आजादी से पहले भारत में कई स्वतंत्रता आंदोलन हुए, जिससे उत्तराखंड भी अछूता नहीं रहा। बता दें कि कुली बेगर और डोला पालकी जैसे प्रमुख आंदोलन उत्तराखंड में हुए। जिससे की उत्तराखंड में भी भारत की स्वतंत्रता का स्तर बढ़ता ही जा रहा था।
जिसके लिए महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम आपको उत्तराखंड की उन महिलाओं के बारे में बताते हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना योगदान दिया था।
उत्तराखंड की महिला स्वतंत्रता सेनानियों की सूची
- बिश्नी देवी शाह
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कैद होने वाली उत्तराखंड की पहली महिला बिश्नी देवी शाह थीं। बिश्नी देवी का जन्म 1902 में बागेश्वर में हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए उत्तराखंड में कई लोग उनसे प्रेरित हुए। वह राष्ट्रीय आंदोलन के लिए अपने अथक प्रयासों के कारण ब्रिटिश राज की जड़ों को हिलाने में सफल रही। बिश्नी देवी में नेतृत्व करने और लड़ने की हिम्मत व ताकत थी।
उन्हें अपने देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष जारी रखने का विश्वास भी था, बावजूद इसके कि उन्होंने अंग्रेजों से कितनी विपत्तियों का सामना किया। उनके नेतृत्व और अपने आप में उनके विश्वास के परिणामस्वरूप, वह आज भारत के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
बिश्नी देवी को एक कार्यकारी सदस्य के रूप में कांग्रेस में सेवा करने के लिए चुना गया था। 23 जुलाई 1935 को उन्हें कांग्रेस भवन में झंडा फहराने का सम्मान मिला। 1940-1941 में, वह भारतीय राष्ट्रीय संघर्ष के लिए एक महत्वपूर्ण सत्याग्रह स्वयंसेवक के रूप में विकसित हुई।
- शर्मादा त्यागी
नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान, शर्मादा त्यागी ने अपने गृहनगर देहरादून में एक अभियान का नेतृत्व किया। उनके पति महावीर त्यागी गांधी के शिष्य थे। इन्हें देहरादून में महिलाओं के बीच नमक सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करने का श्रेय दिया जाता है। शर्मादा गांधी से बहुत प्रभावित थी, उन्होंने अक्टूबर 1929 में गांधी की दून यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब उन्होंने कन्या गुरुकुल में एक सार्वजनिक रैली में भाषण दिया था, जिसने वहां एकत्रित युवा लड़कियों की बड़ी भीड़ को प्रेरित किया था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन भड़क में विरोध प्रदर्शन करने के लिए शर्मादा ने जनसभाओं का आयोजन किया। अभियान के लिए व्यापक समर्थन जुटाने के लिए एक सार्वजनिक सभा के दौरान 1930 में शर्मादा को हिरासत में लाया गया था।
- चंद्रावती लखनपाली
चंद्रावती लखनपाल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की एक प्रतिष्ठित महिला थी। उन्होंने एमकेपी इंटर कॉलेज का नेतृत्व किया था, वे एक बहादुर महिला थी। कैथरीन मेयो की पुस्तक "मदर इंडिया" में शामिल यूरोप और अमेरिका में भारतीयों के रूढ़िवादी चित्रण से वह भयभीत थी। जिसके बाद लखनपाली को "मदर इंडिया का जवाब" नामक पुस्तक में अपनी प्रतिक्रिया लिखने के लिए प्रेरित किया, जो गुरुकुल कांगड़ी में प्रकाशित हुई थी।
- गौरा देवी
गौरा देवी का जन्म वर्ष 1925 को चमोली जिले के लता गांव में हुआ। वह उत्तराखंड की प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी महिलाओं की लिस्ट में शामिल है। उन्होंने मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही अपना जीवन देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। वह वन बचाओ के लिए 'चिपको आंदोलन' के लिए भी जानी जाती हैं।
- दीपा नौटियाल
दीपा नौटियाल का जन्म 1917 को पौड़ी गढ़वाल के एक गरीब परिवार में हुआ। दीपा को टिंचरी माई के नाम से भी जाना जाता है। वह बचपन से ही महात्मा गांधी जी के आंदोलनों से काफी प्रभावित थीं। वह दांडी यात्रा में शामिल हुईं। उनके पति गणेश राम सेना में सिपाही थे। उन्होंने अपने ग्रह राज्य में लोगों से 'शराब न पीने' को लेकर कई मुहिम चलाई।