Teachers Day Special: काश मेरे पास बीएड की डिग्री होती

Teachers Day Special: देश में तमाम महिलाएं ऐसी हैं जिनका करियर शादी की वजह से एक मोड़ पर आकर रुक जाता है। वो महिलाएं अपने करियर की कुर्बानी केवल इसलिए देती हैं, क्योंकि अगर वो शाम सात-आठ बजे घर लौटेंगी तो उनके बच्‍चों को कौन देखेगा। ऐसे में कुछ वो भी होती हैं, जो अपने ज्ञान को बांटने के लिए टीचिंग के क्षेत्र में कदम रखती हैं। और फिर एक दिन आता है, जब उनका मन कहता है, "काश मेरे पास बीएड की डिग्री होती!"

Teachers Day Special: काश मेरे पास बीएड की डिग्री होती

जी हां हम बात कर रहे हैं उन महिलाओं की, जो छोटे-छोटे बच्चों को ज्ञान के समुंदर तक लेकर जाती हैं। जो बच्चों के व्यक्तित्व को तराशती हैं, लेकिन महज़ बीएड की डिग्री नहीं होने के कारण बहुत अच्छी टीचर होते हुए भी उन्हें न तो प्रमोशन मिलता है और न ही अच्‍छी सैलरी।

राज्य और केंद्रीय बोर्ड के प्रावधान के अनुसार बिना बीएड की डिग्री के स्कूलों में पढ़ाने की अनुमति नहीं है। ऐसे में कई बेहतरीन लोग है जो स्कूलों में नहीं पढ़ा सकते हैं क्योंकि उनके पास बीएड की डिग्री नहीं है। अच्छी उच्च शिक्षा प्राप्त उम्मीदवार जिनमें पढ़ाने की अच्छा टैलेंट है वो भी डिग्री की कमी के कारण मार खा जाते है।

बेंगलुरु की सोनिका सिंह की कहानी

बेंगलुरु के एचएसआर लेआउट में एक इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाने वाली सोनिका सिंह एमबीए हैं, और स्कूल के प्राइमरी सेक्शन में पढ़ाती हैं। उन्होंने कई बार एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के तौर पर 9वीं, 10वीं के बच्‍चों को भी पढ़ाया, कई बार प्राइमरी से सेकेंडरी जाने के प्रयास किये, लेकिन बीएड की डिग्री नहीं होने के कारण वो आगे नहीं बढ़ पायीं। करियर इंडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि कई बार तो बीएड नहीं होने की वजह से बोर्ड द्वारा एक्टिविटीज में वो नहीं जा पाती हैं। पत्राचार द्वारा बीएड करने की बात पर उन्होंने कहा कि सैलरी इतनी कम है, कि प्राइवेट बीएड की फीस भरने में दिक्कत होगी, यही सोच कर पीछे हट जाती हूं।

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क्या है सिविल लाइन दिल्ली में पढ़ाने वाले एक होम ट्यूटर की कहानी

मुझे याद है कि मेरे एक ट्यूशन टीचर थे। उनका पढ़ाने का तरीका, उनकी क्षमता और शिक्षा प्रदान करने की उनकी भावना अदभूत थी। मेरी पूरी कॉलनी में एक भी ऐसा बच्चा नहीं था, जिसे उन्होंने पढ़ाया ना हो और वो अच्छे अंको से पास ना हुआ हो। मेरी कॉलनी के साथ आस-पास के क्षेत्रों में भी कई बच्चे थे जो केवल उनसे पढ़ना चाहते थे। सुबह 9 बजे से निकल कर ट्यूशन देने वाले मेरे ये टीचर रात 10 के बाद अपने घर जाया करते थे। इस बीच वह सभी बच्चों को होम ट्यूशन दिया करते थे। लेकिन वह कभी स्कूल में नहीं पढ़ा सके क्योंकि उनके पास बीएड की डिग्री नहीं थी। बीएड की डिग्री के बिना ही शिक्षा प्रदान करने के अपने लक्ष्य को उन्होंने हासिल किया। उनके इसी भावना की वजह से आज भी मुझे वह याद है।

उसी प्रकार भारत में कई ऐसे शिक्षक है जो बहुत अच्छा पढ़ते है लेकिन केवल बीएड की डिग्री की कमी के कारण वह स्कूलों में जाकर शिक्षा प्रदान नहीं कर पाते। उनमें से कई है जिनका मानना है कि शिक्षक बनने के लिए डिग्री की आवश्यकता नहीं है, तो वह अपने स्तर पर कोचिंग संस्थान आदि खोलकर आस-पास के बच्चों को शिक्षा प्रदान कर उन्हें उड़ने के लिए पंख दे रहे हैं तो उन्हें कुछ ऐसे भी है जो डिग्री की कमी को महसूस करते हैं। और सोचते हैं कि 'काश उनके पास बीएड की डिग्री होती।'

महिलाओं को होती है बहुत दिक्कत

टीचिंग के प्रोफेशन में शादी के बाद अपना करियर दोबारा शुरू करने की इच्छा रखने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। अच्छी शिक्षा और पढ़ाने का टैलेंट होने के बाद भी ये महिलाएं केवल किंडरगार्टन तक ही सीमित रह जाती है और बड़ी क्लास के बच्चों को नहीं पढ़ा पाती है। क्योंकि उनके पास बीएड की डिग्री नहीं होती है। वहीं कुछ संस्थान उन्हें कक्षा 1 से 7 या 8 तक पढ़ाने का मौका तो देते हैं लेकिन पद किंडरगार्टन शिक्षक का ही होता है। ऐसे में नए शिक्षक की भर्ती पर उन्हें वापस किंडरगार्टन भेज दिया जाता है।

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English summary
Teachers Day: There are many women in the country whose career comes to a standstill due to marriage. Those women sacrifice their career only because if they return home at 7-8 in the evening then who will look after their children. In such a situation, there are some who step into the field of teaching to share their knowledge. And then a day comes, when their mind says, "I wish I had a B.Ed degree.
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