विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और दूसरी बड़ी आबादी वाले देश भारत में स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वो युवा जो देश का भविष्य है, जो देश की दिशा निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है। आज राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में अगर युवा का सही अर्थ खोजें तो शायद निराशा हाथ लगे। हम यहां थोड़ा निगेटिव हो रहे हैं, दरअसल यह ही यथार्थ है।
छात्रों के लिए नोट- इस लेख में एक गंभीर विषय को उठाने की कोशिश की गई है। लिहाज़ा छात्र इस लेख को तीन प्रकार से इस्तेमाल कर सकते हैं-
1. अपने जीवन में इन विचारों को आत्मसात करके एक नई शुरुआत कर सकते हैं।
2. अगर आप राष्ट्रीय युवा दिवस पर लेख लिखने जा रहे हैं, तो यहां से कुछ टिप्स ले सकते हैं।
3. अगर आप राष्ट्रीय युवा दिवस पर स्पीच तैयार कर रहे हैं, या डिबेट तैयार कर रहे हैं, तो।
4. और अगर आप आज के समय में स्वामी विवेकानंद के जीवन की प्रासंगिकता पर पढ़ना या लिखना चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए लाभकारी हो सकता है।
सही मायने में देखें तो स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस पर युवा दिवस मनाने का के संकल्प के पीछे जो संकल्प है, उस पर सिर्फ खानापूर्ति करने के बजाय, एक विचार और विश्लेषण की आवश्यकता है। यदि हम सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों पर ध्यान दें तो भारत में 2021 तक कुल बेरोजगारों की संख्या 3 करोड़ 18 लाख है। भारत में कुल युवाओं की संख्या कुल जनसंख्या का 27.3% यानी 34 करोड़ 13 लाख है।
ऐसे में यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि ज्यादातर युवा या तो स्वयं का अपना कोई कार्य कर रहे हैं या फिर सरकारी नौकरियों में लगे हुए हैं, लेकिन जिस तरह से युवाओं के मानवाधिकार में गरिमा पूर्ण जीवन को सम्मिलित करने की बात कहकर उनके बेरोजगार होने की बात पूरे राष्ट्र में की जा रही है, या फिर युवाओं को एक ऐसी दिशा की ओर ले जाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें वह युवा के विपरीत वायु बनकर कार्य कर रहे हैं तो उन्हें स्वयं इस बात को विचार करना चाहिए।
क्या केवल सरकारी नौकरी पा लेना ही युवाओं का निमित्त है?
एक विचारधारा, जो अब बड़े शहरों में धुंधली हो गई है, लेकिन मध्यम व छोटे शहरों व गांवों में अभी भी सिर चढ़ कर बोलती है, वो यह कि सरकारी नौकरी जिससे मिल जाये, वही सफल! जबकि सच पूछिए तो ऐसा बिलकुल नहीं है।
यदि एक भी युवा अपने चारों तरफ की दुनिया का आकलन करे, जो पायेगा कि जो कुछ भी आपकी लाइफ को ड्राइव कर रहा है, उनमें से अधिकांश चीजें सरकारी नौकरी करने वाले युवाओं द्वारा उत्पन्न नहीं की गई हैं। उदाहरण के तौर पर - मोबाइल फोन, इंटरनेट, कपड़े, बर्तन, बस, विमान, और अब तो ट्रेनें बनाने में भी निजि कंपनियों का सहयोग लिया जाने लगा है।
अगर आप एक उद्यमी हैं?
सच तो यह है कि जिस युवा ने अपने कर्मों पर विश्वास करके अपना उद्योग लगाया है, उसने समाज में बहुत बड़ा कार्य किया है। उसने अपने उद्योग में कार्य करने वाले लोगों के जीवन में स्थायित्व और सुख देने का कार्य किया है। यही नहीं उसने अपने जीवन में तो अपना व्यवसाय करके अपना जीवन चलाया ही है बल्कि अपने व्यवसाय को ऊंचाई देने के लिए उसने दूसरे कई लोगों को अपने यहां नौकरी भी दी है।
यह वो सोच है जो राष्ट्रीय युवा दिवस पर जिस पर विचार करने की जरूरत है।
क्या सिर्फ एक निर्धारित समय के लिए अपने श्रम को बेचकर हर महीने वेतन प्राप्त करना जीवन का उद्देश्य होना चाहिए या फिर उस श्रम को इस तरह उपयोग किया जाना चाहिए। युवा होने का अर्थ स्पष्ट हो और वह दूसरे युवाओं के जीवन को भी स्थायीत्व दे।
ऐसी स्थिति में स्वामी विवेकानंद के जीवन को समझना खास तौर से युवा को जरूरी है क्योंकि स्वामी विवेकानंद एक प्रतिष्ठित वकील के पुत्र होने के बाद अपने परिवारिक जीवन में एक ऐसी स्थिति में भी पहुंचे जहां पर उनके लिए रोज का खाना जुटाना भी मुश्किल हो गया था। वह भी एक नौकरी चाहते थे जिससे कि वह अपना परिवार चला सकें। जब इस प्रयास में वह अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिले तो उनके गुरु ने अपने योग साधना के आधार पर अपनी देवी मां से उन्हें नौकरी मांगने को कहा। लेकिन जब-जब नरेंद्र यानी विवेकानंद देवी के सामने गए तो उन्होंने नौकरी के बजाय ज्ञान मांगा और यही क्रम तीन बार चला। हर बार उन्होंने अपने परिवार की नितांत आवश्यकताओं के होते हुए भी नौकरी नहीं मांगी।
इसीलिए जब राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का क्रम पूरे विश्व में चल रहा है तो यह बात ध्यान देने की है की नौकरी से ज्यादा ज्ञान की आवश्यकता है। क्योंकि ज्ञान ही नीर और क्षीर के अंतर को स्पष्ट करता है और यदि इस संदेश को आज के युवाओं द्वारा समझ लिया गया कि उनके लिए ज्ञान की आवश्यकता ज्यादा है। ज्ञान उनको विस्तृत सोच देने में सहायक होगा जो राष्ट्र में ज्यादा विस्तार से उन्हें स्थापित कर पाएगा यही नहीं।
युवाओं का चरित्र
1893 में शिकागो धर्म सम्मेलन के दौरान स्वामी विवेकानंद ने जिस तरह से एक श्वेत महिला को भगिनी निवेदिता बनाया, वह भी राष्ट्रीय युवा दिवस पर युवाओं के सामने चरित्र निर्माण के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है। वो यह कि व्यक्ति को सदैव अपने उद्देश्य को सर्वोच्च रखते हुए अपने चरित्र को मजबूती के साथ समाज के सामने रखना चाहिए। धन आता है और चला जाता है धन से खाली हुआ व्यक्ति खाली नहीं कहलाता है। यदि व्यक्ति का चरित्र नहीं उसके पास रह गया तो उसके पास कुछ नहीं रह जाता है।
आज के भौतिक संस्कृति में जिस तरीके से चरित्र निर्माण में पतन दिखाई दे रहा है। उस संदर्भ में राष्ट्रीय युवा दिवस एक मील का पत्थर होना चाहिए। यह तभी संभव है जब युवा यह समझ सके कि यह सिर्फ एक दिवस नहीं बल्कि यह हमारे पूरे व्यक्तित्व को समझने का दिन हो।
मानवाधिकार का मतलब भी यही है कि हम अपने कर्तव्यों के प्रकाश में अपने अधिकारों की स्थापना करें। इसके लिए आवश्यक है कि युवा अपने नाम के प्रतिबिंब यानी वायु बनने के पहले यह सोच सकें कि वह किस तरह की वायु बन रहा है। मानव शरीर में 5 तरह की वायु होती हैं जिन्हें व्यान वायु, समान वायु, अपान वायु, उदान और प्राण वायु। इन सभी वायु में सबसे महत्वपूर्ण वायु प्राणवायु है, जिसके होने से ही हमारे जीवित होने का आभास होता है।
समाज में बढ़ते सामाजिक और सांस्कृतिक प्रदूषण के कारण जिस तरीके से मानव शरीर अपान वायु से दूषित होता जा रहा है, वैसे ही समाज में भी अपान वायु ही बढ़ती जा रही है, जिसमें युवा दिग्भ्रमित हो रहा है। वह या नहीं जान पा रहा है कि सिर्फ 15 साल बाद इस देश में विश्व के सबसे ज्यादा युवाओं को रखने वाला समय नहीं रह जाएगा। यह विश्व में सबसे ज्यादा बूढ़ों को रखने वाला देश बन जाएगा और जैसा कि कहा गया है कि वर्षा जब कृषि सुखाने, यानी जब समय ही आपके हाथ में नहीं रह जाएगा।
अगर चेतना अभी तो फिर कुछ शेष नहीं रह जाता है अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। इसीलिए युवा को वैश्विक परिदृश्य में इस बात पर विचार करना चाहिए कि वह अपने श्रम से अपनी प्राणवायु से कौन से ऐसे कर्तव्य कर सकता है जिससे मानवाधिकार मानवता की उस सर्वोच्चता पर खड़ा हो सकता है। प्रत्येक युवा एक प्रकाश स्तंभ की तरह अपनी क्षमताओं से राष्ट्र को नई दिशा दे सकता है।
देश-दुनिया का हाल
आज जिस तरह से वैश्विक स्तर पर युद्ध चल रहे हैं और युवाओं के सेना में शामिल होने के कारण जिस तरीके से यूक्रेन रूस टर्की जॉर्डन आदि देशों में युवा सैनिक मर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ परिवार कल्याण की नीति के कारण जिस तरह से चीन में युवाओं की संख्या घट रही है, जापान में विवाह न करने के कारण युवाओं की संख्या खत्म हो रही है, ऐसी स्थिति में भारत के पास अवसरों का एक विशाल समुद्र है।
उन अवसरों के लिए उसे बैठकर सोचना होगा, क्योंकि भारत जैसे देश में 1875 में ही जब आर्य समाज की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी, उसी के समानांतर अंग्रेजों ने भारत में बहुमत अधिनियम बनाया था और जिसमें इस बात की घोषणा हुई थी कि जो भी व्यक्ति 18 साल का पूरा हो गया है वह अपने लिए सोचने में समर्थ है। वह अपने बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है और उसे नौकरी विवाह रहने आदि तमाम बातों के लिए पूरी स्वतंत्रता है। वह अपने लिए क्या कर सकता है, इस कानून को बने हुए करीब 147 साल हो चुके हैं।
युवाओं की स्वतंत्रता
इन 147 साल में युवा अपने लिए सोचने के विस्तार में बहुत कुछ करने को स्वतंत्र हो चुका है। आज वह विधानसभा और संसद में अपने जनप्रतिनिधियों को 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद भेजता है। 21 वर्ष की आयु में आते आते वाह अपने लिए परिवार का निर्माण करने के लिए विवाह करने के लिए स्वतंत्र हो जाता है। लड़कियों के संदर्भ में यह आयु 18 वर्ष है, लेकिन इसमें भी यह विचार चल रहा है और जल्दी ही इसमें संशोधन हो जाए ताकि विवाह की आयु लड़की की भी 21 वर्ष कर दी जाए।
जरा सोचिए जब 18 वर्ष के बाद कोई भी व्यक्ति अपने बारे में संपूर्णता में सोचने के लिए स्वतंत्र है तो फिर वहां सिर्फ नौकरी पाने की परतंत्रता में क्यों रहना चाहता है। वह यह क्यों सोचता है कि क्या उसका जीवन सिर्फ एक नौकरी करके अपना जीवन काटने के लिए है?
ध्यान रहे देश में तभी स्वतंत्र ही तब हुआ है जब देश के बहुत से युवाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। देश के लोगों को अनाज तभी मिल पाता है बड़ी संख्या में युवा खेतों में हल चलाना स्वीकार करते हैं। विज्ञान के अविष्कारों का लाभ भी विश्व के और देश के तमाम दूसरे लोगों को तभी मिला है जब किसी युवा ने एपीजे अब्दुल कलाम बनकर या फिर सीवी रमन बनकर विज्ञान की सोच के साथ जीने का निर्णय लिया होता है।
यही बात राष्ट्रीय युवा दिवस पर समझने की है कि सिर्फ नौकरी पाकर चिड़ियाघर में बंद उस जानवर की तरह व्यक्ति को जीवन नहीं जीना चाहिए, जो सिर्फ इस बात का इंतजार करता है कि कब उसका मालिक उसे खाने के लिए भोजन देगा, कब उसका मालिक उसे जीवन यापन के लिए पैसे देगा। ध्यान रहे शंकराचार्य दयानंद सरस्वती जैसे लोगों ने समाज की स्थापना नौकरी पाकर ही नहीं, बल्कि नौकरी के लिए मानव जीवन की सोच और मस्तिष्क कितना सुंदर होना चाहिए, उस सोच का विकास किया।
स्वामी विवेकानंद ने कहा कभी भी अपने को कमजोर मत समझो बल्कि अपने को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ और सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति समझो क्योंकि यही सोच आपको समाज में सर्वोच्च स्थिति पर ले जाएगी। अब यह आपको तय करना है, वह सर्वोच्च स्थिति सरकारी नौकरी है या व्यवसाय जो आपका खुद का हो।