Subhash Chandra Bose Jayanti 2023: कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा...। जिंदगी को कौम पर निसार कर देने वाले भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, भारत रत्न सम्मानित, स्वाधीनता संग्राम में नवीन प्राण फूंकने वाले सर्वकालिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही देशभक्ति की श्रेष्ठ मिसाल है।
सुभाष का जन्म पिता जानकी नाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। वे अपने 8 भाइयों और 6 बहनों में नौवीं संतान थे। प्रारंभ से ही राजनीतिक परिवेश में पले बढ़े सुभाष चन्द्र बोस के जीवन पर बाल्यकाल से धार्मिक व आध्यात्मिक वातावरण का गहन प्रभाव था एवं उनके कोमल हृदय में बचपन से ही शोषितों व गरीबों के प्रति अपार श्रद्धा समाई हुई थी।
उन्हें स्वामी विवेकानंद की आदर्शता और कर्मठता ने सतत आकर्षित किया। स्वामी विवेकानंद के साहित्य को पढ़कर उनकी धार्मिक जिज्ञासा और भी प्रबल हुई। सन 1902 में पांच वर्ष की उम्र में सुभाष का अक्षरारंभ संस्कार संपंन हुआ। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई कटक के मिशनरी स्कूल व आर. कालेजियट स्कूल से की व 1915 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लेकर दर्शन शास्त्र को अपना प्रिय विषय बना लिया।
इस बीच 1916 में अंग्रेज प्रोफेसर ओटन द्वारा भारतीयों के लिए अपशब्द का प्रयोग करने पर ये सुभाष को सहन नहीं हुआ और उन्होंने प्रोफेसर को थप्पड़ मार दिया व पिटाई कर दी। इसको लेकर सुभाष को कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में 1917 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी की मदद से उनका निष्कासन रद्द कर दिया गया। तभी से सुभाष के अंतर्मन में क्रांति की आग जलने लग गई थी और उनकी गिनती भी विद्रोहियों में की जाने लगी थी।
दरअसल सुभाष के पिता जानकी नाथ बोस पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग गए थे और वे सुभाष को सिविल सेवा के पदाधिकारी के रूप में देखना चाहते थे। पिता का सपना पूरा करने के लिए सुभाष ने सिविल सेवा की परीक्षा दी ही नहीं अपितु उस परीक्षा में चौथा पायदान भी हासिल किया। लेकिन उस समय सुभाष के मन में कुछ और ही चल रहा था।
सन 1921 में देश में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों के समाचार पाकर एवं ब्रिटिश हुकूमत के अधीन अंग्रेजों की हां-हुजूरी न करने की बजाय उन्होंने महर्षि अरविन्द घोष की भांति विदेशों की सिविल सेवा की नौकरी को ठोकर मारकर मां भारती की सेवा करने की ठानी और भारत लौट आये।
स्वदेश लौटकर आने के बाद सुभाष अपने राजनीतिक गुरु देशबंधु चितरंजन दास से न मिलकर गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर वे महात्मा गांधी से जा मिले। अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी सुभाष के हिंसावादी व उग्र विचारधारा से असहमत थे। जहां गांधी उदार दल के नेतृत्वक्रेता के रूप में अगुवाई करते थे, वहीं सुभाष जोशीले गरम दल के रूप में अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए विख्यात थे।
बेशक महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की विचारधारा भिन्न-भिन्न थी, पर दोनों का मकसद एक ही था - भारत की आजादी। सच्चाई है कि महात्मा गांधी को सबसे पहले नेताजी ने ही 'राष्ट्रपिता' के संबोधन से संबोधित किया था। सन 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद नेताजी ने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। कहा जाता है कि यह आयोग गांधीवादी आर्थिक विचारों के प्रतिकूल था।
सन 1939 में बोस पुनः गांधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए। बार-बार के विरोध व विद्रोही अध्यक्ष के त्यागपत्र देने के साथ ही गांधी ने कांग्रेस छोड़ने का निर्णय ले लिया। इसी बीच सन 1939 में अमेरिका द्वारा जापान के नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ हो गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने तय किया कि वो एक जन आंदोलन प्रारंभ कर समस्त भारतीयों को इस आंदोलन के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
आंदोलन की भनक लगते ही ब्रिटिश सरकार ने नेतृत्वक्रेता के तौर पर सुभाष को दो हफ्तों के लिए जेल में रखा और खाना तक नहीं दिया। भूख के कारण जब उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा तो ब्रिटिश हुकूमत ने जनाक्रोश को देख उन्हें रिहाकर उनकी घर पर ही नजरबंदी शुरु कर दी। समय और परिस्थिति से भांपकर वे ब्रिटिशों की आंखों में धूल झोंककर जापान भाग गये।
जापान पहुंचकर बोस ने दक्षिणी-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा एकत्रित करीब चालीस हजार भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना का गठन करना शुरु कर दिया। भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिन्द फौज का गठन किया। सन 1943 से 1945 तक आजाद हिन्द फौज अंग्रेजों से युद्ध करती रही।
अंततः वह ब्रिटिश शासन को यह महसूस कराने में सफल रहे कि भारत को स्वतंत्रता देनी ही पड़ेगी। रंगून के जुबली हॉल में अपने ऐतिहासिक भाषण में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने संबोधन के समय ही 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा' और 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था। सक्रिय राजनीति में आने व आजाद हिन्द फौज की स्थापना से पहले बोस ने सन 1933 से 1936 तक यूरोप महाद्वीप का दौरा भी किया था।
उस वक्त यूरोप में तानाशाह शासक हिटलर का दौर था। वहां हिटलर की नाजीवाद और मुसोलिनी की फासीवाद विचारधारा हावी थी और इंग्लैंड उसका मुख्य निशाना था। बोस ने कूटनीतिक व सैन्य सहयोग की अपेक्षा खातिर हिटलर से मित्रवत नाता भी कायम किया। साथ ही 1937 में ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी भी की और दोनों की अनीता नाम की एक बेटी भी हुई। अधिकांश लोग ये मानते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताइपे में विमान हादसे में हुई। लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो विमान हादसे की बात को स्वीकार नहीं करता।