राम मनोहर लोहिया, भारतीय राजनीति के एक प्रखर समाजवादी विचारक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका योगदान भारतीय राजनीति में अविस्मरणीय है। उनका जन्म 23 मार्च 1910 को हुआ था, और उन्होंने अपने जीवन को सामाजिक न्याय, समानता और स्वतंत्रता की स्थापना के लिए समर्पित कर दिया। भारतीय राजनीति में उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक विकास तक, बहुआयामी और महत्वपूर्ण रहा है।
स्वतंत्रता संग्राम में लोहिया का योगदान
राम मनोहर लोहिया ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए जा रहे आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1936 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन में उनकी अहम भूमिका रही, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर समाजवादी विचारों को आगे बढ़ाने के लिए बनाई गई थी।
लोहिया ने "भारत छोड़ो आंदोलन" (1942) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसात्मक संघर्ष का नेतृत्व किया। उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उनके साहस और निष्ठा ने उन्हें एक महान नेता के रूप में स्थापित किया। उनके विचार और कार्य देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित थे और उन्होंने हमेशा देशवासियों को आत्मसम्मान, स्वाभिमान और राष्ट्रीयता के लिए प्रेरित किया।
समाजवादी विचारधारा के वाहक
स्वतंत्रता के बाद राम मनोहर लोहिया ने भारतीय समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता की स्थापना के लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है, बल्कि आर्थिक स्वतंत्रता भी आवश्यक है। उन्होंने समाजवाद की वकालत की और उसे भारतीय संदर्भ में ढालने की कोशिश की।
लोहिया ने "चौखम्भा राज" (Decentralized Democracy) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें सत्ता का विकेंद्रीकरण और गांवों को प्रशासनिक इकाइयों के रूप में मान्यता देने की बात थी। उनका यह विचार गांधीवादी दर्शन से प्रेरित था, जिसमें आत्मनिर्भर ग्रामों की संकल्पना की गई थी।
जाति, धर्म और भाषा पर दृष्टिकोण
लोहिया जाति-आधारित समाज का विरोध करते थे और सामाजिक समानता की बात करते थे। उन्होंने "पिछड़े पावें सौ में साठ" का नारा दिया, जिसका मतलब था कि पिछड़े वर्गों को 60 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। उनका मानना था कि समाज के सबसे निचले तबके को आगे बढ़ाए बिना समाज का विकास संभव नहीं है।
धर्म और भाषा के संदर्भ में भी लोहिया का दृष्टिकोण समावेशी और संतुलित था। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने की वकालत की, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों के बीच संवाद और संपर्क स्थापित हो सके। उनका मानना था कि अंग्रेजी के प्रभुत्व को समाप्त कर भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन देना चाहिए।
राजनीतिक योगदान और विपक्षी राजनीति के जनक
लोहिया स्वतंत्र भारत के पहले प्रमुख समाजवादी नेता थे जिन्होंने कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती दी। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की नीतियों का खुलकर विरोध किया और उनके विचारों के खिलाफ एक सशक्त विपक्ष का निर्माण किया। 1960 के दशक में उन्होंने गैर-कांग्रेसी राजनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने यह दिखाया कि लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष की कितनी जरूरत होती है। लोहिया के विचार और नीतियां भारतीय राजनीति में एक नई धारा का प्रवाह लेकर आईं। उनके विचारों ने भविष्य की राजनीति को बहुत प्रभावित किया और विभिन्न समाजवादी दलों की नींव रखी।
राम मनोहर लोहिया भारतीय राजनीति के एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने समाजवाद, समानता और स्वतंत्रता की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाया। उनकी राजनीति केवल सत्ता के लिए नहीं थी, बल्कि समाज को बेहतर बनाने के लिए थी। उनका योगदान स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्र भारत की राजनीति तक अनमोल और प्रेरणादायक है। आज भी उनके विचार और सिद्धांत देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक हैं।