हिंदू, मुस्लिम, पारसी, ईसाई जब बनाने वाले ने मनुष्य में कोई अंतर नहीं किया तो हम कैसे माने कि कौन हिंदू? कौन मुसलमान? रहन-सहन के ढ़ंग से या फिर पहनावे के ढंग से? किसी मनुष्य के पहनावे और रहन-सहन के तरिके से हम यह निर्धारित नहीं कर सकते हैं वो हिंदू है या फिर मुस्लिम।
आए दिन टीवी पर न्यूज चैनल से लेकर गली के नुक्कड़ पर बैठे लोगों में यह चर्चा का विषय रहता है कि कौन हिंदू और कौन मुसलमान? लेकिन लोग कभी इस बात पर चर्चा नहीं करते हैं कि इस पर कानून क्या कहता है। दरअसल, भारत में सभी धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं और उन्हीं के धर्मानुसार कानून भी बनाए गए हैं। जैसे कि हिंदू पर्सनल लॉ और मुस्लिम विधि।
आज के इस लेख में हम आपको बताएंगें कि मुस्लिम विधि के अनुसार मुसलमान कौन होता है। मुस्लिम विधि के प्रमुख सम्प्रदाय कौन से है? सुन्नी और शिया का उद्भव कैसे हुआ?
मुसलमान कौन हैं? (Who are Mohammedan?)
आगनाइडस के अनुसार, "मुसलमान वह व्यक्ति होता जो पैगम्बर के रुप में मौहम्मद की आर्थिक सेवा में विश्वास करता हैस जो यह कहता है कि खुदा के सिवा कोई दूसरा खुदा नहीं है और मौहम्मद खुदा का रसूल हैस या जो खुदा और मौहम्मद में कोई अन्य आवश्यक विश्वासों के बारे में श्रद्धा रखता है।"
इस प्रकार प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो यह मानता है कि "इस्लाम ही ईश्वर की एकता है" और मौहम्मद साहब को पैगम्बर मानता हो वही मुसलमान है। ऐसे व्यक्ति के लिए यह आवश्यकत है कि कलमा में विश्वास रखे किंतु कट्टरपन्थी होना जरुरी नहीं है। किंतु केवल स्वंय को मुस्मिम कहना या कहलवाना भी पर्याप्त नहीं है। उसे सच्चे अर्थों में मुस्मिल धर्म पालन करने वाला होना चाहिए। इस प्रकार व्यक्ति निम्नलिखित दो प्रकार से मुस्लिम हो सकते हैं-
1) जन्म से मुसलमान (Muslim by Birth)- कोई भी ऐसा बच्चा जन्म से मुसलमान कहलायेगा जिसके माता- पिता दोनों ही मुसलमान हैं या माता या पिता में से कोई भी एक मुसलमान है और उसने इस्लाम धर्म का शपथपूर्वक त्याग नहीं किया है।
2) धर्म परिवर्तन से मुसलमान (Muslim by Conversion)- कोई भी ऐसा व्यक्ति जो (i) ईसाई (Christian), (ii) बौद्ध (Budhist) तथा (iii) हिन्दू (Hindu) आदि है और मुस्लिम धर्म में विश्वास करते हुए उसके अनुसार आचरण करते हुए इस्लाम धर्म को स्वीकार करता है, वह भी मुसलमान कहलायेगा।
इस प्रकार कोई भी व्यक्ति या तो जन्म से या इस्लाम धर्म को स्वीकार करने से भी मुस्लिम हो सकता है। किन्तु शर्त यह है ऐसा धर्म परिवर्तन उचित और सद्भावानापूर्वक होना चाहिए। किसी गैरमुस्लिम को जो 15 वर्ष से कम उम्र का हो कलमा के शब्दों का उच्चारण कराकर मुस्लिम बनाया जा सकता है बशर्ते कि वह कलमा का अर्थ समझता हो।
मुस्लिम विधि के प्रमुख सम्प्रदाय और उनका उद्भव (Main Sects of Muslim Law and their origin)
मुस्लिम धर्म के मानने वालों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है
(क) सुन्नी सम्प्रदाय तथा
(ख) शिया सम्प्रदाय
(क) सुन्नी सम्प्रदाय को पुन: 4 भागों में बांटा जाता है
1. हनाफी
2. मलिकी
3. शफी तथा
4. हनबली
(ख) शिया सम्प्रदाय को पुन: 3 भागों में बांटा जाता है
1. असना अशरिया
2. इस्माइली तथा
3. जैदी
1. असना अशरिया के पुन: दो भाग हैं- 1. अकबरी 2. उसूली।
2. इस्माइली भी पुन: दो भागों में विभक्त है- 1. खोजा 2. बोहरा
शिया और सुन्नी सम्प्रदाय की उत्पत्ति कैसे हुई?
612 ई0 में हजरत मौहम्मद साहब की मृत्यु के बाद इमामत के उत्तराधिकार के सवाल के बारे में एक विवाद उठ खड़ा हुआ जिससे समस्त मुसलमान लोग दो भागों में बंट गये। एक भाग के मतानुसार मौहम्मद साहब के उत्तराधिकारी का चुनाव करने में उत्तराधिकार (Succession) के सिद्धांत को लागू करना चाहिए। दूसरे भाग का मत था कि इस प्रश्न का फैसला चुनाव (Election) द्वारा होना चाहिये। इस मतभेद के कारण प्रथम भाग शिया तथा दूसरा भाग सुन्नी कहलाने लगा।
मौहम्मद साहब के देहान्त के बाद उनकी पत्नी आइशा से अली जो मौहम्मद साहब का दामाद था को उत्तराधिकार से वंचित करके अपनी पिता अबुब्रक को खलीफा बनवा दिया। किन्तु शिया सम्प्रदाय ने इसका विरोध किया और अली को मौहम्मद साहब के उत्तराधिकारी के रुप में खलीफा को मतदान द्वारा निर्वाचित किया। अत: शिया और सुन्नी सम्प्रदायों के बीच जो अन्तर है वह राजनौतिक कारणों से है न कि वैधानिक कारणों से।
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मुस्लिम विधि के प्रमुख शिया और सुन्नी सम्प्रदायों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी नीचे दी गई है।
(क) सुन्नी सम्प्रदाय (Sunni Sect)- सुन्नी सम्प्रदाय को अबू हनीफा ने स्थापित किया था। सुन्नी लोग जनतान्त्रिक प्रणाली में विश्वास करते थे अत: उनका मत था कि खलीफा के पद के लिए चुनाव होना चाहिये। सुन्नी लोग विधि-वेत्ताओं की साधारण सभा के निर्णयों को कुरान के नियमों के अनुपूरकों के समान मानते हैं। उनकी राज में इज्मा और क्यास का महत्वपूर्ण स्थान है। सुन्नी सम्प्रदाय को निम्नलिखित चार भागों में बांटा जाता है जिन्हें सुन्ना (परम्मपरा) पर आधारित होने के कारण यह नाम दिया गया है। यह माना जाता है कि प्रत्येक मुस्लिम को अपनी विचार पद्धति स्वीकार करने का हक है जिसके अनुसार उसका कि प्रत्येक मुस्लिम को अपनी विचार पद्धति स्वीकार करने का हक है जिसके अनुसार उसका फैसला होगा और प्रत्येक मस्जिद में चारों पद्धति वाले मुस्लिमों को जाने की स्वतन्त्रता होगी।
1. हनाफी विचार पद्धति (Hanafi School)- हनाफी सम्प्रदाय सु्न्नी विधि का सर्वप्रथम उप- सम्प्रदाय है, जिसके संस्थापक अबू हनीफा थे जिन्हें उनके प्रशंसकगण इमाम आजम (महान शिक्षक) कहते हैं। उन्होंने विधि की अपनी विचार- पद्धति की संस्था को अपने जन्म के नगर कूफा में स्थापित किया जो विद्या का एक स्वतन्त्र केन्द्र पहले से ही था। अबू हनाफी की विचार- पद्धति शीघ्र ही प्रसिद्ध हो गई और हनिफा विचार पद्धति के नाम से आज भी प्रसिद्ध है। इस स्कूल ने मौखिक परम्पराओं पर विश्वास न करके तर्क को एक सूक्ष्म युक्तियुक्त रीति और सादृय के सिद्धान्त का विकास किया तथा 'इज्मा' के सिद्धांत की स्पष्ट व्याख्या की। अबू हनीफा निजी अनुमान के समर्थक थे। वे सादृश्य- घोतक अनुमानों और विधिवेत्ताओं के अन्त:करण पर अधिक विश्वास करते थे तथा परम्पराओं का खण्डन करते थे। अबू हनिफा ने एक नया सिद्धांत 'इस्तिहसान' निकाला था जो साम्य के सिद्धांतों से मिलता-जुलता है।
हनाफी विधि के व्याख्याकर्ता- (i) अबू हनीफा और इनके दो प्रमुख शिष्य (ii) अबू यूसुफ और (iii) इमाम मोहम्मद हैं।
हनाफी स्कूल उत्तर भारत, अरब, सीरिया, तुर्कीस और मिस्र में प्रचलित है तथा इस स्कूल के प्रमुख ग्रन्थ फतवा-ए-आलम गीरी, हिदाया उल मुख्तार, दुरुल मुखतार तथा कुदुरी की अलमुख्तसर हैं।
2. मलिकी विचार पद्धति (Maliki School)- इस स्कूल के संस्थापक मलिक इब्नअनास थे जो मदीना में रहते थे और धार्मिक शिक्षा देते थे। मलिक मदीना में मुफ्ती के पद पर आसीन थे। मलिक पैगम्बर की रीति और परम्पराओं में विश्वास करते थे। किन्तु जहां परम्परा से काम नहीं चलता था वहां वे निजी अनुमान की इजाजत दे देते थे। यद्यपि वे परम्परा पर जोर देते थे। परन्तु फिर भी 'क्यास' अर्थात् सादृश्य घोतक अनुमान का खण्डन नहीं करते थे। इस शाखा की मुख्य विशेषता यह है कि इससे परिवार के कर्त्ता या मुखिया या उसकी स्त्री की सम्पत्ति और बच्चों पर विशेष अधिकार होता है। इस स्कूल के अन्तर्गत विवाहित स्त्री अपनी सम्पत्ति की पूर्ण स्वामिनी नहीं होती।
मलिकी स्कूल उत्तरी, अफ्रीका, मोरक्को तथा स्पेन में प्रचलित है। इस स्कूल के प्रमुख ग्रन्थ किताब-उल-मुक्ता और मुअन्ना हैं।
3. शफी विचारधारा (Shafi School)- शफी विचारधारा के प्रवर्त्तक मोहम्मद शफी थे। इनका जन्म पैलेस्टाइन में गाजा नामक स्थान पर उस दिन हुआ जिस दिन अबू हनीफा की मृत्यु हुई। मोहम्मद शफी न्याय के लिए प्रसिद्ध हैं। इन्होंने अहादी पर अधिक ध्यान दिया तथा सर्वप्रथम उसूलों की स्थापना की। ये अबू हनीफा से ज्यादा और मलिक से कम परम्परा पर भरोसा करते थे। इस स्कूल के मानने वाले दक्षिण भारत और कैटो में पाये जाते हैं।
4. हनबली विचार पद्धति (Hanbali School)- हनबली के संस्थापक अहमद बिन हनबल थे। इन्होंने परम्पारओं पर अधिक जोर दिया। इन्होंने इज्मा तथा क्यास का प्रयोग निश्चित सीमा तक कम कर दिया। यह कहा जाता है कि शर्फी ने बगदाद छोड़ते समय यह कहा था कि अहमद बिन हनबल एक महात्मा और विधिवेत्ता हैं। अरब में इस पद्धति के अनुयायी बहुत कम हैं।
(ख) शिया सम्प्रदाय (Shia Sect)- शिया शब्द का अर्थ 'धार्मिक गुट' से है। मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी आएशा ने अली जो मोहम्मद साहब के दामाद थे, को उनके उत्तराधिकारी होने से वंचित करके अपने पिता अबूबक्र को खलीफा घोषित करा दिया। शिया लोगों ने इसका घोर विरोध किया। उनका कहना था कि मोहम्मद साहब के उत्तराधिकारी (Successor) का चयुन चुनाव के आधार पर नहीं होना चाहिये अत: ये लोग चयन के आधार पर निर्वाचित प्रथम तीन खलीफाओं- (i) मश: अबूबक्र (ii) उमर तथा (iii) उस्मान को नहीं मानते। शिया लोगों के सिद्धान्त, आदर्श और नियम सुन्नी लोगों से बिल्कुल अलग हैं। शिया लोगों को निम्निलिखित तीन भागों में बांटा जाता है।
1. असना अशरिया विचार पद्धति- इस विचार पद्धति के लोग बारह इमामों को मानने वाले कहे जाते हैं। तत्पश्चात् इमाम का अस्तित्व केवल निष्ठा का विषय रह गया दृष्टि का नहीं। शिया सम्प्रदाय में इस विचारधार को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है। धारत लखनउ और मुर्शिदाबाद में इस मत के काफी लोग पाये जाते हैं। ये बारह मान्यता प्राप्त इमाम हैं- (i) अली, (ii) हसन, (iii) हुसेन (iv) अली असगर जैनुल- आविदीन (v) मोहम्मद-अल-बाकिर (vi) जाफर-अस-सादिक (vii) मूसा-उल-काजिम (viii) अली अर-रजा (ix) मोहम्मद-अततकी-अल-जब्बाद (x) अल-अन-नकी-अल-हादी (xi) अल हसनल-असकरी और (xii) मोहम्मद-अल-मुन्तजर इमामल कायम शाहिब अल जमान।
स्मरणीय है कि मौरक्को के शरीफ और उत्तरी अफ्रीका के इन्द्रिसिद-द्वितीय इमाम के वंशज हैं। चौथे इमाम अली असगर के दो बेटे थे- जैद और मोहम्मद अली-बाकिर। जैद के वंशज जैदी इमामों को यमन, दक्षिण अरब के शिया लोगों को मान्यता प्राप्त थी। बाद में सम्प्रदाय में एक और फूट हो गई। कुछ लोग मूसा-अज-काजिम को इमाम मानने लगे और कुछ लोग इस्माइल को। दसवें इमाम-अली-अन-नकी के वंशज ईरान में सब्जावर के शासक थे और हलाकू के आक्रमण के समय वे लोग भारत भाग आये जो अब नकवी कहलाते हैं।
अशना अशरिया विचार पद्धति पुन: दो भागों में विभक्त है- (i) अकबरी और (ii) उसूली।
"अकबरी" और "उसूली" विचार पद्धति- असना-अशरिया शिया लोगों की दो भिन्न विचारधारायें थीं- 'अकबरी' और 'उसूली'। अमीर अली के अनुसार अकबरी शिया कट्टर परम्परावादी थे और उसूली शिया लोग 'कुरान' के निर्वाचन में तर्क को सम्पूर्ण स्थान देते थे।
2. इस्माइलिया विचार पद्धति- इस्माइल के अनुयायी इस्माइलिया कहे जाते हैं और चूंकि वे सातवें इमाम थे, इसलिए उन्हें सातवें वाले भी कहते हैं। इस्मालिया के दसवें इमाम मिस्र के पहले फातमाई खलीफा थे। इस सम्प्रदाय में भारत के इस्माइलिया खोजा लोगों के अड़तालीसवें इमाम स्व0 आगा खांन और उन्चासवें इमाम शाहजादा करीम हैं।
शिया इस्माइली विचार पद्धति भी पुन: दो भागों में बांटी जाती है- (i) खोजा और (ii) बोहरा।
खोजा और बोहरा विचार पद्धति- खोजा या पूर्वी इस्माइली जिनका प्रतिनिधित्व 49वें इमाम आगा खां करते हैं। ये लोग दक्षिणी अफ्रीका, मध्य एशिया, प्रशा और सीरिया आदि में पाये जाते हैं।
बोहरा और पश्चिमी इस्माइली। इनको दाऊदी और सुलेमानी दो भागों में बांटा जाता है। बोहरा (Bohara) शब्द का मतलब व्यापारी होता है जिसमें हिंदू बोहरा, सुन्नी बोहरा और इस्माइली धर्म के बोहरा शामिल हैं। इस सम्प्रदाय के लोग, सीरिया, दक्षिणी अरब विशेषकर यमन और प्रशान्त की खाड़ी के पास पाये जाते हैं।
3. जैदिया विचार पद्धति- चौथे इमाम अली असगर के पुत्र जैद के वंशजों को दक्षिण अरब में यमन के शिया लोग जैदी इमामों के रूप में मानते हैं।
नोट: इस लेख में दी जानकारी चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के एलएलबी के तीसरे सेमेस्टर की यूनिक लॉ सीरीज से ली गई है।