15 अगस्त को आजादी के 75 महोत्सव मनाने के लिए देश भर में तैयारी की जा रही है। जिसमें की इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से अपने मन की बात के कार्यक्रम में घर-घर तिरंगा फेराहने का आग्रह किया है। देश को आजाद कराने के लिए बहुत से लोगों ने अपनी जान कुरबान की थी। तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक ऐसी ही भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताते हैं जो बहुत कम उम्र में ही देश के लिए शहीद हो गई थी।
कनकलता बरुआ जिन्हें बीरबाला के नाम से भी जाना जाता है वे एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और एआईएसएफ (अखिल भारतीय छात्र संघ) की नेता थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ मार्च का नेत्तृत्व किया जहां भारतीय शाही पुलिस ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी।
कनकलता बरुआ जीवनी
बरुआ का जन्म असम के अविभाजित दरांग जिले के बोरंगबाड़ी गांव में कृष्ण कांता और कर्णेश्वरी बरुआ की बेटी के रूप में हुआ था। उनके दादा घाना कांता बरुआ दरांग में एक प्रसिद्ध शिकारी थे। जबकि उनके पूर्वज अहोम राज्य के डोलकाशरिया बरुआ साम्राज्य से थे, जिन्होंने डोलकाशरिया की उपाधि को त्याग दिया था और बरुआ की उपाधि को बरकरार रखा।
कनकलता बरुआ जब केवल पांच वर्ष की थी तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी की और उनकी भी मृत्यु हो गई जब वह मात्र तेरह वर्ष की थी। कनकलता को कक्षा तीन तक पढ़ाई करने के बाद अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बरुआ 'मृत्यु वाहिनी' में शामिल हो गई, जिसमें असम के गोहपुर उप-मंडल के युवाओं के समूह शामिल थे। 20 सितंबर 1942 को बाहिनी ने फैसला किया कि वह स्थानीय पुलिस स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएगी। ऐसा करने के लिए बरुआ ने निहत्थे ग्रामीणों के मार्च का नेतृत्व किया।
थाना प्रभारी रेबती महान सोम के नेतृत्व में पुलिस ने जुलूस को अपनी योजना पर आगे बढ़ने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी। और पुलिस की परवाह न करते हुए कनकलता बरुआ मार्च को आगे बढ़ाती रही। इसी दौरान पुलिस ने मार्च पर फायरिंग करनी शुरु कर दी। जहां बरुआ की गोली लगने के कारण मृत्यु हो गई और जो झंडा अपने साथ ले जा रही थी, उसे मुकुंद काकोटी ने उठा लिया था, लेकिन मुकुंद को भी गोली मार दी गई थी। पुलिस कार्रवाई में बरुआ और काकोटी दोनों मारे गए।
कनकलता बरुआ की मृत्यु के बाद
• कनकलता बरुआ ने 17 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
• 1997 में कमीशन किए गए भारतीय तटरक्षक बल के फास्ट पेट्रोल वेसल ICGS कनक लता बरुआ का नाम बरुआ के नाम पर रखा गया है।
• 2011 में गौरीपुर में उनकी एक आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया गया था।
• उनकी कहानी को निर्देशक चंद्र मुदोई की फिल्म 'एपा फुलिल एपा ज़ोरिल' में बताया गया है। फिल्म का हिंदी संस्करण, जिसका शीर्षक पूरब की आवाज था को भी व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने के लिए जारी किया गया था।