भारत इस साल 15 अगस्त को आजादी के 75वां दिवस मनाने के तैयारी में जुट चुका है। देश भर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे अपने घर के बाहार राष्ट्रीय ध्वज यानि कि तिंरगा फेहराने का आग्रह किया है। साथ ही 2 अगस्त से 15 अगस्त तक अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल में तिरंगा लगाने के लिए भी विनती की है। पीएम मोदी ने अपने मन की बात में तिरंगा डिजाइन करने वाले पिंगली वैंकेया के बारे में देश को बताया और कहा की हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का लोगो को जोड़ने का का काम करता है।
वहीं देश की राजधानी दिल्ली में जगह-जगह तिरंगे लगाए जा चुके हैं। बताया जा रहा है कि आजादी के 75वां दिवस मनाने के उपलक्ष्य में दिल्ली में करिब 500 तिरंगे फराए जाएंगे।
तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको देश के एक ऐसे वीर के बारे में बताते हैं। जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिए। भारत ने अपनी आजादी पाने के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया था। जिसमें की बहुत से लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए अपनी जान देश के लिए कुरबान कर दी थी। लेकिन फिर भी बहुत से लोग इनके बारे में नहीं जानते हैं। आइए जानते हैं कौन थे गैरीमेला सत्यनारायण..?
गैरीमेला सत्यनारायण जीवनी
गैरीमेला सत्यनारायण का जन्म 14 जुलाई 1893 को आंध्र प्रदेश में स्थित नरसनपेटा में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता वेंकटनारसिम्हम और सुरम्मा थे। वह एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ कवि भी थे। जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अपने देशभक्ति गीतों और लेखन के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कई बार जेल भी भेजा था। आंध्र के लोग आज भी उनकी प्रतिभा से प्रेरित है।
कन्नेपल्ली नरसिम्हा राव एक दयालु वकील जिन्होंने गैरीमेला सत्यनारायण की पढ़ने और स्नातक (बीए) पूरा करने में मदद की। जिसके बाद उन्होंने गंजम जिले के कलेक्टर कार्यालय में क्लर्क और विजयनगरम के एक हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया। लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान और असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी।
उनकी पहचान उनके प्रसिद्ध गीत (हमें इस सफेद नियम की आवश्यकता नहीं है) से होती है जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आंध्र प्रदेश में लोकप्रिय था। गैरीमेला सत्यनारायण को अपने प्रसिद्ध गीत माकोद्दी टेलडोराटनामु लिखने के लिए 1922 में एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया था। जेल से छूटने के बाद उन्होंने गांवों में गीत गाकर आंदोलन में अपनी भागीदारी जारी की थी। जिसके लिए उन्हें फिर से ढाई साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी। कारावास के दौरान उनके पूरे परिवार (पत्नी, पिता और दादा) की मृत्यु हो गई। बता दें कि गैरीमेला सत्यनारायण भेदभाव के सख्त खिलाफ थे और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़े थे।
एक गरीब व्यक्ति होने के बावजूद गैरीमेला सत्यनारायण ने अपनी सारी संपत्ति राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए दान कर दी थी। जिसका इस्तेमाल स्वतंत्रता सेनानियों को मुफ्त भोजन प्रदान करने के लिए किया गया। कई साल गरीबी में बिताने के बाद 18 दिसंबर 1952 को उनका निधन हो गया।