सरदार पटेल ने लोगों को सलाह दी कि वे सामान्य रूप से अपना काम करते रहें। देश भर के कई शहरों में छात्रों ने एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए कक्षाओं का बहिष्कार किया। कांग्रेस और लीग के विरोध के बावज़ूद 22 फरवरी को 3,00,000 लोगों ने बंबई में अपने औज़ारों को हाथ नहीं लगाया। यूरोपियनों पर हमले हुए। थानों, डाकघरों, बैंकों, दुकानों और कई संगठनों पर आगजनी की घटनाएं हुईं। 30 दुकानों, 10 डाकघरों, 10 पुलिस चौकियों, 64 अनाज की दुकानों और 200 बिजली के खम्भों को बरबाद कर दिया गया।

सरदार पटेल ने बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से लिया काम

शहर का सामान्य कामकाज अस्त-व्यस्त हो गया। सारा शहर ठहर-सा गया था। दो दिनों तक यह स्थिति बनी रही। उसके बाद सरकार का कहर टूटा। कराची में नाविकों से जबरदस्ती आत्मसमर्पण कराया गया। इस अभियान में छह नाविकों की ह्त्या हुई। ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने हाउस ऑफ कॉमंस में घोषणा की कि शाही बेड़े के जहाज बंबई की ओर जा रहे हैं। बंबई में कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिए दो सैनिक टुकड़ी बुलाई गई। सेना के विद्रोही जहाज़ों को चारों ओर से घेर लिया गया। उनके ऊपर से बम वर्षक विमान उडाए गए। गोलियां चलीं। 228 नागरिक मारे गए। हज़ारों घायल हुए।

सरदार पटेल ने बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से काम लेकर परिस्थिति को बिगड़ने से बचाया। उन्होंने नाविकों को सलाह दी कि वे आत्मसमर्पण कर दें। पटेल यह जानते थे कि दमन करने में ब्रिटिश शासन किस हद तक सक्षम है। उन्होंने विद्रोहियों को वचन दिया कि इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि उन्हें परेशान न किया जाए। उनकी उचित मांगे जल्द स्वीकार कर ली जाएंगी। इस तरह से उन्होंने 23 फरवरी को नाविकों को समर्पण के लिए तैयार कर लिया।

नौसैनिक विद्रोह और कांग्रेस का रुख

नौसैनिक विद्रोहियों को न तो कांग्रेस और न ही मुस्लिम लीग का समर्थन मिला। गांधीजी ने इसे 'बुरा और अशोभनीय' कहा और नाविकों की निंदा करते हुए कहा कि उन्हें यदि कोई शिकायत है तो वे चुपचाप अपनी नौकरी छोड़ दें। पटेल का मानना था कि 'सेना के अनुशासन को छोड़ा नहीं जा सकता ... स्वतंत्र भारत में भी हमें इसकी ज़रूरत होगी।' नेहरू ने कहा था, "हिंसा के उच्छ्रुंखल उद्रेक को रोकने की आवश्यकता है।"

नौसैनिक विद्रोह का महत्त्व

नौसैनिकों का विद्रोह भारत के राष्ट्रवाद की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण घटना रहा। पहली बार सेना के जवानों और आम आदमी का खून सडकों पर एक साथ एक लक्ष्य के लिए बहा। इस बगावत से आजादी के राजनीतिक आंदोलन के समानांतर एक अलग माहौल पैदा किया। इस माहौल ने अंग्रेजों में इतना भय उत्पन्न कर दिया कि उन्होंने भारत को छोड़ने का फैसला जल्दी ले लिया। इस बग़ावत ने अंग्रेजों को यह एहसास करा दिया कि यदि और अधिक समय तक वे भारत में टिके रहे तो वापस ब्रिटेन भागने का रास्ता भी बंद हो जाएगा। यह एक ऐसी घटना थी जिसने ब्रिटिश शासन के अंत को देखने के भारतीय लोगों के दृढ़ संकल्प को मज़बूती प्रदान की।

रॉयल भारतीय नौसेना के विद्रोह और ब्रिटिश शासन का अंत

नाविक विद्रोह के समय सांप्रदायिक एकता दिखाई पड़ी। हालांकि की यह अल्प समय के लिए ही थी। इस विद्रोह के द्वारा जनता ने अपने लड़ाकूपन की समर्थ अभिव्यक्ति प्रदर्शित की। जनता ने साबित किया कि वह निर्भीक है। लोग पुलिस द्वारा गोली चलाने से बचने के लिए पीछे हट जाते लेकिन फिर अपनी जगह पर आकर डट जाते। इस विद्रोह की घटनाओं ने लोगों को भयमुक्त कर दिया। बिपिनचंद्र कहते हैं, "रॉयल भारतीय नौसेना के विद्रोह की घटना ऐसी घटना है जो ब्रिटिश शासन के अंत में लगभग वैसा ही प्रतीक है, जैसे भारतीय स्वतन्त्रता दिवस।"

Explainer: रॉयल भारतीय नौसेना विद्रोह; स्वतंत्रता संग्राम की शौर्य पूर्ण घटनाओं में से एक

ब्रिटिश शासन को विद्रोह की गंभीरता का अच्छी तरह से पता था और उसका दमन करने की अपनी क्षमता के बारे में भी वे आश्वस्त थे। बिपिन चन्द्र के अनुसार, "इस संघर्ष को साम्राज्यवाद विरोधी संघर्षों की अंतिम लहर के रूप में न देखकर स्वातंत्र्योत्तर वर्गसंघर्ष की पहले कड़ी के रूप में देखना चाहिए। इसके द्वारा न तो ब्रिटिश राज के औचित्य को चुनौती दी गयी और न ही उसकी ताक़त को।" अपनी मुखरता के कारण इस विद्रोह ने न केवल जनता की साम्राज्यवाद विरोधी चेतना को प्रखर किया, बल्कि एक तरह से पूरे देश को ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ा कर दिया था। एक हद तक हम यह मान सकते हैं कि कांग्रेस द्वारा पैदा की गयी उग्र साम्राज्यवाद विरोधी भावना ही फरवरी 1946 में इस विद्रोह में प्रकट हुई।

इस तरह यह विद्रोह उन पूर्ववर्ती राष्ट्रवादी गतिविधियों का ही विस्तार था, जिससे कांग्रेस जुडी हुई थी। इस विद्रोह का आह्वान कांग्रेस ने नहीं किया था, किसी और पार्टी ने भी नहीं। नाविकों के प्रति लोगों की सहानुभूति और सरकारी दमन के प्रति उनका गुस्सा स्वत: स्फूर्त था। कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से इस संघर्ष का समर्थन नहीं किया। उसका मानना था कि प्रतिवाद का यह रूप और उसका समय, दोनों गलत था। उसका मानना था कि लोगों की तैयारी इतनी नहीं है कि वे ब्रिटिश शासन को हिंसक उपायों से उखाड़ फेंके। कांग्रेस ने रॉयल इन्डियन नेवी के नाविकों को सलाह दी की वे मुठभेड़ का रास्ता छोड़ दें और कांग्रेस में निष्ठा रखते हुए उसका हाथ मज़बूत करें। कांग्रेस के इस निर्णय को कई लोगों ने पसंद नहीं किया और इसके गलत अर्थ भी लगाए।

नोट: हमें आशा है कि परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को इतिहास के विषय पर लिखे इस लेख से काफी सहायता मिलेगी। करियरइंडिया के विशेषज्ञ द्वारा आधुनिक इतिहास के विषय पर लिखे गए अन्य लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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English summary
Royal Indian Navy Mutiny UPSC Notes: In the unstable political environment, almost a year after independence, the demand for making Pakistan a separate country started gaining momentum. The Royal Indian Navy mutiny began amid a strike by soldiers of the Army and Air Force. In today's article, we will discuss it in detail.
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