कौन होते हैं हिंदू? क्या है हिंदू की परिभाषा? क्या होता है जब माता-पिता में से कोई एक हिंदू नहीं हो?

कई धर्मों, संस्कृतियों और जातियों से मिलकर बने भारत में कई बार धर्म को लेकर विवाद उभर-उभर कर आते हैं। खासतौर से हिंदू और मुस्लिम समुदाय को लेकर। खैर यह तो रहा राजनीतिक विषय, लेकिन क्या आप जानते हैं हिंदू होते कौन हैं? हिंदू की परिभाषा क्या है? किस पर हिंदू लॉ लागू होता है और किस पर नहीं? यदि नहीं तो चलिए आज हम इस लेख में आपके लिए ऐसी ढेर सारी जानकारी लेकर आए हैं जो शायद आपने अभी तक कहीं पढ़ी व सुनी नहीं होगी।

कौन होते हैं हिंदू? क्या है हिंदू की परिभाषा? क्या होता है जब माता-पिता में से कोई एक हिंदू नहीं हो?

हिंदू शब्द का अर्थ क्या है?

हिंदू शब्द की कहीं भी कोई परिभाषा नहीं दी गई है, यह सिंधु शब्द से लिया गया है।

हिंदू किसे कहते हैं?

सामान्य शब्दों में "वे सभी व्यक्ति जो हिंदू धर्म को जन्म से या हिंदू धर्म में परिवर्तित करके धर्म का पालन करते हैं, वे हिंदू कहलाते हैं"।

हिंदू लॉ के अनुसार किसे हिंदू माना गया है?

हिन्दू लॉ के अनुसार चार प्रकार के लोगों को हिंदू माना जाता है।

  1. जन्म से हिंदू (Hindu by birth)
  2. धर्मांतरण द्वारा हिन्दू (Hindu by conversion)
  3. जिसका पालन-पोषण एक हिंदू की तरह किया गया हो (Brought up as Hindu)
  4. घोषणा द्वारा हिन्दू (Hindu by declaration)

हिंदू लॉ क्या है?

हिंदू लॉ दुनिया का सबसे प्राचीन और विपुल कानून माना जाता है जो कि लगभग 6000 वर्ष पुराना है। हिन्दू लॉ की स्थापना लोगों ने समाज से किसी अपराध को दूर करने के उद्देश्य से नहीं की गई, बल्कि इसलिए की गई थी ताकि लोग इसका पालन करके मोक्ष प्राप्त कर सकें। मूल रूप से हिन्दू लॉ इसलिए स्थापित किया गया था ताकि लोगों की आवश्यकता पूरी हो सके। लोगों के कल्याण के लिए अवधारणा शुरू की गई थी। सरल शब्दों में कहे तो हिंदू लॉ एक पर्सनल लॉ है जो कि यह बताता है कि हिंदू लॉ किस पर लागू होता है या किस पर नहीं।

हिंदू लॉ किस पर लागू होता है?

हिंदू लॉ तीन प्रकार के लोगों पर लागू होता है।

  1. धर्म से हिन्दू
  2. जन्म से हिन्दू
  3. कोई भी व्यक्ति जो किसी अन्य कानून द्वारा शासित नहीं होता है।
कौन होते हैं हिंदू? क्या है हिंदू की परिभाषा? क्या होता है जब माता-पिता में से कोई एक हिंदू नहीं हो?

1. धर्म से हिंदू

(क) जन्म से हिंदू- कोई भी व्यक्ति जो जन्म से हिंदू, जैन, सिख या बौद्ध है, उसे धर्म से हिंदू ही माना जाता है।
(ख) धर्मांतरण से हिंदू- जो भी व्यक्ति धर्मांतरण से हिंदू बनता है उसे भी धर्म से हिंदू माना जाता है।

2. जन्म से हिंदू

(क) माता-पिता दोनों हिंदू- कोई भी व्यक्ति जिसके माता-पिता दोनों हिंदू हैं और जो हिंदू धर्म को मानते हैं, वह जन्म से हिंदू कहलाता है।

(ख) माता-पिता में से काई एक हिंदू हो- कोई भी व्यक्ति जिसके पिता या माता में से कोई एक हिंदू हो और वह बच्चें का पालन-पोषण एक हिंदू के रूप में करें तो उसे भी जन्म से हिंदू कहा जाता है। उदाहरण- संजय दत्त (बॉलीवुड अभिनेता) संजय दत्त की माता- नरगिस मुस्लिम थीं और उनके पिता सुनिल दत्त हिंदू। लेकिन संजय दत्त का पालन-पोषण एक हिंदू के रूप में किया गया तो वह एक हिंदू हैं।

(ग) कोई भी व्यक्ति जो किसी अन्य कानून (पर्सनल लॉ) जैसे, क्रिश्चियन पर्सनल लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, आदि द्वारा शासित नहीं हैं- कोई भी व्यक्ति जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहूदी नहीं है और किसी अन्य कानून द्वारा शासित नहीं हैं। वह व्यक्ति भी हिंदू कहलाता है। यानि कि ऐसे लोग जो खुद को नास्तिक कहते हैं वो भी हिंदू कहलाते हैं। और उन पर हिंदू लॉ लागू होता है।

हिंदू लॉ किस पर लागू नहीं होता?

1. कोई भी बच्चा जिसके माता- पिता में से कोई एक हिंदू है और दूसरा हिंदू के अलावा अन्य मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहूदी धर्म से है और उस बच्चे का पालन पोषण हिंदू के रूप में नहीं किया गया हो। वह हिंदू नहीं कहलाएगा और उस पर हिंदू लॉ लागू नहीं होगा। उदाहरण- सलमान खान (बॉलीवुड स्टार) सलमान खान की मां शुषिला चारक एक हिंदू हैं और उनके पिता सलीम खान एक मुस्लिम। लेकिन सलमान खान का पालन-पोषण एक मुस्लिम के रूप में हुआ इसलिए वह हिंदू नहीं हैं और न ही उनके ऊपर हिंदू ऐक्ट लागू होता है।

2. कोई भी हिंदू जिसने खुद को हिंदू के अलावा अन्य धर्म में परिवर्तित किया हो, वह हिंदू नहीं कहलाएगा और न ही उस पर हिंदू लॉ लागू होगा।

कौन होते हैं हिंदू? क्या है हिंदू की परिभाषा? क्या होता है जब माता-पिता में से कोई एक हिंदू नहीं हो?

हिंदू लॉ के स्रोत क्या हैं?

हिंदू लॉ के स्रोत का दो भागों में वर्गीकरण किया गया है।

1. प्राचीन स्रोत (Ancient/Primary Source)
2. आधुनिक स्रोत (Mordern/ Secondary Source)

1. प्राचीन स्रोत (Ancient/Primary Source)

प्राचीन स्रोत वे स्रोत हैं जिन्होंने प्राचीन काल में हिंदू कानून की अवधारणा को विकसित किया। इसे आगे चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

(1) श्रुति (Shruti)

श्रुति शब्द "श्रु" धातु से बना है जिसका अर्थ है 'सुनना'। यह स्रोत हिंदू कानून का प्राथमिक और सर्वोपरि स्रोत है। श्रुति पवित्र शुद्ध उच्चारण हैं जो वेदों और उपनिषदों में निहित हैं। इसे ऋषियों के माध्यम से दिव्य रहस्योद्घाटन की भाषा माना जाता है।

श्रुति का पर्याय वेद है। यह 'विद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'जानना'। वेद शब्द इस परंपरा पर आधारित है कि वे सभी ज्ञान के भंडार हैं। चार वेद हैं, ऋग्वेद (संस्कृत में मुख्य पुजारी द्वारा सुनाए जाने वाले भजन), यजुर्व वेद (कार्यवाहक पुजारी द्वारा सुनाए जाने वाले सूत्र), साम वेद (ऋषियों द्वारा बोले जाने वाले छंद) और अथर्ववेद (मंत्र और मंत्रों, कहानियों, भविष्यवाणियों, एपोट्रोपिक आकर्षण और कुछ सट्टा भजनों का संग्रह)।

प्रत्येक वेद के तीन भाग होते हैं अर्थात् संहिता (जिसमें मुख्य रूप से भजन शामिल हैं), ब्राह्मण (हमें हमारे कर्तव्य और उन्हें करने के साधन बताते हैं) और उपनिषद (इन कर्तव्यों का सार युक्त)। श्रुतियों में वेदों को उनके घटकों के साथ शामिल किया गया है।

(2) स्मृति (Smriti)

स्मृति शब्द की उत्पत्ति "स्मृति" धातु से हुई है जिसका अर्थ है 'याद करना'। परंपरागत रूप से, स्मृतियों में श्रुतियों के वे अंश होते हैं जिन्हें ऋषि अपने मूल रूप में भूल गए थे और वह विचार जिससे उन्होंने अपनी स्मृति की सहायता से अपनी भाषा में लिखा था। इस प्रकार स्मृतियों का आधार श्रुतियाँ हैं किन्तु वे मानवीय कृतियाँ हैं।

स्मृतियां दो प्रकार की होती हैं। (क) धर्मसूत्र और (ख) धर्मशास्त्र। इनका विषय लगभग एक जैसा है। अंतर यह है कि धर्मसूत्र गद्य में, लघु सूक्ति (सूत्र) में लिखे गए हैं और धर्मशास्त्र कविता (श्लोक) में रचे गए हैं। हालाँकि, कभी-कभी, हम धर्मशास्त्रों में धर्मसूत्रों और सूत्रों में श्लोक पाते हैं। संकीर्ण अर्थ में स्मृति शब्द काव्यात्मक धर्मशास्त्रों के निरूपण के लिए प्रयुक्त होता है।

स्मृति लेखकों की संख्या निर्धारित करना लगभग असंभव है, लेकिन याज्ञवल्क्य (मिथिला के ऋषि और उपनिषदों में एक प्रमुख व्यक्ति) द्वारा गणना किए गए कुछ प्रसिद्ध स्मृति लेखकों में मनु, अत्रि, विष्णु, हरिता, याज्ञवल्क्य, यम, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर हैं। , व्यास, शंख, दक्ष, गौतम, शततप, वशिष्ठ आदि।

स्मृतियों में निर्धारित नियमों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है जैसे। आचार (नैतिकता से संबंधित), व्यवहार (प्रक्रियात्मक और मूल नियमों को दर्शाता है जो राजा या राज्य ने न्याय के अधिनिर्णय में विवादों को निपटाने के लिए लागू किया) और प्रायश्चित (गलत के आयोग के लिए दंड प्रावधान को दर्शाता है)।

(3) प्रथाएं (Custom)

कस्टम को हिंदू लॉ का तीसरा स्रोत माना जाता है। प्राचीन काल से ही प्रथा ('achara') को सर्वोच्च 'धर्म' माना जाता है। जैसा कि न्यायिक समिति द्वारा परिभाषित किया गया है, रिवाज एक ऐसे नियम को दर्शाता है जो किसी विशेष परिवार या किसी विशेष वर्ग या जिले में लंबे समय से कानून का बल प्राप्त करता है।
रीति एक सिद्धांत स्रोत है और इसकी स्थिति श्रुतियों और स्मृतियों के बगल में है लेकिन प्रथा का उपयोग स्मृतियों पर हावी है। यह लिखित कानून से श्रेष्ठ है। प्रथा को वैध घोषित करने के लिए कुछ विशेषताओं का पूरा होना आवश्यक है। वे हैं:-

(i) रिवाज प्राचीन होना चाहिए। विशेष उपयोग को लंबे समय तक अभ्यास किया जाना चाहिए और एक विशेष समाज के शासी नियम के रूप में आम सहमति से स्वीकार किया जाना चाहिए।

(ii) रिवाज निश्चित होना चाहिए और किसी भी प्रकार की अस्पष्टता से मुक्त होना चाहिए। यह तकनीकीताओं से भी मुक्त होना चाहिए।

(iii) रिवाज उचित होना चाहिए और किसी मौजूदा कानून के खिलाफ नहीं होना चाहिए। यह अनैतिक या किसी सार्वजनिक नीति के खिलाफ नहीं होना चाहिए और

(iv) लंबे समय तक प्रथा का लगातार और समान रूप से पालन किया जाना चाहिए।

भारतीय न्यायालय तीन प्रकार के रीति-रिवाजों को मान्यता देते हैं:

(क) स्थानीय रिवाज - ये ऐसे रिवाज हैं जिन्हें न्यायालयों द्वारा किसी विशेष क्षेत्र या इलाके में प्रचलित माना जाता है।

(ख) वर्ग प्रथा - ये वे रीति-रिवाज हैं जो एक विशेष वर्ग द्वारा क्रियान्वित की जाती हैं। उदा. वैश्यों के एक वर्ग में इस आशय की प्रथा है कि पति द्वारा पत्नी का परित्याग या परित्याग विवाह को निरस्त कर देता है और पत्नी पति के जीवनकाल में फिर से विवाह करने के लिए स्वतंत्र होती है।

(ग) पारिवारिक रीति- ये वे रीति-रिवाज हैं जो एक परिवार के सदस्यों के लिए बाध्यकारी हैं। उदाहरण- प्राचीन भारत के परिवारों में यह प्रथा थी कि परिवार के सबसे बड़े पुरुष सदस्य को संपत्ति का उत्तराधिकारी बनाया जाता था।

(4) डाइजेस्ट और कमेंट्री (Digests and Commentaries)

श्रुतियों के बाद भाष्यकारों और हवनों का युग आया। भाष्य (टीका या भाष्य) और डाइजेस्ट (निबंध) ने 7वीं शताब्दी से 1800 ईस्वी तक हजार साल से अधिक की अवधि को कवर किया। डाइजेस्ट की प्रकृति जिसमें विभिन्न स्मृतियों का संश्लेषण होता है और विभिन्न विरोधाभासों की व्याख्या और सामंजस्य होता है।

विभिन्न अधिकारियों द्वारा लिखी गई विभिन्न टिप्पणियों के कारण हिंदू कानून के विभिन्न विद्यालयों का विकास संभव हुआ है। हिंदू कानून का मूल स्रोत सभी हिंदुओं के लिए समान था। लेकिन हिंदू कानून के स्कूलों का उदय हुआ क्योंकि लोगों ने अलग-अलग कारणों से एक या दूसरे स्कूल का पालन करना चुना। दयाभाग और मिताक्षरा हिंदू कानून के दो प्रमुख स्कूल हैं। दयाभागा स्कूल ऑफ लॉ जिमुतवाहन (दयाभाग के लेखक जो सभी संहिताओं का सार है) की टिप्पणियों पर आधारित है और मिताक्षरा याज्ञवल्क्य संहिता पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखी गई टिप्पणियों पर आधारित है।

2. आधुनिक स्रोत (Mordern/ Secondary Source)

(1) विधान (Legislation)

विधान संसद के अधिनियम हैं जो हिंदू कानून के निर्माण में गहन भूमिका निभाते रहे हैं। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, हिंदू कानून के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को संहिताबद्ध किया गया है। महत्वपूर्ण क़ानूनों के कुछ उदाहरण हैं द हिंदू मैरिज एक्ट, 1955, द हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956, द हिंदू सक्सेशन एक्ट, 1956, द हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956, आदि।

संहिताकरण के बाद, संहिताबद्ध कानून द्वारा निपटाया गया कोई भी बिंदु अंतिम है। अधिनियमन सभी पूर्व कानूनों को ओवरराइड करता है, चाहे वह प्रथा पर आधारित हो या अन्यथा जब तक अधिनियमन में ही एक स्पष्ट बचत प्रदान नहीं की जाती है। संहिताबद्ध कानून द्वारा विशेष रूप से कवर नहीं किए गए मामलों में, पुराने शाब्दिक कानून में आवेदन होना शामिल है।

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(2) न्यायिक निर्णय (Judicial Decision/Precedents)

ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद, न्यायालयों के पदानुक्रम की स्थापना हुई। समान मामलों को समान रूप से मानने के सिद्धांत के आधार पर मिसाल का सिद्धांत स्थापित किया गया था। आज, प्रिवी कौंसिल के निर्णय भारत के सभी निचले न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं, केवल उन मामलों को छोड़कर जहां उन्हें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित या परिवर्तित किया गया है, जिनके निर्णय स्वयं को छोड़कर सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी हैं।

(3) इक्विटी, न्याय, और अच्छा विवेक (Equity, Justice and Good Conscience)

कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई विवाद किसी न्यायालय के समक्ष आता है जिसे उपलब्ध स्रोतों में से किसी भी मौजूदा नियम के आवेदन से नहीं सुलझाया जा सकता है। ऐसी स्थिति दुर्लभ हो सकती है लेकिन यह संभव है क्योंकि हर प्रकार की तथ्यात्मक स्थिति जो उत्पन्न होती है, उसके अनुरूप कानून को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय कानून के अभाव में विवाद को निपटाने से इंकार नहीं कर सकते हैं और वे ऐसे मामले का भी निर्णय करने के लिए बाध्य हैं। ऐसे मामलों का निर्धारण करने के लिए, न्यायालय निष्पक्षता और औचित्य के बुनियादी मूल्यों, मानदंडों और मानकों पर भरोसा करते हैं।

शब्दावली में, इसे न्याय, समानता और अच्छे विवेक के सिद्धांतों के रूप में जाना जाता है। उन्हें प्राकृतिक कानून भी कहा जा सकता है। हमारे देश में इस सिद्धांत को 18वीं शताब्दी से कानून के स्रोत का दर्जा प्राप्त है, जब ब्रिटिश प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया था कि किसी नियम के अभाव में उपरोक्त सिद्धांत को लागू किया जाएगा।

उम्मीद है इस लेख को पढ़ने के बाद आपको निम्न प्रश्‍नों के उत्तर जानने में मदद मिलेगी-

  • Who is Hindu and to whom Hindu Law applies? Also state to whom it does not apply?
  • Discuss various sources of Hindu law.
  • What are the ancient or original sources of Hindu law.
  • What are the modern or secondary sources of Hindu law.

नोट- उपर्युक्त प्रश्न एलएलबी कर रहे छात्रों से हिंदू लॉ परीक्षा में पूछे जाते हैं।

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English summary
Who is Hindu, Definition of Hindu, What if either of mother-father is not Hindu? Taking a look at Hindus and understanding deeply who Hindus are, what is the definition of a Hindu, on whom the Hindu law applies, and on whom it does not.
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