Swami Vivekananda Jayanti 2023 Inspirational stories: आज 12 जनवरी 203 को स्वामी विवेकानंद की 160वीं जयंती मनाई जा रही है। 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। प्रस्तुत है स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े दो प्रेरक प्रसंग, जिन्हें हर किसी को जानना चाहिए।
जरूरी है हर काम के प्रति एकाग्रता
एक दिन स्वामी विवेकानंद पाल डायसन के साथ साहित्य पर विचार-विमर्श कर रहे थे। पाल डायसन जर्मनी के निवासी थे । वह संस्कृत के ज्ञाता थे। विचार-विमर्श के मध्य अचानक पाल डायसन को किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ गया। काम पूरा करके जब वे लौटे तो उन्होंने स्वामी विवेकानंद को पुस्तक पढ़ते हुए पाया।
विवेकानंद पुस्तक पढ़ने में इतने लीन थे कि उन्हें पाल डायसन के आने का आभास नहीं हुआ। पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद जब विवेकानंद ने अपना सिर ऊपर उठाया, तो उन्होंने पाल डायसन को प्रतीक्षा करते हुए पाया। विवेकानंद ने पाल डायसन से खेद प्रकट करते हुए कहा, 'क्षमा कीजिएगा मैं पुस्तक पढ़ रहा था।
मुझे आपके आने का आभास ही नहीं हुआ।' पाल डायसन को ऐसा लगा कि स्वामी विवेकानंद ने उन्हें जानबूझकर नजरंदाज किया है। अपनी उपेक्षा से वे नाराज हो गए। यह नाराजगी उनके चेहरे पर स्पष्ट दिख रही। उनके मन के भावों को पढ़कर स्वामी विवेकानंद को दुख हुआ।
पाल डायसन को यह विश्वास दिलाने के लिए कि वे वाकई पढ़ने में लीन थे, इसलिए पुस्तक में लिखी कविताओं को सुनाने लगे। कंठस्थ कविताओं को सुनने के बाद पाल डायसन की नाराजगी और बढ़ गई। उन्हें लगा कि विवेकानंद ने पुस्तक पहले से ही पढ़ी हुई थी।
जानबूझकर उनकी उपेक्षा के लिए वे उनके सामने पुस्तक पढ़ने का स्वांग कर रहे थे। पाल डायसन गुस्से से बोले, 'दो सौ पन्ने की पुस्तक तुरंत पढ़कर उसकी कविताएं कंठस्थ कर लेना संभव नहीं है । यह पुस्तक आपने पहले से पढ़कर कविताएं याद कर रखी हैं।'
यह सुनकर विवेकानंद बोले, 'महोदय, किसी भी कार्य को यदि एकाग्रता से किया जाए तो समय कम खर्च होता है। कार्य का परिणाम अच्छा प्राप्त होता है। किसी भी काम के लिए एकाग्रता बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए कोई भी कार्य एकाग्रता के साथ करना चाहिए।' मिस्टर बीन का कैरेक्टर निभाने वाले रोवन एटकिंसन पाल डायसन को अपनी भूल का अहसास हुआ। इस तरह उन्होंने स्वामी विवेकानंद से सीखा कि जीवन में एकाग्रता का क्या महत्व है।
वस्त्र नहीं इंसान का चरित्र उसे सज्जन बनाता है
स्वामी विवेकानंद एक तपस्वी का जीवन जीते थे। वह दुनिया भर में यात्रा करते थे, ज्ञान का प्रसार भी करते थे। एक बार जब स्वामी जी विदेश यात्रा पर गए तो उनके वस्त्रों ने लोगों का ध्यान खींचा। एक विदेशी व्यक्ति ने उनकी पगड़ी खींच ली। स्वामी जी ने उससे अंग्रेजी में पूछा, 'महोदय, आपने मेरी पगड़ी क्यों खींची?' वह व्यक्ति स्वामी जी को अंग्रेजी बोलते सुनकर हैरान रह गया।
उसने पूछा, 'आप अंग्रेजी बोलते हैं? क्या आप शिक्षित हैं?'स्वामी जी ने कहा, 'हां, मैं शिक्षित हूं, एक सज्जन व्यक्ति हूं।' इस पर वह विदेशी बोला, 'आपके कपड़े देखकर तो यह नहीं लगता कि आप सज्जन व्यक्ति हैं।' स्वामी जी ने उसे विनम्रतापूर्वक जवाब देते हुए कहा, 'आपके देश में दर्जी आपको सज्जन बनाता है, जबकि मेरे देश में लोगों का चरित्र उसे सज्जन व्यक्ति बनाता है।' यह सुनकर उस व्यक्ति का सिर शर्म से झुक गया। उसने स्वामी विवेकानंद से क्षमा मांगी।