भोगेश्वरी फुकानानी ब्रिटिश राज के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कार्यकर्ता थी, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी प्राणों की आहुती दी थी। फुकानानी का जन्म 1885 में असम के नागांव जिले में हुआ था। उनका विवाह भोगेश्वर फुकन नामक व्यक्ति से हुआ था जिनसे इन्हें दो बेटियां और छह बेटे थे।
60 वर्षीय शहीद भोगेश्वरी फुकानानी ने ऐसे समय में जब महिलाओं को परिवार की देखभाल करनी होती है, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। भले ही भोगेश्वरी आठ बच्चों की एक मां और एक गृहिणी थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम में फुकानानी
फुकानानी स्वतंत्रता आंदोलन के लिए असम के नागांव जिले के बरहामपुर, बबजिया और बरपुजिया क्षेत्रों में सक्रिय थी। जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए कार्यालय स्थापित करने में मदद की। 1930 में फुकानानी ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ सविनय अवज्ञा के रूप में एक अहिंसक मार्च में भाग लिया जिसमें की उन्हें धरना देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, फुकानानी अक्सर ब्रिटिश राज या ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक विरोध मार्च में भाग लेती थी। लेकिन 1942 में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बरहामपुर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कार्यालय जब्त कर लिया गया जिसे की बाद बंद कर दिया गया था। फुकानानी और उनके बेटों ने उस विरोध मार्च में भाग लिया और कांग्रेस कार्यालय को फिर से खोलने का एक सफल प्रयास किया। कार्यालय के फिर से खुलने का उत्सव 18 सितंबर 1942 को आयोजित किया गया था। जिस दौरान अंग्रेजों ने कांग्रेस कार्यालय को फिर से बंद करने और संभवत: इसे नष्ट करने के लिए एक बड़ी सेना भेजी।
फुकानानी का निधन
फुकानानी की मौत से जुड़ा किस्सा अक्सर सुनने को मिलते हैं। जिसमें की फुकानानी और रत्नमाला नाम का कोई व्यक्ति लोगों के एक बड़े समूह का नेतृत्व कर रहा था, जिसमें आसपास के कई गांव भी शामिल थे, और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज लिए हुए थे और वंदे मातरम और स्वतंत्रता के नारे लगा रहे थे। पुलिस ने बल के साथ समूह का विरोध किया और आगामी हाथापाई में "फिनिश" नामक एक ब्रिटिश सेना के कप्तान ने रत्नमाला से राष्ट्रीय ध्वज को पकड़ लिया, जो जमीन पर गिर गया। इसे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के रूप में देखते हुए, फुकानानी ने कप्तान को एक झंडे के डंडे से मारा। मार खाने के बाद कप्तान से वो अपमान सहन नहीं किया गया जिसके बाद उसने फुकानानी को गोली मार दी। गोली लगने के बाद फुकानानी ने अपना दम तोड़ दिया लेकिन अपने पीछे बहादुरी और देशभक्ति की विरासत छोड़ गई। फुकानानी की निधन 20 सितंबर 1942 को गोली लगने की वजह से हुआ था।
फुकानानी के निधन के बाद
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद उनके नाम पर एक अस्पताल और एक इनडोर स्टेडियम का नाम रखा गया। इस अस्पताल की स्थापना 1854 में असम के नागांव में एक अमेरिकी बैपटिस्ट मिशनरी माइल्स ब्रोंसोनिस द्वारा की गई थी और बाद में इसका नाम बदलकर भोगेश्वरी फुकानानी सिविल अस्पताल कर दिया गया। उनके नाम पर एक इंडोर स्टेडियम असम के गुवाहाटी में स्थित है।