भाग 1 में हमने आपको बताया था कि किस प्रकार पूर्ण स्वराज के लिए और अंग्रेजी सरकार के नमक कर के खिलाफ महात्मा गाँधी ने नमक सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। देश में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भारतीय इतिहास विषय पर पूछे गए सवालों की तैयारी के लिए यहां करियर इंडिया के विशेषज्ञ सेवानिवृत्त आईओएफएस मनोज कुमार द्वारा दांडी यात्रा का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रतियोगी परीक्षा में उपस्थित होने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवार अपनी तैयारी के लिए यहां से सहायता ले सकते हैं।
दांडी यात्रा की शुरुआत
नमक सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। सत्याग्रह शुरू करने से पहले गाँधीजी ने लोगों को यह भी समझाया कि सत्याग्रह का जो तरीका अपनाया सकता था, वह था उपवास, अहिंसा, धरना, असहयोग, सविनय अवज्ञा और क़ानूनी दण्ड। गाँधीजी ने ऐलान कर दिया 12 मार्च को प्रातः काल नमक सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हो जाएगा। सरदार वल्लभ भाई पटेल सत्याग्रहियों और गाँधीजी को सहयोग करने के लिए गांव वालों को तैयार करने बोरसद गए हुए थे। वहां उन्होंने जोशीला भाषण दिया जिसके कारण उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। नमक सत्याग्रह की यह पहली आहुति थी। इसे गांधीजी ने लड़ाई का शुभ-शकुन माना। दूसरे दिन 75,000 लोगों की भीड़ ने साबरमती में एक जनसभा की और गाँधीजी की उपस्थिति में एक प्रस्ताव पारित किया कि हम उसी पथ पर चलेंगे जिस पर सरदार वल्लभभाई चले। तबतक शांत नहीं बैठेंगे जबतक देश को आज़ाद नहीं कर लेते। ... और न ही सरकार को शांत रहने देंगे।
गांधीजी ने कहा, "यदि भारत के लाखों गांवों के प्रत्येक गांव से दस आदमी आगे आएं और नमक क़ानून का उल्लंघन करें, तो आपके विचार से सरकार क्या कर सकती है? बहुत ही क्रूर और निरंकुश तानाशाह भी शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध करने वालों के समूहों को तोप के मुंह पर नहीं रख सकता। हम बहुत ही थोड़े समय में इस सरकार को थका देंगे। हमारे उद्देश्य में न्याय का बल है, हमारे साधन पवित्र हैं। सत्य पर अटल रहे तो सत्याग्रहियों की कभी हार नहीं हो सकती।"
'वैष्णवजन' की धुन के साथ शुरू हुई यात्रा
12 मार्च को सावरमती आश्रम से पंडित खरे द्वारा गाए गए 'वैष्णवजन' की धुन के साथ कूच आरंभ हो गया। दांडी साबरमती से 358 किलोमीटर दूर था। 61 वर्ष की उम्र में भी पूरे जोश के साथ हाथ में लाठी लेकर गांधीजी ने अपने आश्रम के 78 सदस्यों के साथ सवेरे साढे छह बजे साबरमती आश्रम से चलना शुरु कर दिया। उन्होंने अपने साथ जाने के लिए एक-एक कार्यकर्ता का इंटरव्यू ख़ुद लिया और चुना था। उस यात्रा के सबसे छोटे सदस्य थे 16 साल के विट्ठल लीलाधर ठक्कर और सबसे वरिष्ठ सदस्य थे ख़ुद गांधीजी जिनकी उम्र उस समय 61 साल की थी। एक ऐसा शख़्स भी था जिस पर हत्या का आरोप था। उसका नाम था खड़ग बहादुर सिंह। गांधीजी ने जब उसकी कहानी सुनी कि किन परिस्थितियों में उसने ख़ून किया था, उन्होंने उसे मार्च में शामिल कर लिया।
सत्याग्रहियों में गांधीजी की तीन पीढियां थी शामिल
हिन्दुओं के अतिरिक्त इस दल में दो मुसलमान, एक ईसाई व दो दलित भी शामिल थे। सत्याग्रहियों में गांधीजी की तीन पीढियां शामिल थीं, गांधीजी, उनका बेटा मणिलाल जो दक्षिण अफ़्रीका के फिनिक्स में अपना काम छोड़कर इस सत्याग्रह कि पुकार सुनकर भारत चला आया था और पोता कान्तिलाल। दांडी-यात्रा की भजन-मंडली के प्रमुख पंडित खरे थे। इस यात्रा में गांधीजी मोटे खद्दर की धोती पहने हुए थे और उनके हाथ में लाठी थी। एक सस्ती घड़ी उनकी कमर से लटक रही थी। वह बहुत तेज़ चाल से चल रहे थे। .... और उनके पीछे चल रही थी एक विशाल भीड़, जिसमें लोग तो बराबर बदलते जाते थे, लेकिन उसकी विशालता में कमी नहीं आती थी। सारी यात्रा के दौरान एक घोड़ा भी साथ-साथ चल रहा था, ताकि थक जाने पर गांधी जी उस पर सवारी कर सकें, परन्तु वे उस पर नहीं बैठे। उनका कहना था कि उनके लिए दिन में 24 किलोमीटर चलना बच्चों का खेल था।
सत्याग्रहियों के आगे पीछे ट्रकों का काफ़िला भी था। फ़िल कंपनियों द्वारा भाड़े पर लिए गए इन ट्रकों पर कैमरे और न्यूज़रील कर्मचारी थे। वे जुलूस की तस्वीरें ले रहे थे। अंगरेज़ी हुक़ूमत को गांधी जी द्वारा दिए गए इस चुनौती से दुनिया भर में दिलचस्पी पैदा हो गई थी। फॉक्स-मूवीटोन, जे. आर्थर रैंक और पारामाउंट न्यूज़ के ट्रक इस काम में लगे हुए थे। इसके अलावा जर्मनी का ड्यूशे वोशेंशॉ और फ्रांस का सिनेपाथ भी था।
देश में दौड़ी देशभक्ति की लहर
61 वर्ष की उम्र में भी गांधी जी का उत्साह विस्मयकारी था। प्रतिदिन वह 10 मील से अधिक की दूरी तय करते। यात्रा का पहला पड़ाव एक गांव में होता। और रात को वे दूसरे गांव में रुकते। हर जगह गांववासियों की भीड़ लग जाती। नए-नए कार्यकर्ता उस यात्रा में शामिल होते जाते और अहिंसक सत्याग्रहियों का जत्था बढ़ता जाता। रास्ते की जनसभाओं में काफ़ी भीड़ जुटती। वे लोगों को सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने, खादी को अपनाने, हिंदू-मुस्लिम एकता खड़ी करने, अस्पृश्यता से लड़ने और मद्यनिषेध के लिए प्रेरित करते। जैसे-जैसे सत्याग्रही आगे बढ़ते गए सारे देश में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। इस शक्तिशाली राष्ट्रीय भावना को देख कर सरकार डर गई। सरकार ने वादा किया कि नमक कर की समस्या शुल्क समिति के सामने रखा जाएगा, जिससे जनता को बहुत कम क़ीमत पर नमक मिल सके। लेकिन गांधीजी इससे संतुष्ट नहीं थे। नवसारी में गांधीजी ने कहा, "मैं जो चाहता हूं वह लेकर ही वापस जाऊंगा, नहीं तो मेरी लाश समुद्र में तैरेगी।"
6 अप्रैल को पूरे देश में नमक क़ानून तोड़ा गया
6 अप्रैल 1930 को दांडी का वातावरण धूम-धाम से भरा था। दिन की शुरुआत प्रार्थनाओं से हुई। गांधीजी ने अपनी गिरफ़्तारी की परिस्थिति में सत्याग्रहियों के नेतृत्व के लिए पहले अब्बास तैयब्जी और उसके बाद सरोजिनी नायडू को नामित किया। पौ फटने के कुछ देर पहले ही गांधी जी का दस्ता समुद्र तट पर पहुंचा। राइफल से लैस पुलिस थोड़ी दूर पर खड़ी थी। घोड़े पर सवार दो अंगरेज़ अधिकारी उनकी अगुआई कर रहे थे। लोगों ने समुद्र में स्नान किया। गांधीजी भी स्नान कर उस स्थान पर पहुंचे जहां पर गड्ढ़ा बना कर समुद्र का पानी इकट्ठा किया गया था। ठीक साढ़े आठ बजे गांधीजी ने उस गड्ढ़े का पानी एक बरतन में लिया। उसे सूरज की ओर दिखा कर एक मुट्ठी नमक लिया और मुट्ठी खोलकर सफेद नमक भीड़ को दिखाया।
सरोजिनी नायडू ने गांधीजी को 'क़ानून भंगकर्त्ता' के रूप में पुकारा
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए यह सबसे नया प्रतीक था। वहां पर मौजूद सरोजिनी नायडू ने गांधीजी को 'क़ानून भंगकर्त्ता' के रूप में पुकारा। उपस्थित जनसमुदाय ने भी समुद्र के पानी से नमक बनाया। गांधीजी ने घोषणा की, नमक क़ानून को अब तकनीकी या औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया है। अब यह उन सभी के लिए खुला है, जो नमक बनाकर, नमक क़ानून के अभियोजन को स्वीकार करने के लिए सहर्ष प्रस्तुत हों। सारा देश ब्रितानी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ। लाखों लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा।
यह आंदोलन दूसरे रूपों में भी फैलेगा- गाँधीजी
दोपहर में गांधी जी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, "मुझे आशंका थी कि मुझे गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। अब भी मुझे गिरफ़्तारी की पूरी उम्मीद है। लेकिन यह संघर्ष इतना बड़ा है कि मेरी गिरफ़्तारी से रुक नहीं सकता। सविनय अवज्ञा आंदोलन नमक क़ानून तोड़ने के अलावा दूसरे रूपों में भी फैलेगा। ... मैं सबरमती आश्रम तब तक नहीं लौटूंगा जब तक कि देश को आज़ादी नहीं मिल जाती।" जनसभा के बाद उस थोड़े से नमक की नीलामी भी की गई जो उन्होंने सुबह में बनाया था। अहमदाबाद के कपड़ा मिल के मालिक सेठ रणछोड़ भाई ने इस नमक के लिए 1600 रुपए की बड़ी रकम अदा की, जो 750 डॉलर के बराबर थी।
सविनय अवज्ञा आरंभ करने की अनुमति
दांडी में नमक-क़ानून भंग किए जाने के बाद सभी कांग्रेसी संस्थाओं को ऐसा ही करने और अपने-अपने क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आरंभ करने की अनुमति दे दी गई थी। सारे देश में अद्भुत उत्साह का संचार हो चुका था। राजगोपालाचारी ने तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली से वेडावन्नियम तक और केलप्पन ने केरल में कालिकट से पयन्नूर तक नमक मार्च किया। आंध्र और बंगाल के तटवर्ती इलाक़ों, मद्रास, बंबई और उड़ीसा के बालासोर, कटक और पुरी में भी ऐसा ही हुआ। पूरे देश में शहर-शहर, गांव-गांव में नमक बनाने की चर्चा ज़ोर पकड़ चुकी थी। नमक तैयार करने के एक-से-एक तरीक़े काम में लाए जाने लगे थे।
लोग बर्तन-कड़ाहे इकट्ठा करते, नमक तैयार करते और विजय के उन्माद में उसे लेकर घूमते, उसकी नीलामी करते। बड़ी-बड़ी बोली लगती, लोग नमक ख़रीदते। जनता का अगाध उत्साह देखने लायक था। जहां नमक बनाने की सुविधा नहीं थी, वहां 'ग़ैरक़ानूनी' नमक बेचकर कानून तोड़ा गया। हर कहीं नमक गोदामों पर धावा बोला गया तथा अवैध नमक के निर्माण का काम हाथों-हाथ लिया गया। पुलिस की पाशविकता और दमन के बावजूद लोगों का उत्साह तनिक भी कम नहीं हुआ। सत्याग्रही के हाथों में आकर नमक राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक बन गया था।
नमक सत्याग्रह का प्रसार
गांधीजी ने अपने संदेश में कहा, "वर्तमान में भारत का स्वाभिमान सत्याग्रहियों के हाथों में मुट्ठीभर नमक के रूप में प्रतीकमय हो गया है। पहले हम इसे धारण करें, फिर तोड़ें लेकिन नमक का कोई स्वैच्छिक समर्पण न हो।" लोगों ने विदेशी कपड़े और अन्य चीज़ों का भी बहिष्कार करना शुरू कर दिया। शराब की दुकानों पर धरना दिया जाता। लोगों की गिरफ़्तारियां होती। गांधीजी उन्हें बधाई देते हुए कहते, "क़ैद और इस तरह की बातें ऐसी परीक्षाएं हैं, जिसमें से सत्याग्रही को गुज़रना ही पड़ता है।" 13 अप्रैल को गांधीजी ने महिलाओं की सभा को संबोधित करते हुए उन्हें भी राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल होने के लिए कहा। देखते ही देखते आन्दोलन में लाखों महिलाएं भी शामिल हो गयी थीं।
गिरफ्तारियाँ और अग्रेज़ी हुक़ूमत की नृशंसता
आन्दोलन के फैलने से ब्रिटिश हुकूमत परेशान थी। कुछ ही दिनों में लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। 31 मार्च तक 35,000 से अधिक लोग गिरफ़्तार कर लिए गए थे। जवाहरलाल नेहरू को 14 अप्रैल को गिरफ़्तार कर 6 महीनों के लिए जेल भेज दिया गया। नमक-क़ानून को भंग करने के अपराध में जिनको सज़ाएं दी गईं उनमें राजाजी, पं. मदनमोहन मालवीय, जे.एम. सेनगुप्त, बी.जी. खेर, के.एम. मुंशी, देवदास गांधी, महादेव देसाई और विट्ठलभाई पटेल आदि प्रमुख नेता थे। पुलिस ने कई जगह गोलियां भी चलाई। पूरे देश में अग्रेज़ी हुक़ूमत ने नृशंसता का नंगा नाच किया। गांधीजी ने लोगों से अंग्रेज़ों के दमन का जवाब संयम से देने के लिए कहा।
सत्याग्रहियों पर सिपाही टूट पड़ते। उनकी ज़बर्दस्त पिटाई की जाती। सिपाहियों की क्रूरता बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन लोगों ने गांधीजी द्वारा दी गई अहिंसा का पाठ हमेशा याद रखा। कई जगहों पर अहिंसक भीड़ पर पुलिस ने गोलियां भी बरसाईं। भीड़ में महिला और बच्चे भी होते थे। लेकिन लोग न तो भागते और न ही हिंसा पर उतारु होते। जब अगली पंक्ति के लोग गोली खाकर गिर पड़ते तो पिछले लोग गोलियों का सामना करने के लिए आगे आ जाते। लाशों की ढेर में किसी भी सत्याग्रही की पीठ पर गोली नहीं लगी होती। यह सब गांधीजी की अभूतपूर्व प्रेरणा का ही परिणाम था। गांधीजी द्वारा आरंभ किया हुआ आन्दोलन सफल हुआ।
5 मई को गांधीजी की गिरफ़्तारी
1920-22 की तरह इस बार भी गाँधीजी के आह्वान ने तमाम भारतीय वर्गों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी। नमक सत्याग्रह के सिलसिले में लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया। गिरफ़्तार होने वालों में गाँधी जी भी थे। गांधीजी 5 मई को गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के ठीक पहले उन्होंने अहिंसात्मक विद्रोह की दूसरी और पहले से अधिक उग्र योजना बनाई थी। यह थी, धरसाना के सरकारी नमक डिपो पर धावा बोलना और उस पर कब्जा करना। गांधीजी की गिरफ्तारी के एक पखवाड़े के बाद 2500 स्वयंसेवकों ने यह हमला किया।
गिरफ़्तारी के बाद नमक सत्याग्रह की प्रगति
गांधीजी की गिरफ़्तारी और नज़रबंदी के बाद पूरे देश में व्यापक रूप से हड़ताल व बंद का आयोजन किया गया, लेकिन लोग अहिंसा पर क़ायम रहे। बंबई में लगभग 50,000 मिल मज़दूरों ने काम करने से इंकार कर दिया। रेलवे कामगारों ने भी आंदोलन में हिस्सा लिया। सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र देने का सिलसिला चल पड़ा। कलकत्ता में पुलिस ने भीड़ पर गोली चलाई। अनेक लोगों को गिरफ़्तार किया। पेशावर में सैनिक नाके बंदी कर दी गई। उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त में सेना, विमान, टैंक व गोला-बारूदों का जमकर उपयोग किया गया।
गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद बड़ौदा के पूर्व-न्यायविद अब्बास तैयबजी ने गांधीजी के उत्तराधिकारी के रूप में सत्याग्रह का काम संभाला। अब्बास तैयबजी करडी से धरसाना के नमक कारखाने तक पहुंचने का नेतृत्व करने के लिए चले ही थे कि सूरत के ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट ने तैयबजी और अन्य सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया और उन्हें बस में बिठाकर जलालपुर ले जाया गया।
सरोजिनी नायडू बनीं उत्तराधिकारिणी
तैयबजी के बाद सरोजिनी नायडू उनकी उत्तराधिकारिणी बनीं। 21 मई को 3000 स्वयंसेवकों ने सरोजिनी नायडू व साबरमती आश्रम के वयोवृद्ध नेता इमाम साहेब के नेतृत्व में धरसाना डिपो पर हमला किया। जैसे ही स्वयंसेवकों का पहला जत्था आगे बढ़ा, पुलिस अधिकारियों ने उन्हें दूर हट जाने की आज्ञा दी। स्वयंसेवक चुपचाप आगे बढ़े। पुलिस के सैकड़ों जवान उन पर टूट पड़े और डंडे बरसाने लगे। पुलिस सत्याग्रहियों पर लोहे की नोक वाली लाठियों से प्रहार कर रहे थे। एक भी सत्याग्रही ने अपने बचाव के लिए हाथ नहीं उठाया। धरती सत्याग्रहियों से पट गई। पहले दस्ते के बाद दूसरा दस्ता आगे बढ़ा। उनपर भी बर्बरतापूर्ण प्रहार किया गया। सरोजिनी नायडू और मणिलाल को गिरफ़्तार कर लिया गया। अस्थायी अस्पताल में 320 लोग घायल पड़े हुए थे।
6 जून तक बार-बार नमक फ़ैक्टरी में घुसने का प्रयत्न करते रहे। सत्याग्रही नमक की ढेरी से नमक लाने में असफल रहे। लेकिन इस आन्दोलन का लक्ष्य केवल नमक छीनना नहीं था, बल्कि दुनिया को बताना था कि ब्रिटिश शासन का आधार हिंसा और क्रूरता है। सरकार की दमनकारी नीति से लोग झुकने के बजाए सत्याग्रह पर और भी दृढ़ हो गए। सारे देश में लोग या तो नमक बनाते या नमक कारख़ानों पर हमला बोलते।
पन्द्रह हज़ार स्वयंसेवकों का सत्याग्रह
बंबई उपनगर के वडाला के नमक डिपो पर पन्द्रह हज़ार स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। 18 मई को 470 सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसी तरह का धावा सनिकट्टा नमक फैक्ट्री पर भी किया गया जिसमें 10,000 प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया। कांग्रेस ने संघर्ष-कार्यक्रम को व्यापक बना दिया। इसमें नमक-कानून के अतिरिक्त वन-कानूनों को तोड़ना, करों का देना बन्द करना और विदेशी वस्त्रों, बैंकों तथा नौपरिवहन का बहिष्कार सम्मिलित कर लिया गया। सरकार ने इसके जवाब में अध्यादेश निकाल कर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने और उन पर मुकदमा चलाने के असाधारण अधिकार दे दिए।
सविनय अवज्ञा विस्तारित रखने का प्रस्ताव हुआ पारित
जून में कांग्रेस की कार्यकारी समिति की बैठक इलाहाबाद में हुई, जिसमें न सिर्फ़ सविनय अवज्ञा के ज़ारी रखने का प्रस्ताव पारित हुआ बल्कि इसके क्षेत्र को थोड़ा और विस्तारित कर दिया गया। नमक का मुद्दा उत्प्रेरक तो रहा, लेकिन बरसात के मौसम में इसे चलाये रखना कठिन था। वैसे भी नमक आंदोलन तटीय क्षेत्रों में ही चलाया जा सकता था। इसलिए नमक सत्याग्रह के साथ ही जंगल सत्याग्रह, विदेशी वस्त्रों, बैंकों, जहाजी और बीमा कंपनियों का बहिष्कार, रैयतवाड़ी इलाके में लगानबंदी, प्रति सप्ताह नमक क़ानून भंग करने तथा शराब की दूकानों पर धरना देने को भी समाविष्ट कर लिया गया। शराब की दूकानों पर और एक्साइज लाइसेंस की नीलामी के समय धरना देना गांवों और छोटे कस्बों, दोनों ही में आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
अनेक स्थानों पर किसानों ने चौकीदारी कर देने से दृढतापूर्वक इंकार कर दिया। ग्राम अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर अपने पदों से त्यागपत्र देकर ग्रामीण प्रशासन को ठप्प कर दिया। बड़े नियंत्रित ढंग से वन-क़ानूनों को लेकर किसानों और आदिवासियों के आक्रोश का उपयोग किया गया। शिविर लगाकर 'वन-सत्याग्रिहियों' को प्रशिक्षण दिया गया। वन-विभाग की नीलामियों का बहिष्कार किया गया। चराई और लकड़ी संबंधी नियमों का शांतिपूर्वक उल्लंघन किया गया। वनों से अवैध रूप से प्राप्त उपज की सार्वजनिक बिक्री की गई।
नोट: 12 मार्च की सुबह नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ। करियर इंडिया द्वारा इस लेख में दांडी यात्रा के शुरू होने लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन के विस्तार तक की घटनाओं का विवरण दिया गया है। इस चैप्टर के अगले भाग में नमक सत्याग्रह आन्दोलन के बाद अंग्रेजों के अत्याचार का विस्तृत वर्णन किया जायेगा।