International Women's Day Speech Essay Article Idea: सामाजिक विकास के लिए पुरुषों के योगदान के साथ ही महिलाओं का योगदान बेहद महत्वपूर्ण होता है। हालांकि आज ये कहने में भी हमे जरा भी संकोच नहीं होनी चाहिए कि देश के विकास के लिए भी महिलाओं का योगदान उतना ही जरूरी है, जितना की पुरुषों का। वैसे तो हर दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए, लेकिन यूनाइटेड नेशन से मंजूरी मिलने के बाद हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिलाओं की उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पूरे विश्व में धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 की थीम "Invest in Women: Accelerate Progress" रखी गई है। इस थीम का अर्थ है, "'महिलाओं में निवेश करें: प्रगति में तेजी लाएं'। इसका उद्देश्य आर्थिक अशक्तता से निपटना है।।" महिला दिवस पर स्कूल कॉलेज आदि में भाषण, निबंध और लेख लेखन जैसी कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। ऐसे में अगर आपको भी महिला दिवस पर भाषण, महिला दिवस पर निबंध और महिला दिवस पर लेख लिखना है, तो करियर इंडिया हिंदी आपके लिए महिला दिवस पर भाषण निबंध लेख लिखने का सैम्पल लेकर आया है। जिसकी मदद से आप आसानी से महिला दिवस पर भाषण निबंध लेख लिख सकते हैं। लेकिन इससे पहले आइए जानते हैं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस 2024
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस को विश्व के लगभग 27 अलग-अलग देशों में त्योहार की तरह मनाया जाता है। इस दिन को विभिन्न देशों में रैलियों, सम्मेलनों और परेड जैसे आयोजनों के माध्यम से भी मनाया जाता है। यूं तो विश्व में महिला दिवस मनाये जाने की शुरुआत 1906 में हुई थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने 1975 से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाये जाने का निर्णय लिया। वहीं वर्ष 1996 से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लिए एक आधिकारिक थीम को शामिल किया गया, ताकि महिलाओं के सम्मान में इस दिन का आयोजन बेहतर तरीकों से मनाया जा सके।
इंटरनेशनल बुमेन्स डे फैक्ट्स
- वैश्विक स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कार्यों में महिलाओं की भागीदारी केवल 22 प्रतिशत हैं।
- शहरी उद्योगों में एआई प्रणालियों के वैश्विक विश्लेषण में पाया गया कि 44.2 प्रतिशत लिंग पूर्वाग्रह प्रदर्शित करते हैं।
- 125 देशों की महिला पत्रकारों के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 73 प्रतिशत महिलाओं को अपने काम के दौरान ऑनलाइन हिंसा का सामना करड़ा पड़ा था।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2024 थीम क्या है?
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए इस वर्ष यानि अंतराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 का थीम "महिलाओं में निवेश करें: प्रगति में तेजी लाएं" रखा गया है। इसका उद्देश्य आर्थिक अशक्तता से निपटना है। अपने पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा करने के लिए वार्षिक मंच का भी आयोजन करता है। इन चर्चायों में मुख्य वक्ता, राजनीतिक एवं बिजनेस लीडर्स एक साथ एक मंच पर आते हैं। इस वर्ष वार्षिक चर्चा कृषि में महिलाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और निजी क्षेत्र महिलाओं को कैसे सशक्त बना सकता है, इस पर चर्चा करेगा। महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने के लिए हम सबको एक होना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस स्पीच एस्से आईडिया
8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, ऐसे में आप सभी को महिला दिवस पर भाषण और निबंध की तैयारी समय रहते करनी होगी। इसलिए आपके काम को आसान बनाने के लिए, हम महिला दिवस पर प्रेरणादायक भाषण और निबंध का ड्राफ्ट लेकर आए हैं, जिसकी मदद से आप आसानी से महिला दिवस पर निबंध भाषण लिख सकते हैं।
International Women's Day 2024 Speech Essay Article Idea Sample In Hindi
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निबंध कैसे लिखें ड्राफ्ट आइडिया
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। महिलाओं के सम्मान और उनके अतुलनीय योगदान के लिए इस दिन को चिन्हित किया गया है। महिला दिवस पर दुनियाभर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए स्कूल और कॉलेज में प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। यदि यह कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाएं तो आज के दौर में छात्र महिला दिवस के महत्व को नहीं समझ पाएंगे। ऐसे में यदि हमें महिला दिवस पर निबंध लिखना है तो सबसे पहले महिलाओं के महत्व को समझना होगा। क्योंकि महिलाओं के बिना इस सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता, और ना ही देश और समाज का विकास हो सकता है। महिला दिवस पर निबंध में इतिहास, महत्व और निष्कर्ष को शामिल करना आवश्यक है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निबंध (Essay On Women's Day)
महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय बनाने का विचार क्लारा ज़ेटकिन नामक महिला की देन है। सन 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में क्लारा ज़ेटकिन ने इस विचार का सुझाव दिया। वहां 17 देशों की 100 महिलाएं थीं और वह सब सर्वसम्मति से उसके सुझाव पर सहमत हुए। उसके बाद, पहली बार 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में महिला दिवस मनाया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक बनाने के लिए 1975 में 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। संयुक्त राष्ट्र ने 1996 में इस दिन को नई थीम के साथ मनाया, पहली महिला दिवस की थीम "अतीत का जश्न, भविष्य के लिए योजना बनाना" थी।
महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने और किसी प्रकार के लैंगिक भेदभाव का शिकार होने से बचाने के लिए लंबे समय से प्रयास जारी है। लेकिन अभी अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम "महिलाओं में निवेश करें: प्रगति में तेजी लाएं" है, जिसके तहत पूरे साल लैंगिक संतुलन व समानता के कार्यक्रम चलाए जाएँगे ताकि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति को और बेहतर बनाया जा सके। सही मायने में महिलाओं की बेहतरी के लिए और लैंगिक समानता का संतुलन बनाए रखने के लिए सिर्फ क़ानून बनाना काफी नहीं बल्कि उन सभी पहलुओं व मुद्दों की निशानदेही करनी जरूरी है। इन पर अभी भी बहुत काम करने की आवश्यकता है। हमारे देश में महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर कैसी मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं और उन पर क्या किया जा सकता है, इस पर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है।
पोषण- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2020-21 के अनुसार भारत में मां बनने की उम्र वाली 53 फीसदी महिलाऐं खून की कमी यानी एनीमिया की शिकार हैं। कुछ ही पहले ऐडू स्पोर्ट्स द्वारा किए गए 8वें सालाना हेल्थ एण्ड फिटनेस सर्वे और कुछ अन्य स्कूल सर्वे में पाया गया कि लड़कों की तुलना में लड़कियों का बीएमआई असंतुलित होता है। लड़कियों की शारीरिक मजबूती और ऊर्जा में भी काफी कमी पाई गई। शोधकर्ताओं के अनुसार, इसका मूल कारण यह है कि भले ही लड़कियां बाहर भी जाती हैं और कामकाज भी करती हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से अब भी बड़ी संख्या में माता-पिता अपने बेटों को अच्छी खुराक देना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें बाहर भाग-दौड़ करनी पड़ती है, वे खेलते कूदते हैं और उन्हें कमाना हैं। यह स्थिति और सोच बदलनी चाहिए। घर की लड़कियों को भी लड़कों जैसी ही खुराक मिलनी चाहिए तभी उनमें पोषण की कमी पूरी हो सकगी और उन्हें एक स्वस्थ जीवन मिल सकेगा।
कम उम्र में विवाह- शिक्षा में कमी, पुरानी सोच और हमारे रूढ़िगत सामाजिक ढाँचे के कारण अब भी ग्रामीण भारत में लड़कियों को एक जिम्मेदारी या पराया धन माना जाता है और पढ़ने-लिखने और खेलने-कूदने की उम्र में उनका विवाह कर दिया जाता है। जिस उम्र में बच्ची खुद को ठीक से नहीं संभाल पाती उस उम्र में उसकी शादी हो जाती है। वहां उसे खुद को अच्छा साबित करने के लिए न सिर्फ ढेर सारा काम करना पड़ता है बल्कि कई बार तो वह किशोरावस्था में ही मां भी बन जाती है। तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद आज भी देश में करीब 27 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम की आयु में हो जाता है। इसमें पश्चिम बंगाल और राजस्थान काफी आगे है। यूनिसेफ की ओर से जारी "फैक्टशीट चाइल्ड मैरिजेज 2019" शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश न लगाया गया तो देश में 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो जाएगी।
बॉडी शेमिंग- हमारे समाज में अक्सर कहा जाता है कि लड़कों की सुंदरता नहीं कमाई देखी जाती है, लेकिन लड़कियों के मामले में स्थिति इसके उलट है। अच्छे वर की चिंता में बेटियों पर सुन्दर, स्लिम, गोरी और दमकती-चमकती दिखने के लिए दबाव बनाया जाता। उन्हें हर वक्त खुद को आकर्षक दिखाने की चिन्ता सताती रहती है। परिवार के सदस्य हों या फ्रेंड्स हों, किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन हो या मीडिया हो सब जगह महिलाओं की शारीरिक खूबसूरती का इतना बढ़ाचढ़ा कर बखान किया जाता है कि वे अपने वजन, रंग और शरीर की बनावट को लेकर ओवर कौंशस हो जाती है। लड़की जरा भारी शरीर की हो तो उसे मोटी, सांवली या पक्के गेहुएं रंग की हो तो उसे काली कहने में लोग जरा भी वक्त नहीं लगाते। जबकि बेटी के अंदर गुणों का विकास जरूरी है, ताकि वो अंदर से खूबसूरत इंसान बने। अफसोस की बात तो बस इतनी है कि शिक्षित समाज में आज भी इन बातों को ज्यादा महत्व दिया जाता है और महिलाओं को शारीरिक और मानसिक तौर पर तिरस्कार किया जाता है। इस प्रकार की सोच पर रोक लगे इसके लिए समाजिक चेतना और जागरूकता जरूरी है।
कामकाज में लैंगिक विभाजन- सदियों से हमारे समाज में कामकाज, खेलकूद और प्रोफेशन का भी लैंगिक विभाजन किया जाता रहा है। यह विभाजन या असमानता केवल देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के किसी भी देश में आपको देखने को मिल जाएंगी। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी आपको इलेक्ट्रिक मिस्त्री, प्लम्बर या कार मैकेनिक के रूप में लड़कियां अपवाद स्वरूप देखने को मिलेंगी। माना कि क्रिकेट, फ़ुटबाल, कुश्ती, कबड्डी और कराटे जैसे खेलों में लड़कियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, लेकिन उनकी संख्या कितनी कम है, यह किसी से छिपा नहीं है। टेक्नोलॉजी के इस जगत में महिलाएं हर कमद पर खुद को साबित करने का प्रयास कर रही हैं। इसलिए असमानता के इस दीवार को ढाहना है तो शुरू से ही बेटियों से किसी काम के लिए यह न कहें कि 'यह काम लड़कियों के लिए नहीं है।' बेटी को रसोई का सामान लाने तक सीमित न रखें। चाहे घर में बल्ब बदलना हो, साइकिल में हवा भरनी हो, फ्यूज में वायर लगाना हो या दीवार में कील ठोकनी हो, ये सब काम बेटी से भी करवाएं और उन्हें भी सिखाएं। उसे कंप्यूटर ठीक करना, बाइक या कार रिपेयरिंग, इलेक्ट्रीसिटी के छोटे-मोटे काम सिखाएं। शुरू से ही स्पोर्ट्स में सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करें।
पीछे छूटा सेहत का मुद्दा- आज की तारीख में हर ओर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, नौकरी या रोजगार में लिंग भेद, यौन हिंसा, तलाक, हलाला व अन्य मुद्दों पर तो खूब बात हो रही है, लेकिन इन सबके बीच एक अहम् मुद्दा कहीं पीछे छूट गया है। यह मुद्दा महिलाओं की सेहत से जुड़ा है। अक्सर महिलाएं घर के दूसरे सदस्यों का खूब ख्याल रखती हैं लेकिन अपने पोषण, सेहत और मानसिक परेशानियों को लेकर चुप्पी साधे रखती हैं। अक्सर वे चिकित्सक के पास तब तक नहीं जातीं जब तक स्थिति बहुत गंभीर न हो जाए। महिलाओं की सेहत भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुषों की इस बात पर गौर करना जरूरी है। क्योंकि स्वास्थ्य का विषय सबके लिए एक समान होना चाहिए।
करियर इंडिया पर दिए गए इन बिंदुओं के आधार पर आप निबंध ऐस्से लिखने के लिए आईडिया ले सकते हैं। हमारी पूरी टीम की ओर से विश्व भर की महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएं...