छठ पूजा भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मईया की पूजा के लिए समर्पित है, जिसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा का उद्देश्य न केवल स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करना है, बल्कि यह एक पवित्र अनुष्ठान है जो प्रकृति और मानव के बीच संतुलन को भी दर्शाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कौन हैं छठी मईया, और उनकी पूजा क्यों की जाती है।
छठी मईया कौन हैं?
छठी मईया को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है और उन्हें सूर्य देवता की बहन के रूप में जाना जाता है। हिंदू पुराणों के अनुसार, छठी मईया का वास्तविक नाम देवी षष्ठी है और उन्हें संतान प्राप्ति की देवी माना जाता है। देवी षष्ठी की पूजा मुख्य रूप से संतान की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए की जाती है। माना जाता है कि छठी मईया संतान को लंबी उम्र और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देती हैं। वह मातृत्व और सृजन की देवी मानी जाती हैं, जो माता-पिता के प्रति ममता और प्रेम का प्रतीक हैं।
छठ पूजा का पौराणिक महत्व
छठ पूजा का संबंध कई पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है। कुछ प्रमुख कहानियां निम्नलिखित हैं:
1. महाभारत से जुड़ी कथा
महाभारत काल की एक कथा के अनुसार, जब पांडव अपना राजपाट खो बैठे थे, तो द्रौपदी ने सूर्य देव की उपासना की थी और उनसे राजपाट वापस पाने की कामना की थी। सूर्य देव ने द्रौपदी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया था और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया। ऐसा माना जाता है कि उसी समय से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ गया और बाद में यह छठ पर्व का रूप ले लिया।
2. रामायण से संबंधित कथा
रामायण में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। जब भगवान श्रीराम और माता सीता चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तो उन्होंने कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन सूर्य देवता और छठी मईया की उपासना की थी। इस पूजा के माध्यम से उन्होंने आभार व्यक्त किया और सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसे ही छठ पूजा का प्रारंभ माना जाता है।
3. छठी मईया और षष्ठी देवी की कथा
हिंदू मान्यता के अनुसार, छठी मईया का संबंध मां कात्यायनी और देवसेना से भी जोड़ा गया है। यह माना जाता है कि देवसेना ने छठी मईया की उपासना की थी और उनके आशीर्वाद से ही उन्हें संतान की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद से ही महिलाएं संतान की प्राप्ति और उनकी सुरक्षा के लिए छठी मईया की पूजा करती हैं। यह विश्वास है कि छठी मईया बच्चों की रक्षक हैं और वह बच्चों के स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि की रक्षा करती हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठान और विधि
छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें कई विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं:
- पहला दिन: नहाय-खाय- छठ पूजा के पहले दिन को 'नहाय-खाय' कहा जाता है। इस दिन व्रती (व्रत रखने वाले) अपने शरीर को शुद्ध करने के लिए पवित्र जल से स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इसे शुद्धिकरण का दिन माना जाता है।
- दूसरा दिन: खरना- दूसरे दिन को खरना कहते हैं। इस दिन व्रती पूरा दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करते हैं। इस भोजन में विशेष रूप से गुड़, चावल और गन्ने का रस शामिल होता है।
- तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य- तीसरे दिन व्रती अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। नदी या तालाब के किनारे सभी भक्त इकट्ठा होकर सूर्य देव की आराधना करते हैं। यह एक अत्यंत मनोहारी दृश्य होता है जब सैंकड़ों लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं।
- चौथा दिन: उषा अर्घ्य- अंतिम दिन, व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दिन का विशेष महत्व होता है क्योंकि इसे पूजा का समापन दिन माना जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती अपना व्रत समाप्त करते हैं।
छठी मईया की पूजा का महत्व
छठी मईया की पूजा का मुख्य उद्देश्य संतान की सुरक्षा और लंबी उम्र की कामना करना है। साथ ही, इस पूजा के माध्यम से भक्त यह भी मानते हैं कि सूर्य देव और छठी मईया का आशीर्वाद पाकर उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही, यह पर्व व्यक्ति को अनुशासन, समर्पण और संयम सिखाता है। छठ पर्व के दौरान लोग कठिन उपवास रखते हैं और शुद्धता का पालन करते हैं, जिससे उनके आत्म-नियंत्रण और भक्ति की परीक्षा होती है।
छठ पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि इसका समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव भी है। इस पर्व में लोग जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति से परे होकर एकजुट होते हैं और मिलकर पूजा करते हैं। छठ पूजा के अवसर पर लोगों के बीच आपसी सहयोग, भाईचारे और सामूहिकता की भावना बढ़ती है। साथ ही, यह त्योहार पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूकता फैलाता है, क्योंकि यह पूजा नदियों और जलस्रोतों के पास की जाती है।
कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति और मानव के बीच संतुलन स्थापित करता है। छठी मईया की पूजा से संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना की जाती है। यह त्योहार हमें न केवल धार्मिक महत्व की ओर जागरूक करता है, बल्कि यह हमें प्रकृति, पर्यावरण और समाज के प्रति हमारे कर्तव्यों की याद भी दिलाता है।