India Sun Mission; ISRO Aditya L-1 Ready to Launch: इसरो चंद्रयान 3 और अन्य दो सफल मिशन के बाद अपने अगले बड़े मिशन की तैयारी में लग गया है। अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के तौर पर इसरो विश्व स्तर पर अपनी पहचान और काबिलियत दिखा रहा है। इस प्रकार इसरो अपनी उपलब्धियों में एक नई उपलब्धि जोड़ने के लिए तैयार है और अपनी इन उपलब्धियों से विश्व को हैरान कर है। इसी में आगे बढ़ते हुए इसरो अब अपने सूर्य मिशन की तैयारी कर रहा है। चंद्रमा के बाद इसरो का अगला कदम सूर्य है।
इसरो ने सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए आदित्य-एल1 की कुछ तस्वीरें साझा की है। ये भारत का पहला सूर्य मिशन है। इसके माध्यम से भारत सूर्य और अंतरिक्ष गतिविधियों का अध्ययन करेगा। इसरो ने आदित्य एल-1 मिशन को लेकर शेयर की फोटो पर लिखा - "सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला, आदित्य-एल1, प्रक्षेपण के लिए तैयार हो रही है। यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (यूआरएससी), बेंगलुरु में साकार किया गया उपग्रह एसडीएससी-एसएचएआर, श्रीहरिकोटा पहुंच गया है।"
बता दें कि इसरो द्वारा 'आदित्य एल 1' के लॉन्च डेट अभी तय नहीं है, जैसे ही इसरो लॉन्च की डेट फाइनल करेगा इससे संबंधित जानकारी आधिकारिक ट्विटर हैंडल द्वारा शेयर की जाएगी।
इसरो ने क्यों चुना 'आदित्य' नाम
इसरो का ये मिशन सूर्य और अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए बनाया गया है। इसलिए इसका नाम सूर्य के कोर के नाम पर आधारित करके 'आदित्य एल 1' रखा गया है। यहां एल 1 से अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 1 से है। आइए आपको इसके बारे में बताएं...
लैग्रेंज पॉइंट 1 क्या है?
2 पिंडो (बॉडी यानी सूर्य और पृथ्वी) ग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण प्रणाली के लिए, लैग्रेंज पॉइंट अंतरिक्ष की वह स्थिति है, जहां एक छोटी सी वस्तु रखी जाती है। आदित्या एल1 को लॉन्च करने के बाद इसी पॉइंट में रखा जाएगा। ताकि वह सूर्य का अध्ययन आसानी से कर सकें। ये पॉइंट पृथ्वी से 1.5 मिलियन दूर है। इसका उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा ईंधन खपत को कम करने के साथ इस स्थान पर बने रहने के लिए किया जाता है। गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के दौरान वस्तु को उनके साथ चलने के लिए जिस सेंट्रिपेटल बल की आवश्यकता होती है ये उसके के बराबर होता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पॉइंट का नाम लैग्रेंज कैसे पड़ा? तो बता दें कि इस पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ -लुई लैग्रेंज को सम्मानित करने के लिए रखा गया है।
आदित्य एल1 का विवरण
- ये उपग्रह सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष बीआरडी वेधशाला वर्ग का भारतीय सौर मिशन है।
- इससे सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज पॉइंट 1 यानी एल 1 के चारों ओर प्रभामंडल में स्थापित करने की इसरो की योजना है।
- एल 1 पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी की दूर होगा।
- एल 1 पॉइंट के प्रभामंडल कक्षा में उपग्रह बिना किसी गुप्त घटना और ग्रहण से बाधित हुए लगातार सूर्य का निरीक्षण करेगा।
- इसके माध्यम से सौर गतिविधियों को लगातार देखने में अधिक लाभ मिलेगा।
- आदित्य एल में सूर्य के निरीक्षण के लिए 7 पेलोड जाएंगे।
- ये पेलोड अंतरिक्ष यान को विद्युत चुम्बकीय और कण डिटेक्टरी का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने में सहायता करेंगे।
- 7 पेलोड में से 4 पेलोड सीधे तौर पर सूर्य का निरीक्षण करेंगे तो अन्य 3 पेलोड लैग्रेंज पॉइंट एल 1 पर कणों और In-Situ उपकरण वातावरण का निरीक्षण करने का काम करेंगे।
क्या है सूर्य मिशन का उद्देश्य
आदित्य एल 1 मिशन का उद्देश्य सौर ऊपरी वायुमंडल क्रोमोस्फीयर और कोरोना की गतिशीलता का अध्ययन करना है।
आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान के माध्यम से सूट कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर एक्टिविटी के साथ उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष के मौसम की गतिशीलता, कणों का प्रसार, कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान, कोरोनल मास इजेक्शन का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति, प्लाज्मा वातावरण का निरीक्षण और अन्य समस्याओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा।
सौर मिशन का महत्व
सूर्य हमारे सौर मंडल के लिए ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है, जो पृथ्वी से लगभग 150 मिलियन किलोमीटर दूर है। सूर्य हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से भरा एक चमकता गोला है। लेकिन सूर्य का गुरुत्वाकर्षण सौर मंडल की सभी वस्तुओं को एक दूसरे के साथ बांधे रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सूर्य का मध्य जिसे कोर कहा जाता है और उसके नाम के आधार पर ही भारत ने अपने अंतरिक्ष यान का नाम आदित्य रखा है, उसका तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतने गर्म सूर्य की दृश्य सतह, जिसे प्रकाशमंडल कहा जाता है, ठंडी होती है। जी हां ये सच है। प्रकाशमंडल का तापमान लगभग 5,500 डिग्री सेल्सियस होता है।
सूर्य विकिरण, गर्मी के कणों के प्रवाह और चुंबकीय क्षेत्र से पृथ्वी को प्रभावित करता है। कणों के इस प्रवाह को हम सौर पवन के नाम से जानते हैं। जिसका अध्ययन करने के लिए इसरो ने सौर मिशन की शुरुआत की है। इतना ही नहीं इस मिशन के माध्यम से कोरोनल मास इजेक्शन जैसी होने वाली अन्य विस्फोटक सौर घटनाओं से अंतरिक्ष की हवा और अंतरिक्ष प्रकृति कैसे प्रभावित होती है, इसकी जानकारी भी प्राप्त की जाएगी। सूर्य कई विस्फोटक घटनाओं को दिखाता है और इन विस्फोटों से भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। जो यदि पृथ्वी की ओर हुई तो यह पृथ्वी के निकट वातावरण में विभिन्न प्रकार की परेशानियां पैदा कर सकती है।
जैसा की आप जानते हैं कि अंतरिक्ष में एक आकाशगंगा नहीं है, वहां कई आकाशगंगा है, जिनके बारे में हम नहीं जानते हैं। इस सौर मिशन के माध्यम से सूर्य के अध्ययन के साथ अपनी आकाशगंगा और विभिन्न आकाशगंगाओं के तारों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार ये सौर मिशन भारत के लिए महत्वपूर्ण है।