Swami Vivekananda Jayanti 2024: स्वामी विवेकानंद की उपलब्धियां जिन्हें हर कोई नहीं जानता

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में नरेंद्र नाथ दत्त के रूप में बंगाली परिवार में हुआ था। वह एक दार्शनिक, लेखक, धार्मिक, शिक्षक और भारतीय हिंदू भिक्षु के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने कम आयु में ही आध्यात्म का रास्ता चुना और उसपर आगे बढ़े। स्वामी विवेकानंद कहें जाने वाले नरेंद्रनाथ भारतीय रहस्वादी रामकृषण परमहंस के शिष्य थें। रामकृष्ण की सहायता से ही स्वामी विवेकानंद ने अपनी आध्यात्मिक खोज की शुरुआत की। स्वमी विवेकानंद को हिंदू धर्म को प्रमुख विश्व धर्म की स्थिति प्रदान करने का श्रेय दिया जाता है। उनकी मुख्य तौर पर रूची इतिहास, धर्म, समाजिक विज्ञान, कला और साहित्य में थी। जिसमें उन्हें महाभारत, रमायण, गीता और अन्य हिंदू पुराण पढ़ना पसंद था।

Swami Vivekananda Jayanti 2024: स्वामी विवेकानंद की उपलब्धियां जिन्हें हर कोई नहीं जानता

जहां एक तरफ वह गीता और हिंदू पुराणों को पढ़ा करते थे वहीं उन्होंने पश्चिम के इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच्टे, जॉर्ज डब्ल्यू एफ हेगेल और आर्थ शोपेनहावर जैसे कई अन्य विद्वानों की रचनाओं को भी पढ़ा है। उन्होंने भले ही पश्चिम विद्वानों का दर्शन किया है लेकिन यहां की संस्कृति को किसी भी प्रकार से नहीं छोड़ा था अपन इस अध्यन के दौरान उन्होंने बंगाली साहिय्य और संस्कृत शास्त्र का भी अध्ययन किया। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने लोगों को प्ररेणा देने, शिक्षा प्रदान करने और आध्यात्म का रास्ता दिखा।

स्वामी विवेकानंद जी के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण थी। उनका मानना था कि शिक्षा के माध्यम से चरित्र कि निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर छात्रों को कड़ी मेहनत और धैर्य के बारे में सिखाया है क्योंकि उनके अनुसार धैर्य के साथ कड़ी मेहनत कर आप सफलता प्राप्त कर सकते हैं और एक युवा के तौर पर आप अपने परिवार के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी रखते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में कार्यों को लेकर कई उपलब्धियां प्राप्त की है। जिसके बारे में हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने जा रहें। आइए जाने-

रामकृष्ण मठ की स्थापना

स्वामी विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण से ब्रहमों समाज के सदस्य बनने के बाद हुई। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के बारे में प्रिंसिपल विलियम हेस्टी के बारे में सुना था। जब विविकेनंद जी के मन में भगवान और उनके अस्तित्व को लेकर कई प्रश्न थें। जिसको के उत्तर प्राप्त करने के लिए वह रामकृष्ण के पास गए और उनसे प्रश्न किया की "क्या आपने भगवान को देखा है?" इसके उत्तर में रामकृष्ण कहा कि हां, मेरे पास है। मैं भगवान को उतना ही स्पष्ट रूप से देखता हूं जितना कि मैं आपको देखता हूं, लेकिन बहुत गहरे अर्थों में" उनके इस उत्तर से विवेकानंद को अपने कई उत्तरों के जवाब मिले और उनहें समझ आया कि पुरुषों की सेवा ही ईश्वर की प्रभावी सेवा है। यहिं से विवेकानंद और रामकृष्ण के गुरु-शिष्य संबंधो की शुरुआत हुई।

1885 में रामकृष्ण को गले के कैंसर हुआ और अंतिम समय में वह अपने कोसीपुर के बगीचे वाले घर में रहे। इस दौरान उनकी देखभाल उनके विवेकानंद और अन्य शिष्यों के द्वारा की गई। लेकिन 1886 में रामकृष्ण का निधन हो गया। उनके निधन के बाद विवेकनंद और अन्य साथी के साथ कलकत्ता के बारनगर में एक साथ रहने लगे और वहां रामकृष्ण मठ की स्थापना हुई। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद 1887 में सन्यास की प्रतिज्ञा ली और तभी वह नरेंद्र से विवेकानंद के रूप में उभरे।

विश्व धर्म संसद में हिस्सा लिया

रामकृष्ण मठ को छोड़ने के बाद उन्होंने लंबे समय तक पैदल यात्रा की और उस दौरान आम लोगों द्वारा सहे जाने वाले कष्टों के बारे में जाना। 1893 में उन्हें शिकागों, अमेरिका में होने वाले विश्व संसद के बारे में पता लगा। जिसकी जानकारी से इसमें हिस्सा लेने की उनकी इच्छा और बढ़ने लगी। 11 सिंतबर को उन्हें इस बैठक में हिस्सा लिया और उनके भाषाण की शुरुआत ने ही लोगों को आश्चर्यचकित किया। क्योंकि उन्होंने अपना संबोधन "अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों" से जो शुरु किया था। अपने इस भाषण में उन्होंने वदांता के सिद्धांतों के साथ आध्यात्मिक महत्व के बारे में लोगों को बताया।

वेदांत की स्थापना

विश्व संसद में अपने भाषाण के बाद वह अमेरिका में ढाई वर्षों तक रहे और इस समय काल के दौरान उन्होंने 1894 में न्यू यॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। इस सोसाइटी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वेदों का अध्ययन और उसका प्रचार करना है और साथ ही आध्यात्मिक गतिविधियां इस सोसाइटी के माध्यम से रामकृष्ण के आदेशों और उद्देश्यों को भारत के बाहरी देशों में उल्लेख करना है। वेदांत की स्थापना का कार्य तभी शुरू हो गया था जब स्वामी विवेकानंद ने विश्व संस्द में हिस्सा लिया था और इस प्रकार उन्होंने वेदांत की स्थापना की।

रामकृष्ण मीशन

पश्चिम की अपनी यात्रा के बाद 1897 में विवेकनंद ने भारत वापसी की। भारत वापस लौटने के बाद उन्होंने कलकत्ता के बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। उन्हों इस मिशन का नाम अपने गुरु के नाम पर रखा क्योंकि वह उनके द्वारा दी शिक्षा के माध्यम से परेशान और पीड़ितो की सेवा करना चालते थे।

उन्हें अपने इस मिशन के तहत एक समाज सुधारक के रूप में कार्य किया और कई समाजिक सेवाओं की शुरुआत की। इस सेवाओं में स्कूल और कॉलेज के निर्माण के साथ अस्पताल आदि का निर्माण भी शामिल था। इसके अलावा उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की ताकि वह वेदांत का ज्ञान सभी को प्रदान कर सकें। जिसके लिए उन्होंने कई सेमिनारों और सम्मेलनों का आयोजन किया।

सन फ्रांसिस्कों केंद्र की स्थापना

पश्चिम में वेदांत की स्थापना के बाद और भारत में वेदांत के प्रचार के बाद उन्होंने एक बार फिर पश्चिम की यात्रा की। लेकिन इस बार वह अकेले नहीं थे। उन्हें साथ उनके गुरु रामकृष्ण के अन्य शिष्य भी शामिल थें। 1900 में अपनी दूसरी पश्चिम यात्रा के दौरान उन्हें सन फ्रांसिस्कों केंद्र की स्थापना की। इसके साथ ही उन्होंने कैलिफोर्निया में शांती आश्रम की स्थापना भी की।

उनकी इन उपलब्धियों में एक उपलब्धी ये भी है कि आज उनकी जंयती के दिन को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जता है। राष्ट्रीय युवा दिवस की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 1984 में की गई थी। इस दिवस के माध्यम से स्वामी विवकेनंद द्वारा किए प्रदान की शिक्षा और योगदान को सम्मानित करने के लिए उनकी जंयती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में चिन्हित किया गया। मुख्य रूप से इस दिवस को मनाने का उद्देश्य युवा पीढ़ी को राष्ट्र निर्माण की दिशा में प्रोत्साहित करना है। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे हिंदूवादी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में राजा योग, ज्ञान-योग, भक्ति-योग, कर्म-योग और जैसे कई हिंदू दर्शन से संबंधित और वेदांत की अवधारणाओं पर ग्रंथ लिखे हैं।

कुल मिलाकर स्वामी विवेकानंद वो व्यक्तित्व हैं, जिनके बारे में प्रत्येक छात्र को बचपन से पढ़ना चाहिए। उनके विचार ही नहीं बल्कि उनका पूरा जीवन अपने-आप में प्रेरणा का एक महासमर है।

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English summary
Education was very important for Swami Vivekananda. He believed that character can be built through education. He as a teacher has taught students about hard work and patience because according to him by working hard with patience you can achieve success and as a youth you can be responsible towards your family as well as society and nation. They also have their responsibilities. He has achieved many achievements in his life time regarding works. About which we are going to tell you through this article.
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