Sister Nivedita Biography in Hindi: हर भारतीय स्वामी विवेकानंद जी को अच्छी तरह जानते हैं। यदि आप स्वामी विवेकानंद के बारे में जानते हैं तो आपने कई बार सिस्टर निवेदिता का नाम अवश्य सुना होगा। प्रचलित रूप से सिस्टर निवेदिता को हम स्वामी विवेकानंद के एक शिष्य के रूप में जानते हैं। सिस्टर निवेदिता एक स्कॉट्स-आईरिश महिला थीं।
सिस्टर निवेदिता का वास्तविक नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था। उनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड में हुआ था। अपने कार्यों के लिए सिस्टर निवेदिता तो एक महान समाज सेविका, शिक्षिका और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की समर्थक के रूप में जाना जाता था। स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर, उन्होंने अपना जीवन भारत की सेवा और सामाजिक सुधारों के लिए समर्पित कर दिया। सिस्टर निवेदिता भारतीय संस्कृति से बेहद प्रभावित थीं। इसलिए उन्होंने अपने विभिन्न प्रयासों में संस्कृति और शिक्षा को महत्व दिया। भारतीय संस्कृति और शिक्षा के प्रति उनका योगदान अति महत्वपूर्ण है। सिस्टर निवेदिता ने नारी शिक्षा, समाज सुधार और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
कैसा रहा सिस्टर निवेदिता का जीवन?
मार्गरेट नोबल का जन्म एक धार्मिक और शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता उनके जीवन के पहले पथ प्रदर्शक थे। उन्होंने मार्गरेट में समाज सेवा और मानवता की भावना को बचपन से ही प्रोत्साहित किया। मार्गरेट ने अपना बचपन और युवावस्था के शुरुआती दिन आयरलैंड में बिताए। अपने पिता, कॉलेज के प्रोफेसर आदि से उन्होंने कई मूल्यवान सबक सीखे जैसे - मानव सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। उन्होंने स्कूल शिक्षिका के रूप में काम किया और बाद में एक स्कूल भी खोला।
कितनी पढ़ी लिखी थीं सिस्टर निवेदिता?
सिस्टर निवेदिता ने अपनी शिक्षा इंग्लैंड से प्राप्त की। वहां उन्होंने शिक्षिका का प्रशिक्षण प्राप्त किया। शिक्षा के क्षेत्र में सिस्टर निवेदिता निपुण थीं और अपने करियर के प्रारंभिक दौर में उन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा प्रदान की। भारत आने के बाद उन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास और धर्म के गहन अध्ययन किया। उनका मुख्य उद्देश्य भारतीय महिलाओं को शिक्षित करना था। अपने जीवनकाल में उन्होंने शिक्षा के दिशा में लिए उन्होंने कई प्रयास किए।
कैसा मिलीं स्वामी विवेकानंद से
सिस्टर निवेदिता की मुलाकात स्वामी विवेकानंद से 1895 में लंदन में हुई और 1898 में वे कलकत्ता, वर्तमान कोलकाता आईं। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें 25 मार्च 1898 को ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा देते समय निवेदिता नाम दिया। इसका अर्थ है "ईश्वर को समर्पित"। नवंबर 1898 में उन्होंने कलकत्ता के बागबाजार इलाके में लड़कियों का एक स्कूल खोला। वह उन लड़कियों को शिक्षित करना चाहती थीं जो बुनियादी शिक्षा से भी वंचित थीं। 1899 में कलकत्ता में प्लेग महामारी के दौरान निवेदिता ने गरीब रोगियों की देखभाल की।
स्वामी विवेकानंद से मिलने के बाद बदल गई जीवन दिशा
प्रारंभिक शिक्षा आयरलैंड और इंग्लैंड में प्राप्त करने के बाद, मार्गरेट ने शिक्षिका के रूप में अपना करियर शुरू किया। स्वामी विवेकानंद से मिलने के बाद, उनकी जीवन दिशा बदल गई और उन्होंने भारतीय समाज के उत्थान में अपना योगदान देना शुरू किया। विवेकानंद के निर्देशन में मार्गरेट ने 'निवेदिता' का नाम लिया। 'निवेदिता' शब्द का अर्थ होता है 'जिसने अपना जीवन समर्पित कर दिया हो।'
समाज सुधार और शिक्षा में सिस्टर निवेदिता का योगदान
सिस्टर निवेदिता के कार्यों में समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान मुख्य था। उन्होंने 1898 में कोलकाता में एक स्कूल की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा प्रदान करना था। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया और बंगाल में स्वदेशी आंदोलन को प्रोत्साहित किया। वह अपने जीवनकाल में कई समाज सुधार आंदोलनों से जुड़ी रहीं और भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। सिस्टर निवेदिता ने भारतीय महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने का कार्य किया।
हालांकि सिस्टर निवेदिता को किसी सरकारी पुरस्कार से सम्मानित नहीं किया गया, लेकिन भारतीय समाज और संस्कृति में उनके योगदान के कारण उन्हें अत्यधिक मान्यता प्राप्त हुई। भारत में उनके योगदान को आज भी सम्मानपूर्वक याद किया जाता है। उनके सम्मान में कई सड़कों, स्कूलों और संस्थानों के नाम रखे गए हैं। उनकी कृतियों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
सिस्टर निवेदिता ने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें 'काली द मदर' और 'द वेदांत' प्रमुख हैं। उनके लेखन में भारतीय दर्शन, संस्कृति और धर्म के प्रति गहरी समझ और प्रेम दिखता है। उनका निधन 13 अक्टूबर 1911 को हुआ।