Essay Speech On Women Empowerment 2023: महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है। आज की तैयारी ही भविष्य की बेहतरी की बुनियाद बनती है। दरअसल, महिलाओं की जिंदगी से जुड़े परिवर्तन कई पहलुओं पर आश्रित होते हैं। सामाजिक-पारिवारिक और व्यक्तिगत मोर्चों पर अनगिनत बाधाएं, इस बदलाव में आड़े आती है। ऐसे में लैंगिक समानता यानी जेंडर इक्वेलिटी के फ्रंट पर मानसिकता बदलना, बहुत से बदलावों की बुनियाद बन सकता है।
बता दें कि हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों का उत्सव मनाने के लिए मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में लैंगिक असमानता के खिलाफ कार्रवाई करने के समर्थन में भी मनाया जाता है।
देखा जाए तो सोच की दिशा न सिर्फ समाज में बदलाव के बुनियादी हालात तैयार करती है, घर परिवार से लेकर कार्यक्षेत्र तक में स्त्री जीवन में आ रहे बदलावों को लेकर एक सहज स्वीकार्यता भी ला सकती है। सड़क और बाजार से लेकर अपने घर आंगन तक एक राय बनाने का यही भाव महिलाओं के प्रति अपनाए जाने वाले व्यवहार में भी झलकता है। फिर चाहे घरेलू हिंसा से जुड़े नियम दर्जे की सोच हो या कार्यस्थल पर होने वाले शोषण दूर व्यवहार की। विचार ही व्यवहार में तब्दील होकर महिलाओं के प्रति असंवेदनशील माहौल बनाते हैं। ऐसे में जेंडर इक्वेलिटी की मानसिकता हर देश हर समाज में नई सोच की नींव तैयार कर सकता है।
गौर करने की बात है कि देश में पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था की धुरी होने के बावजूद महिलाएं ही असमानता की सोच की सबसे ज्यादा शिकार बनती रही हैं। इस भेदभाव का ही नतीजा है कि उच्च शिक्षित और कामकाजी महिलाओं के बढ़ते आंकड़े भी हमारे परिवेश को नहीं बदल पाए हैं। लैंगिक भेदभाव की सोच महिलाओं के लिए असुरक्षा और आज सम्मानजनक परिवेश की अहम वजह बनी हुई है। लैंगिक समानता की राह में सबसे बड़ी बाधा यह है कि आज महिलाओं के प्रति एक तयशुदा सोच जड़ें जमाए हुए हैं। आधी आबादी को एक खास तरह से सांचे में फिट करके भी देखा जाता है।
गौरतलब है कि आधी आबादी के साथ होने वाले भेदभाव भरा व्यवहार उनके जीवन से बहुत कुछ कम हो जाने की बड़ी वजह बनता है। परिवार से लेकर परिवेश तक लोगों का नजरिया बदल बदले बिना मान सम्मान से लेकर सहज जीवन जीने की स्वतंत्रता तक, कुछ भी महिलाओं के हिस्से नहीं आ सकता। उनके प्रति बराबरी के दर्जे को लेकर समाज की सोच में बदलाव आए बिना बदलते हालातों में नई तकलीफें उनके हिस्से आती रहेंगी। इसकी वजह से यह है कि आम लोगों की सोच ही सामाजिक पारिवारिक संस्कृतिक तैयार करती है। ऐसी संस्कृति में समानता का भाव ही नदारद होगा तो वहां भी आधी आबादी की परिस्थिति नहीं बदल सकती। यही वजह है कि कोई क्षेत्रों में आज भी लैंगिक समानता कायम है।
खासकर नेतृत्व कार्य और निर्णायक भूमिकाओं में स्त्रियों की खूब अनदेखी की जाती है। सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाओं के आंकड़े बढ़ने के बाद भी उपेक्षा अपमान और असुरक्षा की स्थितियों की अहम वजह सोच का ना बदलना ही है। इतना ही नहीं जेंडर इनेक्वेलिटी के कारण ही कई कुरीतियों और रूढ़ियों का बोझ भी औरतों के सिर पर लदा है। रहने जीने और आगे बढ़ने के माहौल को दम घोटू बना रखा है। यह गैर बराबरी ही तो है कि कई परिवारों में वर्किंग वूमंस अपनी कमाई भी खुद पर खर्च नहीं कर पाती। घर से जुड़े वित्तीय फैसले में आज भी उनकी भूमिका दोयम दर्जे की ही है।
यह सोच है कि हालिया वर्षों में महिलाओं के जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर बदलाव आया है। कई मोर्चों पर सकारात्मक सोच की बुनियाद बन रही है। शिक्षा व्यवस्था और कामकाजी मोर्चों पर आधी आबादी के हालात भी सुधरे हैं। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इस साल समानता की सोच से जुड़े विचार को बदल को बल देना आने वाले कल में बदलाव की उम्मीदों को और पुख्ता करने जैसा है। महिलाओं के भावी जीवन में बेहतरी की रहा सुझाता है। महिलाओं को हाशिए पर धकेल दिए जाने के बजाय हर भूमिका में सहज स्वीकार्यता मिलने का परिवेश बनने का भरोसा जगाता है। इस मामले में कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में लैंगिक समानता के प्रयासों को समर्पित महिला दिवस का यह विषय हर पहलू में बदलाव ला सकता है। इससे भविष्य में आधी आबादी की सुनहरी तस्वीर सामने आने की उम्मीद बनती है।
कुछ समय पहले आई यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक आज भी दुनिया में दुनिया भर में लगभग 90 फ़ीसदी महिलाएं और पुरुष महिलाओं के प्रति किसी ना किसी तरह का पूर्वाग्रह रखते हैं। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यूएनडीपी ने दुनिया की 80 फ़ीसदी का प्रतिनिधित्व करने वाले 70 देशों की स्टडी के बाद तैयार की है। इस स्टडी में सामने आया कि आज हार्टअटैक में भी 10 में से 9 लोग महिलाओं के प्रति एक बंधी-बधाई सोच की लीक पर ही चल रहे हैं। भारतीय समाज के परंपरागत ढांचे में तो ऐसी सोच और भी गहराई से समाई है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों के आंकड़े आंकड़े और घर दफ्तर में उनके अंतर महसूस करवाने वाले वाक्य इसी सोच से मांगी है। ऐसे में आने वाले कल में महिलाओं की मजबूती के लिए आज लैंगिक समानता के मोर्चों पर गंभीरता से सोचा जाना वाकई बहुत जरूरी है।