इद्दत क्या है (Iddat)? इद्दत शुद्धता की वह अवधि है जिसका पालन करने के लिये, मुस्लिम स्त्री अपने पति की मृत्यु अथवा अपने विवाह-विच्छेद से हुये अपने विवाह-भंग के बाद बाध्य होती है। यह संयम की अवधि होती है।
विवाह-भंग हो जाने के बाद इसका पालन करना इसलिये अनिवार्य होता है कि इस अवधि के समाप्त हो जाने के बाद ही दूसरा विवाह वैध होता है। इद्दत का प्रमुख उद्देश्य निश्चित समय के लिये पत्नी के पुन: विवाह में अवरोध उतपन्न करना है।
मुस्लिम पत्नी के इद्दत काल में अधिकार और कर्त्तव्य (Rights and Duties of a Muslim Wife during the period of Iddat)
एक मुस्लिम पत्नी के इद्दत काल में निम्नलिखित अधिकार एवं कर्त्तव्य होते हैं-
1. भारत-पोषण का अधिकार (Right to Maintenance)- मुस्लिम पत्नी इद्दत काल में अपने भरण-पोषण का अधिकार रखती है और उसे अपने पति के घर में रहने का अधिकार होता है। यदि असका पति मर जाता है तो उसकी सम्पत्ति से भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है।
2. मेहर का अधिकार (Right to Mehar)- इद्दत काल में मुस्लिम पत्नी को मुवज्जल मेहर (Deferred Dower) तुरन्त देय हो जाता है और वह अपने पति को स्मपत्ति से अपना मेहर वसूल कर सकती है।
3. विवाह पर प्रतिबन्ध (Bar to Marriage)- इद्दत काल में स्त्री किसी पुरुष से विवाह नहीं कर सकती क्योंकि इद्दत काल में किया गया विवाह अवैध होता है। यह निषेध इद्दत की अवधि बीत जाने के बाद ही दूर होता है।
4. उत्तराधिकार का अधिकार (Right to Maintenance)- यदि इद्दत की अवधि का पालन करते समय किसी पक्ष की मौत हो जाये और मृत्यु से पहले तलाक अपरिवर्तनीय न हो गया हो तो पति-पत्नी जैसे भी स्थिति हो उसे उत्तराधिकारी प्राप्त करने का अधिकार हो जाता है। यदि पत्नी को तलाक मृत्यु रोग में दिया गया हो और तलाक के अपरिवर्तनीय होने से पहले ही पति की मृत्यु हो जाये तो पत्नी उत्तराधिकार पाने की अधिकारी हो जाती है। परन्तु शर्त यह है कि यह तलाक पत्नी की रजामन्दी से न किया गया हो।
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इद्दत के दौरान स्त्री के कर्त्तव्य (Duties of Women during Iddat)
मुस्लिम स्त्री का यह कर्त्तव्य है कि जब तक इद्दत की अवधि समाप्त न हो किसी पुरुष से विवाह न करें।
जस्टिस महमूद के अनुसार, इद्दत वह अवधि है जिसकी समाप्ति के बाद दूसरा विवाह वैध होता है। यह ऐसी अवधि है जिसकी समाप्ति के पूर्व किसी ऐसी स्त्री का पुन: विवाह वर्जित होता है जिसका कि पहले वाला विवाह सम्बन्ध समाप्त हो चुका है। वास्तव में यह एक ऐसा समय है जिसमें किसी स्त्री की शुद्धता की जांच के लिए प्रतीक्षा की जाती है।
भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में इद्दत की अवधि भिन्न-भिन्न होती है, जैसे-
(i) किसी स्त्री के पति की मृत्यु होने पर 4 महीने 10 दिन।
(ii) यदि स्त्री गर्भवती हो तो जब तक सन्तान उत्पन्न न हो।
(iii) यदि सन्तानोत्पत्ति या गर्भपानत विधवा होने के बाद 4 महीने 10 दिन के पूर्व ही हो जाये तो जितना समय 4 महीने 10 दिन में बाकी रह जायेगा।
(iv) तलाक द्वारा विवाह-विच्छेद (Dissolve) होने पर 3 महीने या लगातार तीन मासिक धर्म।
(v) जहां स्त्री-पुरुष का विवाह अमान्य तरीके से हुआ हो और पति ने विवाह के बाद समागम (Consumation) न किया हो, वहां विच्छेद के बाद इद्दत की आवश्यकता नहीं होती।