Explained: विदेश में भारतवंशियों के पीएम बनने की कहानी

भारत की मौजूदा पीढ़ी को संभव है कि छेदी जगन के बारे में पर्याप्त जानकारी न हो। वे 1961 में सुदूर कैरिबियाई टापू देश गयाना के प्रधानमत्री बन गए थे। उन्होंने जो सिलसिला शुरू किया था‚ वह आज भी जारी है।

Explained: ब्रिटेन की सत्ता की बागडोर भारतवंशी ऋषि सुनक के हाथ में आने की खुशी सिर्फ भारत के लोगों में ही नहीं है‚ बल्कि भारत से सात समुद्र पार गिरमिटिया देशों के भारवंशियों में भी है। लगभग डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेज बड़ी संख्या में भारतीयों को बंधुआ (गिरमिटिया) मजदूर बनाकर अफ्रीका देश मॉरिशस‚ कैरेबियन देश त्रिनिड़ाड़ एंड टोबागो‚ सूरीनाम‚ गुयाना‚ सेंट विसेंट‚ जमैका‚ दक्षिण अफ्रीका और सुदूर देश फिजी जैसे आइलैंड़ पर लाए थे। लेकिन मजदूर के तौर पर इन देशों में आए भारतवंशी मजदूरों की संतानों ने समय के साथ अंग्रेजों की गुलामी से न सिर्फ इन देशों को आजाद कराया‚ बल्कि यहां सत्ता के शीर्ष तक भी पहुंचे। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद सुशोभित किए। इस कड़ी की शुरु आत हम मॉरिशस करते हैं। मॉरिशस को छोटा भारत भी कहा जाता है। 12 मार्च 1968 को मॉरिशस को अग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली जिसके बाद से अब तक मॉरिशस की सत्ता की बागडोर भारतवंशियों के हाथ में ही है।

Explained: विदेश में भरतवंशियों के पीएम बनने की कहानी

मॉरिशस के प्रथम प्रधानमंत्री भारतवंशी सर शिवसागर रामगुलाम हुए जिन्हें मॉरिशस का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। इनके पूर्वज मोहित रामगुलाम बिहार से थे। बाद में भारतवंशी अनिरुद्ध जगन्नाथ मॉरिशस में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बने। इनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के बलिया से मॉरिशस बतौर गिरमिटिया मजदूर गए थे। मॉरिशस में सर शिवसागर रामगुलाम की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ेगा निवनचंद्र रामगुलाम ने जो प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं और लेबर पार्टी के प्रमुख हैं। पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया परविंदर जगन्नाथ ने और वर्तमान में वे मॉरिशस के प्रधानमंत्री हैं। इनकी पार्टी का नाम मिलिटेंट समाजवादी आंदोलन है। मॉरिशस के वर्तमान राष्ट्रपति भी भारतवंशी हैं‚ जिनका नाम पृथ्वीराज सिंह रुपन है।

कह सकते हैं कि मॉरिशस दुनिया का ऐसा देश है‚ जहां की सत्ता इसकी आजादी के बाद से हमेशा भारतवंशियों के हाथ में रही है। इसी तरह कैरेबियन देश त्रिनिड़ाड़ एंड टोबागो की बात करें तो वहां पांचवे और छठे प्रधानमत्री भारतवंशी रह चुके हैं। बासदेव पांडे त्रिनिड़ाड़ एंड टोबागो के पांचवे प्रधानमंत्री रह चुके हैं‚ जिनका कार्यकाल 1995 से 2001 तक रहा। बासदेव पांडे के पूर्वज उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से थे। इनके बाद वहां की छठी प्रधानमंत्री भारतवंशी कमला प्रसाद विसेसर रह चुकी हैं। कमला प्रसाद का प्रधानमंत्री कार्यकाल 2010 से 2015 तक रहा। वर्तमान में वह त्रिनिड़ाड़ एंड टोबागो की संसद में विपक्ष की नेता हैं। इनकी पार्टी का नाम यूनाइटेड नेशन कांग्रेस है। कमला प्रसाद के पूर्वज बिहार राज्य के भोजपुर जिले से थे

वर्तमान में दक्षिण अफ्रीकी देश सूरीनाम के राष्ट्रपति भी भारतवंशी हैं‚ जिनका नाम चंद्रिका प्रसाद संतोखी हैं‚ जिनके पूर्वज बतौर गिरमिटिया मजदूर तब के डच गयाना गए थे जो अब सूरीनाम के नाम से जाना जाता है। इनकी पार्टी का नाम विहिप है। फिजी के पूर्व प्रधानमंत्री महेंद्र पाल चौधरी भी भारतवंशी थे जो फिजी लेबर पार्टी के नेता हैं। 19 मई 1999 में प्रथम भारतवंशी फिजी के प्रधानमंत्री बने थे लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण एक साल बाद ही सरकार गिर गई और इन्हें प्रधानमंत्री से हटना पड़ा। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के अलावा भी सभी गिरमिटिया देशों में भारतवंशी सरकारों में और सरकारों के प्रमुख संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों और कई विभागों के मंत्री हैं।

छेदी जगन से ऋषि सुनक
भारत की मौजूदा पीढ़ी को संभव है कि छेदी जगन के बारे में पर्याप्त जानकारी न हो। वे 1961 में सुदूर कैरिबियाई टापू देश गयाना के प्रधानमत्री बन गए थे। उन्होंने जो सिलसिला शुरू किया था‚ वह आज भी जारी है। अब ग्रेट ब्रिटेन में ऋषि सुनक प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए हैं। वे भारतवंशी भी हैं और हिन्दू भी हैं। सुनक भारत की सबसे प्रतिष्ठित आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस के फाउंडर चेयरमैन एन. नारायणमूर्ति के दामाद हैं। नारायणमूर्ति की पुत्री अक्षता तथा सुनक स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सहपाठी थे। सुनक के पुरखे वैसे तो मूल निवासी पंजाब से हैं‚ लेकिन पूर्वी अफ्रीकी देश केन्या में बस गए थे‚ करीब 100 साल पहले। उनके पिता यशवीर का जन्म केन्या में और मां का जन्म तंजानिया में हुआ था। हिन्दी और पंजाबी भी जानने वाले सुनक का परिवार 1960 के दशक में ब्रिटेन शिफ्ट कर गया था। गोरे शासक 1824 से लेकर 1901 के बीच करीब 32 हजार मजदूरों को भारत के विभिन्न राज्यों से केन्या‚ तंजानिया‚ युंगाड़ा मारीशस‚ सूरीनाम‚ फिजी आदि देशों में लेकर गए थे। इन्हें रेल की पटरियों को बिछाने के लिए और गन्ने की खेती के लिए ले जाया गया था। इनमें पंजाब के और बिहार‚ उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक मजदूर थे। पूर्वी अफ्रीका का सारा रेल नेटवर्क पंजाब के लोगों ने ही तैयार किया था। इन्होंने बेहद कठिन हालत में रेल नेटवर्क तैयार किया। उस दौर में गुजराती भी केन्या में आने लगे थे पर वे वहां पहुंचे बिजनेस करने के इरादे से‚ न कि मजदूरी की इच्छा से। रेलवे नेटवर्क का काम पूरा होने के बाद अधिकतर पंजाबी श्रमिक वहीं बस गए। हालांकि‚ उनमें से कुछ आगे चलकर बेहतर भविष्य की चाह में ब्रिटेन‚ कनाडा‚ अमेरिका आदि देशों में भी जाकर बसते रहे। सुनक का परिवार ब्रिटेन चला गया था।

ब्रिटेन के हितों का ध्यान रखेंगे
बेहद सौम्य और मृदुभाषी सुनक के ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद यह याद रखा जाए कि वे अपने देश ब्रिटेन के हितों का सबसे पहले ख्याल रखेंगे। उन्हें यह करना भी चाहिए। हां‚ लेकिन‚ उनका भारत से भावनात्मक संबंध तो बना ही रहेगा। जब सारा भारत दीपावली मना रहा था तब सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने का समाचार आते ही भारतीयों की दीपावली की खुशी दोगुनी बढ़ गई। इस दौरान सोशल मीडिया पर कुछ ज्ञानी कहने लगे कि वे भारत के हक में तो कुछ नहीं करेंगे। अब उनसे पूछा जाना चाहिए कि भारत सुनक से अतिरिक्त अपेक्षा क्यों करेगाॽ

कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति हैं। उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपना उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था। कमला हैरिस का परिवार मूलतः भारतीय है पर उपराष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कभी भी इस तरह का कोई संकेत नहीं दिया जिससे लगे कि वह अपने देश के भारत से संबंध प्रगाढ़ करने की बाबत अतिरिक्त प्रयास कर रही हैं। तो बात यह है कि भारतवंशी भारत को प्रेम करते हैं‚ लेकिन उनकी पहली निष्ठा तो उसी देश को लेकर रहेगी जहां पर वे बसे हुए हैं। भारत भी यही चाहता है।

खैर‚ भारतीयों का राजनीति करने में कोई जवाब नहीं। ये देश से बाहर जाने पर भी सियासत के मैदान में मौका मिलते ही कूद पड़ते हैं। वहां पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ही देते हैं। संसद का चुनाव कनाडा का हो‚ ब्रिटेन का हो या फिर किसी अन्य लोकतांत्रिक देश का‚ भारतीय उसमें अपना असर दिखाने से पीछे नहीं रहते। उन्हें सिर्फ वोटर बने रहना नामंजूर है। वे चुनाव भी लड़ते हैं। हिन्दुस्तानी सात समंदर पार मात्र कमाने-खाने के लिए ही नहीं जाते। वहां पर जाकर हिन्दुस्तानी सत्ता पर काबिज होने की भी भरसक कोशिश करते हैं। अगर यह बात न होती तो लगभग 22 देशों की पाÌलयामेंट में 182 भारतवंशी सांसद न होते।

भारत से पहुंचे मजदूर
दरअसल‚ ब्रिटेन को 1840 के दशक में गुलामी प्रथा का अंत होने के बाद श्रमिकों की जरूरत पड़ी जिसके बाद भारत से मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। बेशक‚ भारत के बाहर जाने वाला प्रत्येक भारतीय अपने साथ एक छोटा भारत ले कर जाता था। उनका साथी था गीता‚ रामचरित मानस‚ हनुमान चालीसा आदि। इसी तरह भारतवंशी अपने साथ तुलसी रामायण‚ भाषा‚ खान पान एवं परंपराओं के रूप में भारत की संस्कृति ले कर गए थे। उन्हीं मजदूरों की संतानों के कारण फीजी‚ त्रिनिडाड‚ गयाना‚ सूरीनाम और मारीशस लघु भारत के रूप में उभरे। मजदूरों से गन्ने के खेतों में काम करवाया जाता था। इन श्रमिकों ने कमाल की जीवटता दिखाई और घोर परेशानियों से दो-चार होते हुए अपने लिए जगह बनाई। इन भारतीय श्रमिकों ने लंबी समुद्री यात्राओं के दौरान अनेक कठिनाइयों को झेला। अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर जाकर बसने के बावजूद अपने संस्कारों को कभी छोड़ा नहीं। इनके लिए अपना धर्म‚ भाषा और संस्कार बेहद खास थे। ऋषि सुनक का हालांकि जन्म ब्रिटेन में हुआ पर वे एक संस्कारी हिन्दू हैं। अपने परिवार और हिन्दू धर्म के संस्कारों से पूरी तरह जुड़े हुए हैं।

हां‚ ये अप्रवासी मजदूर उन देशों के मूल्यों को भी आत्मसात करते रहे जिधर ये बसे। ये सात समंदर पार जाकर अपनी जातियों को भूल गए यानी जिधर भी बसे वहां पर ये जाति के कोढ़ से मुक्त हो गए। अपनी धरती से दूर जाकर भारतवंशी राजनीति तक ही सीमित नहीं रहे। इन्होंने खेलों में भी बुलंदियों को छूआ। अगर क्रिकेट की ही बात करें तो सोनी रामाधीन की जादुई स्पिन गेंदबाजी के बाद कैरिबियाई देशों में रहने वाले नौजवानों को कहीं न कहीं लगा कि वे खेलों में अपनी प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ सकते हैं। इसी के चलते रोहन कन्हाई‚ एल्विन कालीचरण‚ इंसान अली‚ शिव नारायण चंद्रपाल‚ राम नरेश सरवान आदि कितने ही भारतीय मूल के खिलाड़ी वेस्ट इंडीज से खेले और कइयों ने इसकी कप्तानी भी की। रामाधीन से पहले यह कल्पना से परे की स्थिति थी। वे उस महान वेस्टइंडीज टीम का अहम हिस्सा थे जिसमें वारेल‚ विक्स और वाल्कट यानी थ्री डब्ल्यू थे। उस टीम को महानतम क्रिकेट टीमों में से माना जाता है। रामाधीन से हटकर बात करें तो फीजी के भारतवंशी गोल्फर विजय सिंह दुनिया के चोटी के गोल्फ खिलाड़ी बने और फीजी के ही एक गिरमिटिया परिवार का नौजवान विकास धुरासू फ्रांस की फुटबॉल टीम से फीफा विश्व कप में खेला।

भारतवंशियों के मॉड़ल
भारत के बाहर बसे संभवतः सबसे प्रख्यात सिख खिलाड़ी केन्या के अवतार सिंह सोहल तारी कहते हैं‚ 'सोनी रामाधीन अफ्रीका तक में बसे भारतवंशी खिलाडि़यों के लिए रोल मॉड़ल थे।' तारी ने 1960‚ 1964‚ 1968 और 1972 के ओलंपिक खेलों के हॉकी मुकाबलों में केन्या की नुमाइंदगी की है। फुल बैक की पोजीशन पर खेलने वाले तारी तीन ओलपिंक खेलों में केन्या टीम के कप्तान थे। वे क्रिकेट के भी खिलाड़ी रहे हैं। खैर‚ ऋषि सुनक का ग्रेट ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनना भारत और भारतवंशियों के लिए गर्व की बात है। भारत से बाहर बसा हरेक भारतवंशी भारत का ब्रांड एंबेसेडर है। इनकी सफलता से भारत का गर्व होना लाजिमी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जो सिलसिला छेदी जगन ने शुरू किया और जिसे मॉरीशस में शिवसागर रामगुलाम से लेकर अनिरुद्ध जगन्नाथ‚ त्रिनिड़ाड़ एंड़ टोबैगो में वासुदेव पांडे‚ सूरीनाम में चंद्रिका प्रसाद संतोखी‚ अमेरिका में कमला हैरिस और ग्रेट ब्रिटेन में सुनक ने आगे बढ़ाया‚ वह निरंतर चलता रहेगा। भारतवंशी भारत से बाहर भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनते ही रहेंगे।

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English summary
The present generation of India may not know enough about Chhedi Jagan. In 1961, he became the prime minister of the remote Caribbean island country of Guyana. What he started, continues to this day. Now Rishi Sunak has been elected Prime Minister in Great Britain. He is of Indian descent and also a Hindu. Sunak is the founder chairman of Infosys, one of India's most prestigious IT companies. Narayana Murthy's son-in-law. Narayana Murthy's daughter Akshata and Sunak were classmates at Stanford University.
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