Ambedkar Jayanti 2024: बचपन में ही अम्बेडकर को भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा। कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, वह भारतीय इतिहास में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक बन गए। उन्होंने निम्न तबके और वंचित समुदायों के लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए न केवल उनका समर्थन किया बल्कि कई सामाजिक लड़ाईयां भी लड़ी।
आज उनके जन्म जयंती के अवसर पर हम डॉ बीआर अम्बेडकर से जुड़ी एक अनकही और अनसूनी कहानी अपने पाठकों को बता रहे हैं। ये कहानी है द्वितीय विश्व युद्ध की। ये कहानी है डॉ भीम राव अम्बेडकर की। इतिहास के विषय में रुचि रखने वाले और तमाम प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने की तैयारी कर रहे छात्रों को ये कहानी अवश्य पढ़नी चाहिये। यहां आप पढ़ेंगे कि कैसे अंबेडकर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत की पिछड़ी आबादी के लिए लड़ाई लड़ी। आइए जानें क्या है डॉ अम्बेडकर और द्वितीय विश्व युद्ध का कनेक्शन, विस्तार से-
मानवाधिकारों के समर्थक डॉ भीम राव अम्बेडकर ने द्वितीय विश्व युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नहीं, अम्बेडकर की भूमिका युद्ध के मैदान से कोसों दूर रही। समाज के वंचितों के अधिकारों और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति अंबेडकर की अटूट प्रतिबद्धता तब भी ध्यान आकर्षित करती थी, जब दुनिया युद्ध के विनाशकारी प्रभावों से जूझ रही थी। जी हां हम बात कर रहे हैं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान घटी घटना की। अनिश्चितता के इस दौर में भारत में राजनीतिक लोकतंत्र की नींव रखी गई। इसका सीधा असर श्रम अधिकारों के भविष्य पर भी पड़ा। हम उस समय की बात कर रहे हैं, जब दुनिया भर के कई नेताओं समेत लोकतंत्र के समर्थक और समाजवादी नेता अंबेडकर भी आश्चर्यचकित थे। द्वितीय विश्व युद्ध की भयावहता को लेकर पूरा विश्व चिंतित था। यह वह दौर था जब फासीवाद के खिलाफ लड़ाई विश्व सभ्यता के नाम पर छेड़ी गई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध, श्रम और श्रम कानून पर अम्बेडकर के विचार
दलित परिवार से होने के कारण समाज में दलित और वंचितों के हालात से अम्बेडकर भलीभांति परिचित थें। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अम्बेडकर ने वंचित समुदायों के जीवन में सुधार लाने और भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता दिखाई। आर्थिक चुनौतियों और युद्ध के दबाव के बावजूद, 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम विभाग के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए, उन्होंने श्रमिकों, खास तौर पर दलित जाति से संबंधित लोगों के अधिकारों और कल्याणकारी कार्यों का समर्थन किया।
वर्ष 1942 में, भारत छोड़ो आंदोलन और भारत की आजादी के लिए बातचीत के दौरान अम्बेडकर ने वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इसी योगदान ने भारत के राजनीतिक इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ आया। तमाम प्रकार की चुनौतियों के बावजूद, वह सामाजिक और राजनीतिक सुधारों का समर्थन करते रहें। वे निरंतर दलितों और वंचित समुदाय के लोगों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों पर अपने विचार व्यक्त करने पर जोर देते रहें।
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंबेडकर ने भारत में श्रम कानूनों को विकसित करने और औद्योगिक श्रमिकों के अधिकारों की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह देश के युद्ध प्रयासों के लिए जरूरी एवं महत्वपूर्ण था। उनके प्रयास स्वतंत्रता के बाद के श्रम नियमों को आकार देने और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए श्रम कल्याण पहल की स्थापना में सहायक थे।
श्रमिकों के प्रति अम्बेडकर की चिंता न केवल नीतिगत थी, बल्कि इसका संबंध तत्कालीन राजनीति पर प्रभाव से भी था। अगस्त 1936 में उन्होंने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) की स्थापना की। अम्बेडकर ने इसे एक श्रमिक पार्टी के रूप में स्थापित किया। 1937 के अपने कार्यक्रम में आईएलपी को "इस अर्थ में श्रमिक संगठन" के रूप में परिभाषित किया गया था कि इसका कार्यक्रम मुख्य रूप से श्रमिक वर्गों के कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए था। पार्टी के भूमिका को लेकर अम्बेडकर निश्चित थें।
कैसे हुआ इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का निर्माण?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज में जितेंद्र सूना द्वारा किए गए शोध (http://hdl.handle.net/10603/544237) (2021 में) के अनुसार, श्रमिक आंदोलन के दौरान इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) ने 1937 के चुनाव में बॉम्बे प्रेसीडेंसी और मध्य प्रांतों में उम्मीदवार उतारे। केवल पहले चुनाव में, इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी ने अंबेडकर के साथ एक उम्मीदवार के रूप में दस सीटें जीतकर कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया। आईएलपी को कामकाजी और मेहनती जनता से अधिक समर्थन मिल रहा था। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के समय कई राजनीतिक घटनाएं और समूह प्रभावित हुए थे और साथ ही कई आंतरिक विरोधाभास भी चल रहे थे। पार्टी के कई लोग युद्ध में शामिल हो गये, जिसके कारण अम्बेडकर पार्टी चलाना जारी नहीं रख सके।
द्वितीय विश्व युद्ध पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अम्बेडकर ने कहा कि यह युद्ध जनता का युद्ध है। यह युद्ध नाज़ी विश्व व्यवस्था और पुरानी व्यवस्था के विरुद्ध एक साथ युद्ध था और यह युद्ध स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांत पर आधारित एक नई विश्व व्यवस्था बनाने के लिए लड़ा जा रहा है। अम्बेडकर की श्रमिक सक्रियता 1942 तक चली। इसके बाद उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (एससीएफ) के नाम से एक और पार्टी का निर्माण किया।
द्वितीय विश्व युद्ध और अम्बेडकर के विचार
अम्बेडकर ने द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में कई बार खुल कर अपने विचार व्यक्ति किये। इस दौरान उन्होंने नाजीवाद के खिलाफ लड़ाई में मजदूरों की भूमिका पर अपनी बात कही। उन्होंने कहा था, नाजीवाद ने दुनिया को अपने अत्याचार और हिंसा से हिलाकर रख दिया था। अम्बेडकर ने 1 जनवरी, 1943 को ऑल इंडिया रेडियो के बॉम्बे स्टेशन पर इन सभी मुद्दों पर बात की थी। अम्बेडकर के अनुसार, श्रमिकों को पता है कि अगर यह नए नाजी आदेश के खिलाफ युद्ध है, तो यह पुराने आदेश के लिए युद्ध नहीं है। यह पुराने आदेश और नाजी आदेश दोनों पर युद्ध है। उन्होंने श्रमिकों को दिशा दिखाते हुए कहा था कि श्रमिक जानते हैं कि इस युद्ध की लागत का एकमात्र मुआवजा एक नई व्यवस्था की स्थापना है जिसमें स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा केवल नारे नहीं होंगे बल्कि जीवन के तथ्य बन जायेंगे।
अम्बेडकर के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध दो अलग-अलग शक्तियों के बीच युद्ध से कहीं अधिक है। यह नाज़ी दुनिया के ख़िलाफ़ युद्ध था और साथ ही पुरानी व्यवस्था के ख़िलाफ़ भी। उनके मुताबिक दोनों में अंतर करना होगा। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि युद्ध केवल नाज़ीवाद से लड़ रहा है, लेकिन यह उससे कहीं अधिक है। यह पुरानी व्यवस्था से लड़ रहा है, जहाँ कुछ लोगों के शासन को सरकार के रूप में उचित ठहराया जाता है और बहुमत पर अत्याचार थोपा जाता है।
संसदीय लोकतंत्र
श्रमिक वर्ग को युद्ध को एक नई विश्व व्यवस्था लाने के रूप में देखना चाहिए जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित होगी। हालांकि सरकार की वर्तमान प्रणाली यानी संसदीय लोकतंत्र में ये एक दूर का सपना है। अम्बेडकर ने लिखा है कि संसदीय लोकतंत्र सरकार का एक रूप है जिसमें लोगों का कार्य अपने मालिकों को वोट देना और उन्हें शासन करने के लिए छोड़ना हो गया है। श्रमिकों की राय में सरकार की ऐसी योजना नाम के साथ-साथ वास्तव में भी लोगों द्वारा सरकार का मजाक है।
बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1942 से 1946 तक श्रमिक सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल में श्रमिकों, औद्योगिक श्रमिकों आदि के लिए सुधारों, नीतियों और कल्याण योजनाओं की एक श्रृंखला लाई। 1943 में अम्बेडकर ने युद्ध चोटें (मुआवजा बीमा) विधेयक पेश किया। बालचंद्र मुंगेकर के अनुसार, विधेयक का उद्देश्य युद्ध में घायल हुए श्रमिकों को मुआवजा देना, नियोक्ताओं को ऐसे मुआवजे के लिए उत्तरदायी बनाना और नियोक्ताओं को उन पर देनदारियों के खिलाफ बीमा कराने के लिए मजबूर करना था।