Explainer: इल्बर्ट बिल क्या है? यूरोपियन ने क्यों किया इल्बर्ट बिल का विरोध

Ilbert Bill 1883 For UPSC History Notes: भारत के प्रत्येक प्रांत में उच्च न्यायालय स्थापित कर दिए गए थे। भारत में नस्लीय भेदभाव को कम करने के लिए 1883 में इल्बर्ट बिल प्रस्तावित किया गया। हालांकि यूरोपीयन ने इसका पूरजोर विरोध किया। इस बिल के माध्यम से नस्ल भेद के आधार पर न्यायिक अयोग्यता को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा था। आज हम इल्बर्ट बिल विवाद को विस्तार से समझेंगे।

Explainer: इल्बर्ट बिल क्या है? यूरोपियन ने क्यों किया इल्बर्ट बिल का विरोध

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा एवं अन्य राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में इतिहास के विषय पर पूछे गए प्रश्नों की तैयारी के लिए आप इस लेख से सहायता ले सकते हैं। यहां बेहद सरल ढंग से इल्बर्ट बिल विवाद की व्याख्या की जा रही है। आइए जाने क्या है इल्बर्ट बिल विवाद, क्यों इल्बर्ट बिल को लेकर विरोध शुरू हुआ और यूरोपियन संघों ने इसका विरोध क्यों किया-

भारतीयों में राष्ट्रीय भावना के प्रसार और विकास के लिए बहुत कुछ श्रेय लॉर्ड लिटन और लॉर्ड रिपन की नीतियों को दिया जा सकता है। लिटन ने भारत में अबाध व्यापार की नीति अपनाई। उसने कपास सीमा शुल्क को समाप्त किया। उसके ही कार्यकाल के दौरान सिविल सर्विस में प्रवेश की आयु कम किया गया। अकाल और महामारी के भीषण कष्ट से जूझते देश में भारतीयों के कष्ट को दूर करने की जगह दिल्ली में उसने भव्य दरबार का आयोजन कर महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी (कैसर-ए-हिन्द) घोषित किया। उसी के शासन काल के दौरान भारतीय समाचारपत्र अधिनियम और आर्म्स एक्ट लागू किया गया।

भारतीयों को सरकारी सेवा में मिला प्रवेश

अफगानिस्तान के साथ बेमतलब का युद्ध लड़ा गया जिससे भारत के जन-धन का अपव्यय हुआ। इन सब क़दमों से भारतीय लोगों में अपार क्षोभ का सृजन हुआ। उसके बाद 1880 में रिपन आया। रिपन उदारवादी था। उसने भारतीय लोगों की भावनाओं को अपने पक्ष में करने के लिए सुधार के कुछ क़दम उठाए। 1882 में उसने रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में शिक्षा प्राप्त भारतीयों को ही सरकारी सेवा में लेने की व्यवस्था की।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्याय़ाधीशों को समान वेतन देना निश्चित किया तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गार्थ के अवकाश पर जाने पर रमेशचंद्र मित्तर को मुख्य न्यायाधीश बना दिया। तभी इल्बर्ट बिल विवाद आया। इस बिल द्वारा रिपन की सरकार ने नस्ल भेद के आधार पर न्यायिक अयोग्यता को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा था। वह भारतीय सदस्यों को वही शक्तियाँ और अधिकार देना चाहता था जो उसके यूरोपीय सहयोगियों को प्राप्त थे। लेकिन यूरोपीय समुदाय के कड़े विरोध के कारण, रिपन को विधेयक में संशोधन करना पड़ा। इल्बर्ट बिल से उठे विवाद ने भारतीयोँ और अँग्रेजों के बीच की दूरी को और ज्यादा बढ़ा दिया।

इल्बर्ट बिल क्या है?

उस समय की न्यायिक व्यवस्था भी प्रजातीय विभेद की नीति से ग्रसित थी। यूरोपियनों के मुक़दमें सिर्फ उच्च न्यायालयों में ही पेश किए जा सकते थे, सत्र न्यायालयों में नहीं। अंग्रेज़ अपराधियों के मामलों पर भारतीय मूल के न्यायाधीशों द्वारा अदालत में सुनवाई नहीं की जा सकती थी। इसी समय कलकत्ता के प्रेसिडेंसी मैजिस्ट्रेट बिहारीलाल सेशंस जज बन गए। लेकिन उन्हें यूरोपियनों के मुक़दमें सुनने का अधिकार नहीं रहा। यह एक विरोधात्मक स्थिति थी। रिपन इस भेदभाव को उचित नहीं समझता था। उसने महसूस किया कि इस प्रावधान को बदलने की आवश्यकता है। इसमें निहित विरोधाभास को दूर करने और भारतीयों और यूरोपियनों को न्यायालय के समक्ष सामान स्तर पर लाने के लिए विधि-सदस्य सर कोर्टेन पेर्गिन इल्बर्ट ने फरवरी 1883 में एक विधेयक प्रस्तुत किया जिसे इल्बर्ट बिल कहा जाता है। इसके अनुसार भारतीय मजिस्ट्रेटों को यह अधिकार देने की व्यवस्था की गयी कि वे आपराधिक मामलों में भारत में रहने वाले यूरोपियनों के मुक़दमें की सुनवाई कर सकें।

क्यों हुआ इल्बर्ट बिल का विरोध?

विधेयक में कहा गया था कि अब से, ब्रिटिश और यूरोपीय विषयों पर आपराधिक मामलों में भारतीय न्यायाधीशों के सत्र अदालतों में मुकदमा चलाया जाएगा, जो इस तरह की कार्यवाही की अध्यक्षता करने के लिए पर्याप्त वरिष्ठ थे। यह वह प्रावधान था जो यूरोपीय समुदाय के बीच बड़े गुस्से का स्रोत बना। इस बात की संभावना मात्र कि एक यूरोपीय को एक भारतीय द्वारा ट्रायल किया जा सकता है, जिसे यूरोपीय हीन मानते थे, बहुत क्रोध और आक्रोश का विषय बना। भारत में रहने वाले अंग्रेज़ों ने इसका उग्र प्रतिवाद किया। यूरोपीय लोगों ने इस आधार पर बिल का विरोध किया कि न्यायालय का कोई भी भारतीय सदस्य यूरोपीय अपराधियों के मामलों की सुनवाई करने के लिये उपयुक्त नहीं है। उनके विरोध ने विद्रोह का स्वरुप ले लिया।

सफेद विद्रोह

इल्बर्ट बिल के दौरान जो विरोध किया गया,उसे सफेद विद्रोह कहा जाता है। अपने विशेषाधिकार पर हुए आघात से अंग्रेज़ बौखला गए। इल्बर्ट और रिपन को तो अंग्रेज़ देखना नहीं चाहते थे। अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अंग्रेजों ने 'यूरोपियन डिफेन्स एसोसिएशन' बनाया। लन्दन और कलकत्ता में इस बिल के विरोध में भारी प्रदर्शन हुआ। भला गोरे अंग्रेज़ अपराधियों की सुनवाई काले भारतीय जजों द्वारा हो, यह वे कैसे सह सकते थे! उन्हें यह भय सता रहा था कि इस कानून का सहारा लेकर काले भारतीय श्वेत लोगों को अपमानित और दण्डित करेंगे।

कुछ गोरे तो यह तक कहते हुए पाए गए कि, "यह अधिक अच्छा है कि भारत में अंग्रेज़ी राज्य ही समाप्त हो जाए, लेकिन यह ठीक नहीं कि हम इस प्रकार से तिरस्कृत कानूनों के अधीन रहें।" रिपन का उसके ही देशवासियों ने हर प्रकार से बहिष्कार किया। रिपन को अंग्रेजों ने खूब खरी-खोटी सुनाई। उस पर चारों तरफ से दबाव पड़ने लगा। रिपन को इंग्लैण्ड वापस बुलाने की मांग जोर पकड़ने लगी।

Explainer: इल्बर्ट बिल क्या है? यूरोपियन ने क्यों किया इल्बर्ट बिल का विरोध

बिल में संशोधन

चारों तरफ से हो रहे हमले और प्रबल विद्रोह ने रिपन को झुकने पर मज़बूर किया। जनवरी 1884 में बिल में संशोधन किया गया। यह व्यवस्था की गयी कि भारत में यूरोपियन अपराधियों के मुक़दमें की सुनवाई सिर्फ सेशन जज या जिला मजिस्ट्रेट ही कर सकेंगे। अन्य अदालतों में भारतीय न्यायाधीश उनके मुक़दमें की सुनवाई नहीं कर सकते। अँगरेज़ अपराधियों को यह अधिकार भी दिया गया कि अपने मुक़दमें की सुनवाई के दौरान वे ऐसी 12 सदस्यीय जूरी की मांग कर सकते हैं, जिसमें कम से कम 7 यूरोपियन हों।

अंग्रेज़ों के अहंकार और विशेषाधिकारों की रक्षा

इल्बर्ट बिल का विवाद उस समय प्रचलित गहरे नस्लीय पूर्वाग्रहों में निहित था। यह उस समय का एक बड़ा विवाद था, जिसके प्रभाव का भारत के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। हालांकि इस बिल का उद्देश्य न्यायपालिका में भारतीय और यूरोपीय सदस्यों के बीच के अंतर को ख़त्म करना था, लेकिन बिल के सन्दर्भ में उपजे विवाद से राष्ट्रवादियों के लिए यह स्पष्ट हो गया कि जहाँ यूरोपीय समुदाय के हित शामिल हैं, वहाँ अंग्रेजों से न्याय और निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती।

इल्बर्ट बिल में संशोधन कर अंग्रेज़ों के अहंकार और विशेषाधिकारों की रक्षा तो कर दी गयी, लेकिन भारतीय लोगों के ऊपर इसका बहुत ही गहरा असर हुआ। भारतीयों ने अब समझ लिया कि ब्रिटिश सरकार से समानता की उम्मीद करना व्यर्थ है। इल्बर्ट बिल को रद्द करने के लिए यूरोपीय लोगों द्वारा संगठित आंदोलन ने राष्ट्रवादियों को यह भी सिखाया कि अपने अधिकारों और मांगों के लिए कैसे आंदोलन किया जाए। उन्हें लगा कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें संगठित होकर संघर्ष करना पड़ेगा। तब एक ऐसे राजनीतिक संगठन की ज़रुरत महसूस की जाने लगी जो राष्ट्रीय स्तर पर सभी वर्गों को एक साथ ला सके। जो सभी वर्गों के राजनीतिक अधिकारों और सुधारों के लिए प्रयास करे। इसके बाद बड़ी तेज़ी से इस दिशा में प्रयास शुरू हुए और जल्द ही अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ।

नोट: हमें आशा है कि परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को इतिहास के विषय पर लिखे इस लेख से काफी सहायता मिलेगी। करियरइंडिया के विशेषज्ञ द्वारा आधुनिक इतिहास के विषय पर लिखे गए अन्य लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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English summary
High courts were established in every province of India. Ilbert Bill was proposed in 1883 to reduce racial discrimination in India. However, the European strongly opposed it. Through this bill, it was proposed to end judicial disqualification on the basis of race discrimination. Today we will understand the Ilbert Bill controversy in detail.You can take help from this article for the preparation of questions asked on the subject of History in the Civil Services Examination and other state level competitive examinations conducted by the Union Public Service Commission. Here the Ilbert Bill controversy is being explained in a very simple way. Let us know what is the Ilbert Bill controversy, why the protest against the Ilbert Bill started and why European Unions opposed it-
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