बाल गंगाधर तिलक का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अतुलनीय है। उन्होंने भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया, स्वराज्य और स्वदेशी का प्रचार किया, और जन आंदोलन के माध्यम से लोगों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया। तिलक की संघर्षशीलता, उनकी नेतृत्व क्षमता और उनकी देशभक्ति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। उनके योगदान के बिना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अधूरा है और उनका नाम भारतीय इतिहास में सदैव सम्मान के साथ लिया जाएगा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिखली गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम केशव गंगाधर तिलक था। वे एक ब्राह्मण परिवार से थे और उनके पिता गंगाधर तिलक एक सम्मानित शिक्षक थे। तिलक ने पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और फिर कानून की पढ़ाई की। उनकी शिक्षा ने उनके विचारों और सिद्धांतों को मजबूत आधार दिया।
राष्ट्रीय चेतना का जागरण
तिलक ने अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से भारतीय जनता में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। उन्होंने 'मराठा' और 'केसरी' नामक समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू किया, जिनके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूकता फैलाई। तिलक के लेखों ने जनता में स्वतंत्रता के प्रति उत्साह और जोश पैदा किया।
स्वराज्य और स्वदेशी आंदोलन
तिलक ने 'स्वराज्य' का नारा दिया, जिसका अर्थ है 'स्व-शासन'। उन्होंने भारतीय जनता को यह विश्वास दिलाया कि वे स्वयं अपने देश का शासन संभाल सकते हैं। तिलक ने स्वदेशी आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया, जिसमें भारतीय वस्तुओं के उपयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर जोर दिया गया। उनका मानना था कि आर्थिक स्वावलंबन के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है।
गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव
तिलक ने गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की, ताकि जनता में एकता और सामूहिकता का विकास हो सके। गणेश उत्सव को उन्होंने सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाना शुरू किया, जिससे लोग एकजुट होकर राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा कर सकें। शिवाजी उत्सव के माध्यम से उन्होंने मराठा योद्धा शिवाजी महाराज की वीरता और राष्ट्रीयता को लोगों के सामने प्रस्तुत किया। इन उत्सवों ने राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया और लोगों में स्वतंत्रता की भावना को मजबूत किया।
कांग्रेस में भूमिका
तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। उन्होंने कांग्रेस के भीतर गरम दल का नेतृत्व किया, जो तत्काल स्वतंत्रता की मांग करता था। 1907 के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस का विभाजन हो गया और तिलक गरम दल के प्रमुख नेता बने। उन्होंने नरम दल की नीतियों का विरोध किया और जनता को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशक्त संघर्ष के लिए प्रेरित किया।
लोकमान्य तिलक
तिलक को 'लोकमान्य' की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है 'लोगों द्वारा सम्मानित'। यह उपाधि उन्हें उनके अद्वितीय नेतृत्व और देशभक्ति के कारण मिली। तिलक ने जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। उनका नारा 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा' आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में गूंजता है।
होमरूल आंदोलन
तिलक ने होमरूल आंदोलन की शुरुआत की, जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन से स्वशासन की मांग की। इस आंदोलन में उन्होंने एनी बेसेंट के साथ मिलकर काम किया और देशभर में जनता को जागरूक किया। होमरूल आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान की। इस आंदोलन के कारण ही जनता में स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्प और उत्साह का संचार हुआ।
जेल यात्रा और लेखन
तिलक को ब्रिटिश सरकार ने कई बार जेल में डाला। 1897 में उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया और उन्हें मांडले की जेल में छह साल की सजा सुनाई गई। जेल में रहते हुए उन्होंने 'गीता रहस्य' नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने भगवद गीता के सिद्धांतों को स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में प्रस्तुत किया। उनकी यह पुस्तक आज भी भारतीय दर्शन और स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
अंतिम समय और विरासत
बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ। उनके निधन के बाद भी उनके विचार और सिद्धांत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहे। तिलक ने भारतीय जनता को यह विश्वास दिलाया कि स्वतंत्रता संभव है और इसके लिए संघर्ष करना आवश्यक है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है।